बार बार वो ,
जान क्या ऐसा
था
जिसकी तलाश थी उसको ,
अनसुलझे सवाल को
लेकर उलझती जाती
कभी मैंने साथ
देना चाहा था
उसकी खामोशियों को,
उसके अकेलेपन को ,
पर
वो दूर जाती रही
मुझसे ,
अचानक ही एक एहसास
पास आता है
बंधन का
बेनाम रिश्ते का ,
जिसमें दर्द है ,
घुटन है ,
मजबूरियां है,
शर्म है ,
तड़प है ,
उम्मीद है ।मैं समझते हुए भी
नासमझ सा
लाचार हूँ
उसके सामने
शायद बयां कर पाऊं कभी
उसको अपने आप में ।
सुन्दर--
’ मन सोचा करता है अक्सर
हम ये कहेंगे, हम वो कहेंगे।
पर जब तुम सम्मुख होते हो,
सब सोचा विस्म्रत हो जाता ।
जाने क्या मुझको हो जाता ,
जाने क्या तुमको होजाता ॥’
अच्छी लगी भावनात्मक पोस्ट ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/