जब हम पैदा हुए तो स्वतंत्रता हमारे आँगन में आ चुकी थी हमें तो सिर्फ खुली हवा और महकते हुए फूलों की खुशबू ही मिली. हमें तो ये अहसास ही नहीं कि इस आजादी को पाने में हमारे सेनानियों ने कितना और क्या क्या बर्दास्त किया है. तभी तो उनकी सोच ऐसी है क्योंकि जब वे लड़ रहे थे तब यह सिर्फ एक भारत था कोई पाकिस्तान या बंगलादेश नहीं था. उन लोगों ने ऐसा कुछ सोच कर लड़ाई नहीं लड़ी थी. उन्हें सिर्फ अंग्रेजी शासन से मुक्ति चाहिए थी और अपने देश में अपने लोगों का शासन. आज जो भी स्वतंत्रता सेनानी जीवित हैं वे बहुत दुखी हैं देश के इन हालातों से , भले ही वे कुछ न कह रहे हों.
अभी दो दिन पहले ही जनगणना के लिए कानपुर के डी एम और अन्य अधिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की सेना में रहीं वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मानवती आर्या के आवास पर उनसे जनगणना के फार्म भरवाने के लिए गए. उन्होंने भाषा जाति और प्रान्त के स्थान पर भरा
"अखंड भारत की सदस्य "
क्या इन शब्दों में छिपे मूक दर्द को किसी ने महसूस किया है. शायद नहीं अब वे इस दर्द को पीते हुए ही जी रही हैं. समाज के होने वाले नैतिक अवमूल्यन को देख कर बस गहरी सांस भर कर ये कह पाती हैं - कभी नहीं सोचा था कि राजनीति से लेकर सामाजिक और नैतिक मूल्यों में भी इतनी अवनति होगी. क्या हम उनके इस दर्द को समझ कर एक प्रयास देश में इस जाति धर्म और भाषा की खिंची हुई लकीरों को मिटाने के लिए नहीं कर सकते हैं. कर सकते हैं और ये कलम इतनी सशक्त होती है कि अगर बार बार वही बात लिखेगी तो पूरे देश में वही बात गूंजेगी.
दिवंगत और जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम इस विभेद को मिटा कर सिर्फ भारतीय होने के गौरव को महसूस करें.
अभी दो दिन पहले ही जनगणना के लिए कानपुर के डी एम और अन्य अधिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की सेना में रहीं वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मानवती आर्या के आवास पर उनसे जनगणना के फार्म भरवाने के लिए गए. उन्होंने भाषा जाति और प्रान्त के स्थान पर भरा
"अखंड भारत की सदस्य "
क्या इन शब्दों में छिपे मूक दर्द को किसी ने महसूस किया है. शायद नहीं अब वे इस दर्द को पीते हुए ही जी रही हैं. समाज के होने वाले नैतिक अवमूल्यन को देख कर बस गहरी सांस भर कर ये कह पाती हैं - कभी नहीं सोचा था कि राजनीति से लेकर सामाजिक और नैतिक मूल्यों में भी इतनी अवनति होगी. क्या हम उनके इस दर्द को समझ कर एक प्रयास देश में इस जाति धर्म और भाषा की खिंची हुई लकीरों को मिटाने के लिए नहीं कर सकते हैं. कर सकते हैं और ये कलम इतनी सशक्त होती है कि अगर बार बार वही बात लिखेगी तो पूरे देश में वही बात गूंजेगी.
दिवंगत और जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम इस विभेद को मिटा कर सिर्फ भारतीय होने के गौरव को महसूस करें.
समाज के होने वाले नैतिक अवमूल्यन को देख कर बस गहरी सांस भर कर ये कह पाती हैं - कभी नहीं सोचा था कि राजनीति से लेकर सामाजिक और नैतिक मूल्यों में भी इतनी अवनति होगी
sach bat hai salim bhai.achchhi post.
aap jaise bloger ki post vastav me gyan ka bhandar hoti hai,padh kar kritarth ho gayee.
सच है शान्त पानी में एक कंकड भी डाला जाय तो भंवर बन सकती है.....
सिर्फ भारतीय होने के गौरव को महसूस करें. sahmat