आदरणीय अनवर भाई और LBA परिवार के सभी भाई बहनों
अनवर भाई, आप शायद कई बातें बहुत जल्दी भूल जाते हैं.मैंने आपको बड़ा भाई कहा है. और बड़ा भाई छोटे भाई को सँभालने की जिम्मेदारी से भाग जाय भला ऐसा हो सकता है कदापि नहीं, जरा अपनी लिखी बातों पर गौर फरमाए,
""अगर सत्य सुनने से आपको मेरे कहने के बाद भी ऐसा महसूस होता है कि आपको नीचा दिखाया जा रहा है तो मैं आगे से यहाँ कम आऊंगा ।""
आपने खुद ही कहा यहाँ पर कम आऊंगा. यानि खुद छोड़ने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि कुछ देर के लिए रूठने की बात ही कर रहे है. और रूठने वाले को मनाना कोई मुश्किल काम नहीं और आप जैसे बड़े भाई को मनाना बहुत ही आसान है. मैं आपकी परीक्षा ले चुका हूँ , और आप पूरे सौ नंबर से पास हुए है.,, यदि बहुत जानकर हैं, यही बता दीजिये आपकी परीक्षा कहा हुई थी,
आपके अन्दर इंसानियत भरी हुई है, आपका दिल बहुत बड़ा है एक संवेदन शील कलाकार की तरह, एक जहीन इन्सान है पर मेरी नजर में, इस बात पर ध्यान दीजियेगा मैं कह रहा हू मेरी नजर में, यानि एक छोटा कह रहा है अपने बड़े भाई से, न किसी हिन्दू से और न किसी मुसलमान से, मेरे भावों में न तो अनवर है और न ही हरीश , ..... आपमें लचीला पन नहीं है, आपमें झुकाव नहीं है. इसके पीछे कही न कही अहंकार लगता है. [जबकि यह सच नहीं है] यह दोनों गुण मैं आपमें देख चुका हु, बस उसे आप बाहर निकलने नहीं देते हैं. आपको लगता है की आप कही झुक गए तो कही आपका सम्मान घट न जाय,,,,, जबकि आपका कद सभी की नजरो में बढ़ जायेगा, यह भी मेरा ही विश्वाश है. ........... और जरुरी नहीं की मैं सही ही हू.
इंसानियत सभी में है किन्तु हर व्यक्ति की परिभाषा अपनी अपनी होती है. किन्तु मेरी परिभाषा क्या है उसे मैं बता रहा हू..............,
मैं एक अदना सा इन्सान हु. मैं एक गरीब घर का बच्चा था, मेरी परवरिश किसी बंगले में नहीं. एक कच्चे मिटटी के मकान में हुई, शहर से दूर एक गाँव में हुई, उस गाँव में एक मुसलमान भी आता था, अभिवादन की भाषा. कुछ और नहीं "जय राम जी की" होती थी, और हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे "आव हो मौलाना," लोग प्रेम से बैठे रहते थे घंटो बात करते थे, उन लोंगो में मुझे कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं सिर्फ दो इन्सान दिखाई देते थे. धर्म के नाम पर किसी को नीचा दिखने या दिखाने की इच्छा नहीं होती थी, उम्र के हिसाब से सम्मान देने की बात करते थे. और मैंने हमेशा सीखा वही जो देखता था. मैं उम्र को सम्मान देता हु, रिश्तो को सम्मान देता हु,
जाती धर्म को नहीं उस संस्कार को धर्म, मान की जो मुझे विरासत में मिला , आपके धर्म में मां के पैर नहीं छूए जाते. मेरे यहाँ छूए जाते है, तो मैं अपने मित्र समसुद्दीन मुन्ना {मो.09026783724 } की मां के पैर भी छूता हु क्योंकि वहा मुझे कोई मुसलमान नहीं दिखता हिन्दू नहीं दिखता बल्कि मां दिखती है. आप ही कहते है न की जन्नत माँ की कदमो में होता है. यह क्यों नहीं कहते जन्नत मुसलमान मां की कदमो में होती है. क्योंकि आप भी मानते है न मां को किसी धर्म में नहीं बँटा जा सकता........ बंटेगा तब जब उसे हम सिर्फ एक औरत के रूप में देखेंगे..... और मेरे जितने दोस्त है वे चाहे किसी जाती के हो किसी धर्म के हो वे मेरे भाई बन जाते हैं, चाहे बड़े बने या छोटे........ जब उन्हें मैं अपना भाई बना लेता हु तो, उनके सभी रिश्ते को अपना लेता हु तब वे मेरे लिए वे सब हिन्दू या मुसलमान नहीं रह जाते. ...... वे मेरे साथ जमकर होली मनाते हैं और मैं ईद बकरीद पर जमकर दावते उडाता हू . .. क्या मजा आता है ............. आपको एक घटना बताऊ. मेरा एक मित्र है जमाल खान ..... वह मेरे साथ मेरी रिश्तेदारी में गया.... मैंने उसे पहले ही बता दिया यह सब पुराने ख़यालात के है. भैया वे ठाकुर साहेब अभी तक बने है...... जमाल का नाम राहुल सिंह कर दिया. वह मेरे साथ एक दिन रहा और राहुल सिंह बनकर मेरे साथ खाया पिया, बात की हंसी मजाक हुआ... हम चले आये........ उसे भी मजा आता था..... वह साथ में आठ बार मेरे साथ गया. जब वे लोग जाने तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा, हँसे मजाक हुआ फिर भी बर्ताव वही रह गया क्योंकि लगाव का रिश्ता बन गया था. मेरी बुआ उसकी बुआ बन चुकी थी. हम दोनों एक सामान हो गए थे. मुझे नहीं लगता हमारा धर्म भ्रष्ट हो गया.......... हम आज भी हिन्दू है और हिन्दू होने पर हमें गर्व है. ........... हमें अपने उन मुसलमान दोस्तों पर भी फख्र होता है. जो हमें रोज़ा अफ्तारी में बुलाते हैं जबकि हम रोज़ा नहीं रखते....... पर अजान होने इंतजार तो हम भी करते है..... जब आपकी अजान होती है...... अल्लाह हो अकबर की सदा गूंजती है तो वहा भी हमें अपने खुदा अपने भगवान का एहसास होता है........ वह हमें सबका रक्षक सबका अभिभावक दिखाई देता है..... और वह कोई दो नहीं होते वहां एक ही होता है वह खुदा है की भगवान मैं नहीं जानता........... वह मुझे हिन्दू मुसलमान नहीं मेरा अपना दिखता है........
अनवर भाई............. जब हमारे यहाँ दशहरा के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्ज़ान का जुलूस निकलता है तो,,,,, जामा मस्जिद तकिया कल्लन शाह पर पानी पिलाने का काम करते हैं. ...... तब उन्हें कोई मुसलमान नहीं कहता और वे भी हिन्दुओ का जुलुस नहीं कहते............ वे भी उस जुलुस का सम्मान करते है क्योंकि उस पर्व के साथ मां शब्द जुड़ा है. और मां तो सभी की होती है...... भले ही शब्दों के साथ किन्तु एक रिश्ते का एहसास तो हो रहा है............ फिर भी उन्हें मुसलमान हो ने पर गर्व है............
भाई रिश्ता हर धर्म पर भारी है...........यदि माने तो इस्लाम धर्म ही नहीं हर धर्म इंसानियत की शिक्षा देता है........ बस हमारे अन्दर बसी रूढ़िवादिता, हमारे अन्दर बसा अहंकार कही न कही हमारे इंसानियत को बाहर नहीं आने देता और कभी न कभी विवाद को पैदा करता है............
जिस तरह आपको मुसलमान होने पर गर्व है उसी तरह हमें अपने हिन्दू होने पर गर्व है................... लेकिन हम सभी के अन्दर एक इंसानियत धर्म भी होना चाहिए,,,,,,, ताकि हमारे अन्दर एक मजबूत रिश्ता हो ..........
और मेरा वही रिश्ता लखनऊ ब्लोगर असोसिएसन से है............ यह मेरा परिवार है.....
अब सभी से.............
उत्तरप्रदेश ब्लोगर असोसिएसन बनाने पर हमें मिथिलेश को विभीसन, जयचंद कहा गया, दो मुह वाला साप कहा गया... तमाम बाते कही गयी........ डॉ. ने एक छंद छोड़ दिया,,, कोई बता सकता है की.... मैंने LBA के किस नियम को भंग किया है........ बल्कि अपनी जिम्मेदारियों से भागा नहीं.. प्रमुख प्रचारक के पद को बखूबी निभाया.... मेरा कार्य प्रचार करना था.......... मैंने किये.... UPA बनने के बाद कई ब्लोगरो ने हमारा सहयोग करना शुरू किया......... कई ब्लोगों पर LBA और UPA की चर्चा होने लगी...... काफी दिन से सोये पड़े सलीम भाई भी जग गए..................... LBA का रूप रंग भी बदल गया........... जब रनवे पर दौड़ रही प्लेन उडान भरनी शुरू की तो कई लोग अपने बेल्ट सँभालने लगे.......... LBA को आगे बढ़ना था वह बढ़ गया जो लोग संभल नहीं पाए वे पीछे रह गए...... अब साथ में UPA भी आगे बढ़ने लगा तो मैं क्या करूँ............. अब शो -रूम के आगे पंचर की दुकान भी चल निकली तो मेरे क्या भूल है.............. सलीम भाई द्वारा दिए गए दायित्व को मैंने बखूबी निभाया है...... बिना कोई नियम भंग किये.....................
मुझे लगा की जिस तरह मेरा विरोध हो रहा है......... मिथिलेश का विरोध हो रहा है............ सलीम भाई, अनवर भाई भले ही मेरे साथ हैं किन्तु भैया बहुमत का जमाना है........ मैं देख रहा हु हम लोगो के खिलाफ खूब वोटिंग हो रही है................ सरकार गिरने { परिवार को भंग} से बचने के लिए सलीम भाई हमें बाहर का राश्ता दिखाने को मजबूर हो जाय..... तो इस लखनऊ के विधान सभा में प्रश्न पूछने का मौका फिर मिले की नहीं नहीं तो बताईये मेरा धर्म {इंसानियत का} कहा बुरा है......... मैंने LBA का कौन सा नियम भंग किया है....... मैंने अपने पद के साथ कौन सी गद्दारी की है........
आप सभी से मैं रिश्ते बना चुका हू........... आप सभी मेरे भाई है............ जो भी आरोप लगाना है खुलकर लगाईये........ मुझे बुरा नहीं लगेगा.......... मैं सभी का जबाब दूंगा............
मेरी वजह से किसी को भी मानसिक दबाव न हो सभी में परिवार वाद बना रहे...... अब देखिये केंद्र व प्रदेश में परिवारवाद का ही बोलबाला है. लोग समझने लगे है की परिवार जितना मजबूत हम उतने ताकतवर......... तो हमारा LBA ताकतवर रहना चाहिए.... अब हम भगोड़े तो हो नहीं सकते हा परिवार एकजुट रहे इसके लिए क़ुरबानी दे सकते है...........
आपके अन्दर इंसानियत भरी हुई है, आपका दिल बहुत बड़ा है एक संवेदन शील कलाकार की तरह, एक जहीन इन्सान है पर मेरी नजर में, इस बात पर ध्यान दीजियेगा मैं कह रहा हू मेरी नजर में, यानि एक छोटा कह रहा है अपने बड़े भाई से, न किसी हिन्दू से और न किसी मुसलमान से, मेरे भावों में न तो अनवर है और न ही हरीश , ..... आपमें लचीला पन नहीं है, आपमें झुकाव नहीं है. इसके पीछे कही न कही अहंकार लगता है. [जबकि यह सच नहीं है] यह दोनों गुण मैं आपमें देख चुका हु, बस उसे आप बाहर निकलने नहीं देते हैं. आपको लगता है की आप कही झुक गए तो कही आपका सम्मान घट न जाय,,,,, जबकि आपका कद सभी की नजरो में बढ़ जायेगा, यह भी मेरा ही विश्वाश है. ........... और जरुरी नहीं की मैं सही ही हू.
इंसानियत सभी में है किन्तु हर व्यक्ति की परिभाषा अपनी अपनी होती है. किन्तु मेरी परिभाषा क्या है उसे मैं बता रहा हू..............,
मैं एक अदना सा इन्सान हु. मैं एक गरीब घर का बच्चा था, मेरी परवरिश किसी बंगले में नहीं. एक कच्चे मिटटी के मकान में हुई, शहर से दूर एक गाँव में हुई, उस गाँव में एक मुसलमान भी आता था, अभिवादन की भाषा. कुछ और नहीं "जय राम जी की" होती थी, और हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे "आव हो मौलाना," लोग प्रेम से बैठे रहते थे घंटो बात करते थे, उन लोंगो में मुझे कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं सिर्फ दो इन्सान दिखाई देते थे. धर्म के नाम पर किसी को नीचा दिखने या दिखाने की इच्छा नहीं होती थी, उम्र के हिसाब से सम्मान देने की बात करते थे. और मैंने हमेशा सीखा वही जो देखता था. मैं उम्र को सम्मान देता हु, रिश्तो को सम्मान देता हु,
जाती धर्म को नहीं उस संस्कार को धर्म, मान की जो मुझे विरासत में मिला , आपके धर्म में मां के पैर नहीं छूए जाते. मेरे यहाँ छूए जाते है, तो मैं अपने मित्र समसुद्दीन मुन्ना {मो.09026783724 } की मां के पैर भी छूता हु क्योंकि वहा मुझे कोई मुसलमान नहीं दिखता हिन्दू नहीं दिखता बल्कि मां दिखती है. आप ही कहते है न की जन्नत माँ की कदमो में होता है. यह क्यों नहीं कहते जन्नत मुसलमान मां की कदमो में होती है. क्योंकि आप भी मानते है न मां को किसी धर्म में नहीं बँटा जा सकता........ बंटेगा तब जब उसे हम सिर्फ एक औरत के रूप में देखेंगे..... और मेरे जितने दोस्त है वे चाहे किसी जाती के हो किसी धर्म के हो वे मेरे भाई बन जाते हैं, चाहे बड़े बने या छोटे........ जब उन्हें मैं अपना भाई बना लेता हु तो, उनके सभी रिश्ते को अपना लेता हु तब वे मेरे लिए वे सब हिन्दू या मुसलमान नहीं रह जाते. ...... वे मेरे साथ जमकर होली मनाते हैं और मैं ईद बकरीद पर जमकर दावते उडाता हू . .. क्या मजा आता है ............. आपको एक घटना बताऊ. मेरा एक मित्र है जमाल खान ..... वह मेरे साथ मेरी रिश्तेदारी में गया.... मैंने उसे पहले ही बता दिया यह सब पुराने ख़यालात के है. भैया वे ठाकुर साहेब अभी तक बने है...... जमाल का नाम राहुल सिंह कर दिया. वह मेरे साथ एक दिन रहा और राहुल सिंह बनकर मेरे साथ खाया पिया, बात की हंसी मजाक हुआ... हम चले आये........ उसे भी मजा आता था..... वह साथ में आठ बार मेरे साथ गया. जब वे लोग जाने तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा, हँसे मजाक हुआ फिर भी बर्ताव वही रह गया क्योंकि लगाव का रिश्ता बन गया था. मेरी बुआ उसकी बुआ बन चुकी थी. हम दोनों एक सामान हो गए थे. मुझे नहीं लगता हमारा धर्म भ्रष्ट हो गया.......... हम आज भी हिन्दू है और हिन्दू होने पर हमें गर्व है. ........... हमें अपने उन मुसलमान दोस्तों पर भी फख्र होता है. जो हमें रोज़ा अफ्तारी में बुलाते हैं जबकि हम रोज़ा नहीं रखते....... पर अजान होने इंतजार तो हम भी करते है..... जब आपकी अजान होती है...... अल्लाह हो अकबर की सदा गूंजती है तो वहा भी हमें अपने खुदा अपने भगवान का एहसास होता है........ वह हमें सबका रक्षक सबका अभिभावक दिखाई देता है..... और वह कोई दो नहीं होते वहां एक ही होता है वह खुदा है की भगवान मैं नहीं जानता........... वह मुझे हिन्दू मुसलमान नहीं मेरा अपना दिखता है........
अनवर भाई............. जब हमारे यहाँ दशहरा के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्ज़ान का जुलूस निकलता है तो,,,,, जामा मस्जिद तकिया कल्लन शाह पर पानी पिलाने का काम करते हैं. ...... तब उन्हें कोई मुसलमान नहीं कहता और वे भी हिन्दुओ का जुलुस नहीं कहते............ वे भी उस जुलुस का सम्मान करते है क्योंकि उस पर्व के साथ मां शब्द जुड़ा है. और मां तो सभी की होती है...... भले ही शब्दों के साथ किन्तु एक रिश्ते का एहसास तो हो रहा है............ फिर भी उन्हें मुसलमान हो ने पर गर्व है............
भाई रिश्ता हर धर्म पर भारी है...........यदि माने तो इस्लाम धर्म ही नहीं हर धर्म इंसानियत की शिक्षा देता है........ बस हमारे अन्दर बसी रूढ़िवादिता, हमारे अन्दर बसा अहंकार कही न कही हमारे इंसानियत को बाहर नहीं आने देता और कभी न कभी विवाद को पैदा करता है............
जिस तरह आपको मुसलमान होने पर गर्व है उसी तरह हमें अपने हिन्दू होने पर गर्व है................... लेकिन हम सभी के अन्दर एक इंसानियत धर्म भी होना चाहिए,,,,,,, ताकि हमारे अन्दर एक मजबूत रिश्ता हो ..........
और मेरा वही रिश्ता लखनऊ ब्लोगर असोसिएसन से है............ यह मेरा परिवार है.....
अब सभी से.............
उत्तरप्रदेश ब्लोगर असोसिएसन बनाने पर हमें मिथिलेश को विभीसन, जयचंद कहा गया, दो मुह वाला साप कहा गया... तमाम बाते कही गयी........ डॉ. ने एक छंद छोड़ दिया,,, कोई बता सकता है की.... मैंने LBA के किस नियम को भंग किया है........ बल्कि अपनी जिम्मेदारियों से भागा नहीं.. प्रमुख प्रचारक के पद को बखूबी निभाया.... मेरा कार्य प्रचार करना था.......... मैंने किये.... UPA बनने के बाद कई ब्लोगरो ने हमारा सहयोग करना शुरू किया......... कई ब्लोगों पर LBA और UPA की चर्चा होने लगी...... काफी दिन से सोये पड़े सलीम भाई भी जग गए..................... LBA का रूप रंग भी बदल गया........... जब रनवे पर दौड़ रही प्लेन उडान भरनी शुरू की तो कई लोग अपने बेल्ट सँभालने लगे.......... LBA को आगे बढ़ना था वह बढ़ गया जो लोग संभल नहीं पाए वे पीछे रह गए...... अब साथ में UPA भी आगे बढ़ने लगा तो मैं क्या करूँ............. अब शो -रूम के आगे पंचर की दुकान भी चल निकली तो मेरे क्या भूल है.............. सलीम भाई द्वारा दिए गए दायित्व को मैंने बखूबी निभाया है...... बिना कोई नियम भंग किये.....................
मुझे लगा की जिस तरह मेरा विरोध हो रहा है......... मिथिलेश का विरोध हो रहा है............ सलीम भाई, अनवर भाई भले ही मेरे साथ हैं किन्तु भैया बहुमत का जमाना है........ मैं देख रहा हु हम लोगो के खिलाफ खूब वोटिंग हो रही है................ सरकार गिरने { परिवार को भंग} से बचने के लिए सलीम भाई हमें बाहर का राश्ता दिखाने को मजबूर हो जाय..... तो इस लखनऊ के विधान सभा में प्रश्न पूछने का मौका फिर मिले की नहीं नहीं तो बताईये मेरा धर्म {इंसानियत का} कहा बुरा है......... मैंने LBA का कौन सा नियम भंग किया है....... मैंने अपने पद के साथ कौन सी गद्दारी की है........
आप सभी से मैं रिश्ते बना चुका हू........... आप सभी मेरे भाई है............ जो भी आरोप लगाना है खुलकर लगाईये........ मुझे बुरा नहीं लगेगा.......... मैं सभी का जबाब दूंगा............
मेरी वजह से किसी को भी मानसिक दबाव न हो सभी में परिवार वाद बना रहे...... अब देखिये केंद्र व प्रदेश में परिवारवाद का ही बोलबाला है. लोग समझने लगे है की परिवार जितना मजबूत हम उतने ताकतवर......... तो हमारा LBA ताकतवर रहना चाहिए.... अब हम भगोड़े तो हो नहीं सकते हा परिवार एकजुट रहे इसके लिए क़ुरबानी दे सकते है...........
gr8
आपमें लचीला पन नहीं है, आपमें झुकाव नहीं है. इसके पीछे कही न कही अहंकार लगता है. [जबकि यह सच नहीं है] यह दोनों गुण मैं आपमें देख चुका हु, बस उसे आप बाहर निकलने नहीं देते हैं. आपको लगता है की आप कही झुक गए तो कही आपका सम्मान घट न जाय,,,
हरीश जी, आपने सही कहाँ लचीलापन अपने अन्दर लाने से इंसान का कद घटने के बजाय और उचा हो जाता है ।
आपके उम्दा और सटीक लेख के लिए आपका आभार ।
भाई हरीश सिंह जी ! आपकी पोस्ट पढ़कर मेरी आत्मा को आनंद इतना मिला है कि मेरी आँखों से भी अमृत बह रहा है । इस आनंद को खूब महसूस कर हूँ तब ही कुछ कह पाऊंगा और कुछ जरूरी नहीं कि मैं कुछ कहूँ ।
बेऐब केवल ईश्वर अल्लाह है । आपके भाई में कुछ कमी भी है तो आप निभाइये उसे । आपको या दुबे जी को LBA से हटा सके इतना दम तो अभी किसी राक्षस में है नहीं ।
इस पूरे विरोधवाड़े के समूल नाश के लिए मालिक के फ़ज़ल से उसका एक ही बंदा काफ़ी है ।
हम हर जगह साथ रहेंगे LBA में भी , UBA में भी और जन्नत और स्वर्ग में भी इंशा अल्लाह ।
HBFI में भी आपका और दुबे जी का और आपके तमाम समर्थकों का स्वागत है ।
कृप्या अपनी ईमेल आईडी भेजें ताकि यह ब्लागजगत देखे कि असहमति के बावजूद एकता और प्रेम की मशाल से आपस में विश्वास का उजाला कैसे फैलाते हैं LBA बंधु ।
SHIV SHANKAR KII AMULY BAAT:::
लचीलापन अपने अन्दर लाने से इंसान का कद घटने के बजाय और उचा हो जाता है
भाई हरीश सिंह जी ! आपकी पोस्ट पढ़कर मेरी आत्मा को आनंद इतना मिला है कि मेरी आँखों से भी अमृत बह रहा है । इस आनंद को खूब महसूस कर लूं तब ही कुछ कह पाऊंगा और कुछ जरूरी नहीं कि मैं कुछ कहूँ ।
बेऐब केवल ईश्वर अल्लाह है । आपके भाई में कुछ कमी भी है तो आप निभाइये उसे । आपको या दुबे जी को LBA से हटा सके इतना दम तो अभी किसी राक्षस में है नहीं ।
इस पूरे विरोधवाड़े के समूल नाश के लिए मालिक के फ़ज़ल से उसका एक ही बंदा काफ़ी है ।
हम हर जगह साथ रहेंगे LBA में भी , UBA में भी और जन्नत और स्वर्ग में भी इंशा अल्लाह ।
HBFI में भी आपका और दुबे जी का और आपके तमाम समर्थकों का स्वागत है ।
कृप्या अपनी ईमेल आईडी भेजें ताकि यह ब्लागजगत देखे कि असहमति के बावजूद एकता और प्रेम की मशाल से आपस में विश्वास का उजाला कैसे फैलाते हैं LBA बंधु ।
धन्यवाद सलीम भाई, अनवर भाई, शिवशंकर जी,
अनवर भाई आपने लिखा है..........
ईमान की ताक़त परमाणु बम की ताक़त से ज़्यादा होती है The power of Iman
सच बात है इमान की ताक़त सबसे बड़ी है, इमान सिर्फ कुरान पढने से नहीं होता है. उसे आत्मसात करने से से होता है. सिर्फ मुसलमान होने से, हिन्दू होने से, गीता पढने से, रामायण पढने से कोई इमान वाला नहीं हो जाता है. वेद पढने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता है. जब उन धर्मशाश्त्रों में कही गयी बातों को दिल से अपनाएंगे नहीं, अपने आचरण को बदलेंगे बही तब तक हमारे अन्दर इमान नहीं आ सकता.
मैं हिन्दू हु और मुझे हिन्दू होने पर गर्व है. आप मुसलमान हैं. आपको मुस्लमान होने पर गर्व होना चाहिए. किन्तु हिन्दू या मुसलमान होने से नहीं बल्कि समाज में प्रेम भाईचारा का वातावरण पैदा करना है तो हमें इन्सान बनना होगा. आपने जो उअदहरण उस पोस्ट में दिया है वह सिर्फ एक मुसलमान ही नहीं है वह एक सच्चा इन्सान भी है. और यह इंसानियत किसी भी धर्म को मानने वाले के अन्दर होनी चाहिए.
हमारे जीवन में कुछ घटनाये घटी है........ वह मैं कल से LBA पर पोस्ट करूँगा वह भी प्रमाण के साथ, जिसके बारे में लिखूंगा उसके मो. न. के साथ ताकि आप तस्दीक कर सके. तब बताईयेगा क्या वह करने के लिए मुसलमान होना जरुरी था.
अब यही देख लीजिये. कोई विवादित बात लिखी होती तो सभी लड़ने चले आते, डंडा लेकर मुझ पर टूट पड़े होते, सामने होता तो शायद सर फोड़ देते, और जो लोग मेरे ऊपर आरोप लगा रहे थे जब उनसे मैंने पूछा भैया बताओ मैं गद्दार कैसे कैसे हु, कैसे लब़ा की थाली में छेद किया, कैसे जयचंद हू तो सभी लोग गायब है. अनवर भाई मेरा इ-मेल है........ editor.bhadohinews@gmail.com
FOTOOOOOOOOO ZABARDAST LAGAYA HAI BADE BHAIYA !!!!!!!!
Style bhaaaaaaaai
kyon majak uda rahe hai bade bhai....
aap dono hamare bade bhai hai. ek umra me to ek anubahav me.
harish jee,
vinamrata se kahi hui baat bahut vajan rakhti hai aur aapka vinamra aagrah anavar jamal bhai ko bahut bhaya hai. yah parivar isi tarah se prem ke sath phalta phoolata rahe yahi kaamana hai. shikave aur shikayaten to hoti hi rahati hain lekin ve pratishtha ka prashna nahin banani chahie.
रेखा जी, जब भी आपकी तस्वीर देखता हू, मुझे अपनी माँ की झलक दिखती है, प्लीज मुझे हरीश जी नहीं सिर्फ हरीश का संबोधन किया करें.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
@ भाई हरीश सिंह जी ! आपने अपने ब्लाग पर भी यह पत्र प्रकाशित किया है और वहाँ जनाब सुशील बाकलीवाल जी के पूछने पर मुझे लगा कि जिस पोस्ट से आपकी और मेरी इस गुफ्तगू की शुरुआत हुई है उसका लिंक भी लोगों के सामने रहे तो उनके लिए बात को उसके तमाम पहलुओं के साथ समझना आसान रहेगा . तब मैंने सुशील जी से कहा कि...
@ जनाब सुशील बाकलीवाल जी ! पूरी बात जानने के लिए निम्न पोस्ट देखना ज़रूरी है.
ईमान की ताक़त परमाणु बम की ताक़त से ज़्यादा होती है The power of Iman
anwar bhai. aap musalman hai. main hindu. par aap mere bade bhai hai. main jaldi hi LBA se bahar nikala jane wala hu hu. kyon jab mujhe nikal diya jayega tab bataunga. mujhe pata hai salim bhai kiski vajah se dabav me hai. aur ek bat bata du ek din main aapke ghar aaunga aur aap mujhe usi tarah milenge jaise ek bada bhai apne chote bahi se milta hai. yah mera wada hai.
@@ कौन अफवाह फैला रहा है कि आपको निकाला जायेगा ?
गलत बातों को मन में जगह मत देना कभी .
आपका बड़ा भाई जब जिंदा है तब तक आप यहीं रहेंगे .
मुझे निकाल सके इतना दम किसी में है नहीं ठाकुर साहब .
मैं अपने अहंकार को हमेशा ऐसे मौकों के लिए ही बचाकर रखता हूँ.
हरीश भाई, आप हिन्दू हो और मैं मुसलमान हूँ.
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना.
आप LBA में तब तक रहेंगे जब तक आप चाहेंगे, इंशाअल्लाह !
जो भी रावण आपको बहका रहा है वह गद्दार है और आपका ख़ैरख्वाह नहीं है.
सत्य वचन सलीम भाई ।
जो ऐसा कह कर आपस में फुट डालने की कोशिश कर रहा है वो कलयुगी रावण का ही पार्ट अदा कर रहा है ।
धन्यवाद ।
हरीश सिंह @ jee abhee bhee main jawan hoon..
जिस तरह आपको मुसलमान होने पर गर्व है उसी तरह हमें अपने हिन्दू होने पर गर्व है.
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गर्व से कहो हम इंसान हैं
देर आयद दुरुस्त आयद....