बसंतोत्सव/मदनोत्सव चल रहा है.. प्रकृति का कण कण रागमय है , एसे में सुधियाँ , यादें पुनः पुनः मन को उद्वेलित करतीं हैं , आंदोलित करती हैं, लगता है समस्त प्रकृति में 'प्रिय ' की गूँज है, प्रिय की ध्वनि है | देखिये इसी भाव पर एक ग़ज़ल...
इक मदिर मधु गंध सी ज्यों भर गयी हो भुवन में ,
लहर कल कल नदी की या निर्झरों के स्वर,
छिड़ गए सुधि-तार सरगम झनझनाई है |
आपकी स्वर-वीणा की झंकार आई है |
एक पल को थम गयी दिक्-विश्व हलचल,
इक अनाहत नाद ध्वनि चहुं ओर छाई है ।
इक मदिर मधु गंध सी ज्यों भर गयी हो भुवन में ,
तेरी सुधियों की महक मन महमहाई है |
खग-कुलों के गान-कलरव तेरा स्वर नर्तन ,
भ्रमर के गुन गुन स्वरों में गुन गुनाई है |
लहर कल कल नदी की या निर्झरों के स्वर,
पवन की मर मर धुनें तूने सजाई हैं |
सरसराते पादपों के स्वर में तू मुकुलित,
रक्त के संचरण स्वर में सरसराई है |
चिटखती कलियों का सकुचित मौन आमंत्रण ,
खिलखिलाते पुष्प में तू खिलखिलाई है |
मंदिरों की शंख-ध्वनि,बन वन्दना के स्वर,
दीप के ज्योतिति स्वरों में दिप दिपाई है |
ह्रदय धड़कन तू, दृगों के पलक झपकन स्वर,
रूप के हर छवि -स्वरों में मुस्कुराई है |
तेरी पायल घुंघरुओं के , किंकिणों के स्वर ,
अधर स्फुट ध्वनि ने सुर-सरिता बहाई है |
सृष्टि का कण कण हुआ है आज झंकृत ,
सृष्टि भर में तेरी ही सरगम समाई है |
श्याम' डूबे आज मन के गहन पारावार में ,
दिग-दिगन्तों से तेरी आवाज आयी है ||
gr8
धन्यवाद...सलीम जी व समीर जी...
सर जी,लाजवाब पोस्ट।