(शहीद दिवस पर विशेष )
!! न आना इस देश बापू !!
शान्ति का उपदेशक
सत्य-अहिंसा में आस्था रखना छोड़ दिया है
और जम्हूरियत
बन गयी है खानदानी वसीयत का पर्चा
सिपहसलार-
कर गया है सरकारी खजाना
सगे-संवंधियों के नाम......
संसद के केन्द्रीय कक्ष में
व्हिस्की के पैग के साथ
होती रहती है कभी राम राज्य तो कभी भ्रष्टाचार पर चर्चा
बापू !
वह स्थान भी सुरक्षित नहीं बचा
जहां बैठकर गा सको -
वैष्णव जन.............पीर पराई जाने रे......!
तुम्हारे समय से काफी आगे निकल चुका है यह देश
इस देश के लिए सत्य-अहिंसा कोई मायने नहीं रखता अब
टूटने लगे हैं मिथक
चटखने लगी है आस्थाएं
और दरकने लगी है-
हमारी बची-खुची तहजीब
इसलिए लौटकर फिर -
न आना इस देश बापू !
() रवीन्द्र प्रभात
यह कड़वा सच है सर, आपको नमन !
बहुत अच्छे रविन्द्र जी, यह एक ऐसा कडवा सच है जिसे स्वीकारने में भले ही किसी को एतराज़ हो किन्र्तु हमें नहीं है, गाँधी जी के सपनो का भारत रह ही नहीं गया है. धर्म जाति के नाम पर जिस तरह हम बंट गए है, वाह किसी से छुपा नहीं है फिर भी इस सत्य को स्वीकार करने में हिचकचाते हैं. राजनीतिज्ञों का पूछिए मत, सब अपनी ही गोट्टी फिट करने में लगे है, देश कोअजाद हुए भले ही लोग कहे की छः दशक बीत गए हो किन्तु आज भी हम आज़ाद नहीं है, कभी मुगलों के गुलाम रहे तो कभी अंग्रेजो के अब अपने ही चंद लोंगो के गुलाम है.जब तक युवा पीढ़ी आगे नहीं आएगी तब तक देश का भला नहीं होगा. वह भी स्वच्छ मानसिकता के साथ, सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद
सुन्दर कविता व स्पष्टोक्ति के लिये बधाई....
कडवा सच , yaqeenan !
लाजवाब अभिव्यक्ति !
बहुत स्पष्ट एवं कटु सत्य. अब ये देश गाँधी के त्यागों और संघर्ष का साक्षी नहीं रहा. उपहार में मिली स्वतंत्रता को जी भर कर भोग रहे हैं लोग. कहीं कोर ओर और छोर ही नहीं हमारे नैतिक पतन का . इस कविता के लिए आप बधाई के पात्र हैं.