Thursday, March 25, 2010 | By सलीम ख़ान, स्वच्छ-सन्देश: विज्ञान की आवाज़ पर HTTP://SVACHCHHSANDESH.BLOGSPOT.COM
सर्वप्रथम मैं जनाब केके मिश्रा और जनाब डीपी मिश्रा को धन्यवाद कहना चाहता हूँ जो dudhwalive.com व अपने ब्लॉग के माध्यम से निरन्तर प्रकृति के प्रति जागरूकता फैला रहें हैं. जनाब डी पी मिश्रा जी से मेरा परिचय लगभग दो वर्ष पुराना है और वे मेरे भाई समीउद्दीन नीलू (लखीमपुर खीरी में कार्यरत अमर उजाला संवाददाता) के मित्रों में से हैं. मैं ज़िला पीलीभीत का रहने वाला हूँ जो लखीमपुर का पड़ोसी ज़िला है. दुधवा नेशनल पार्क मेरे घर के 60-70 किमी. की दूरी पर है. जनाब डीपी मिश्रा जी ने मुझे पिछले वर्ष एसएम्एस द्वारा बताया था कि आने वाले २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस है. एसएम्एस आया, जागरूकता भी बढ़ी लेकिन मुझे बहुत ज़्यादा जज़्बाती बना गयी. और उस वक़्त ये लेख मैंने लिख डाला...आप भी पढ़िए !!!
मुझे याद है बचपन में झाले (HUT) के केंद्र में लगे लकड़ी के बीम के ऊपर गौरैया अपना घोंसला बनाती थी और उसमें अंडे देती थी जिसमें से कुछ दिन बाद बच्चे निकलते थे. मुझे याद है, मैं बहुत देर-देर तक घोंसले और गौरैया के बच्चों को निहारता रहता था. वैसे मैं आपको बता दूं कि बचपन में मैं प्रकृति के प्रति बहुत ज़्यादा संवेदनशील था. मेरे घर में उस वक़्त 12 अमरुद के पेड़ 7 आम के पेड़ और अन्य पेड़ भी लगे थे जिनमें नीम्बू, बाँसवाड़ी आदि थे. यही नहीं मेरे घर के आगे बागीचा था जिसमें तरह के फूल लगे थे. बगीचा में भी तरह की चिड़ियों ने अपना घोंसला बनाया हुआ था जिनमें गौरैया और बुलबुल मुख्य रूप से थीं जिनका स्मरण मुझे अभी तक है. मगर अफ़सोस कि अब शहर में ही ज़्यादातर रहने के कारण वहां पर किसी भी प्रकार की कोई देखभाल भी नहीं हो पा रही है.
मुझे एक बात का स्मरण और भी है आज से क़रीब 7-8 वर्ष पूर्व एक रिश्तेदार ने मुझसे पूछा कि 'सलीम, क्या तुम्हे मालूम है कि आने वाले वक्तों में गौरैया गुम हो जायेंगी और उनका नामों-निशाँ तक नहीं बचेगा?' मैंने पूछा- 'वो कैसे?' उन्होंने कहा कि 'ये जो मोबाइल है इनके विनाश का मुख्य कारण बनेगा!!!' तभी से मुझे यह ज्ञात हुआ कि ये संचार क्रांति ही गौरैया के विनाश का मुख्य कारण बन रही है. बिजली के तार, माइक्रोवेव, मोबाइल टावर की वजह से गौरैया खत्म होती जा रही हैं. यह तो एक कारण है ही और मैं इससे भी बड़ा कारण मानता हूँ कि भौतिकवाद ने हमें पत्थर दिल बना दिया है !
आप अपने आप से पूछिये क्या आप इन चिड़ियों गोरैया आदि को देख कर बचपन में खुश न होते थे? क्या आपको ऐसा कुछ करने का मन नहीं होता था, आप उनके लिए भी कुछ न कुछ करें जिससे वे हमेशा या ज़्यादातर आपकी आँखों के सामने रहें? सुबह को क्या आपको चिड़ियों की चहचहाट सुहानी नहीं लगती थी? क्या सांझ ढले इनके घोंसलों की वापसी की बेला में इनका सुहाना शोर एक संगीतात्मकता सा अनुभव न कराता था? आखिर हम इतने कठोर कैसे हो गए? हम प्रकृति के प्रति इतने उदासीन क्यूँ हो रहें है? इन सब सवालों में ही इन पक्षिओं के बेहतरी का जवाब छुपा है!!
गौरैया कैसी होती है?
गौरैया एक छोटी चिड़िया है. यह हल्की भूरे रंग या सफ़ेद रंग में होती है. इसके शरीर पर छोटे छोटे पंख और खुबसूरत सी पीली चोंच होती है और पैरों का रंग हल्का पीला होता है. नर गोरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है. 14 से 16 सेमी. लम्बी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आस पास रहना पसंद करती हैं. यह लगभग हर तरह की जलवायु में रहना पसंद करती हैं. शहरों और क़स्बों में बहुतायत से पाई जाती है. नर गौरैया के सिर का उपरी भाग, नीचे का भाग और गालों के पर भूरे रंग का होता है. गला चोंच और आँखों पर कला रंग होता है और पैर भूरे होते है. मादा के सिर और गले में भूरा रंग नहीं होता है. सामान्यतया नर गौरैया को चिड्डा और मादा गौरैया को चिड्डी अथवा चिड़िया कहते हैं.
गोरैया संरक्षण कैसे हो?
गौरैया को बचाने की मुहीम सिर्फ ज़ुबानी ही न हो बल्कि ज़मीनी भी हो. हम सिर्फ चर्चा ही न करें बल्कि उस पर अमल भी करें! हम उनके लिए अपने घर में उनके घोंसलों के लिए कुछ सेंटीमीटर जगह दें, अपने निवाले में से दो चार दाने उनके लिए छोड़ दें!
आधुनिक होते हमारे रिहाइशी आशियानों में कुछ जगह इनके लिए भी दें, इनमें कुछ खुली जगहों पर गड्ढेनुमा आकृतियाँ बनाईये, लकड़ी आदि का बॉक्स बनाईये. अपने घर के खाने के बचे हुए अन्न को नाली में फेंकने के बजाये उन्हें खुली जगह में रखें जिससे ये पक्षी अपनी भूख मिटा सकें. प्लीज़...!!!
-सलीम ख़ान
स्वच्छ सन्देश: विज्ञान की आवाज़ (से)
बहुत सुन्दर आलेख. हमें चिंतन करना होगा.
vah slIm bhae bhut achhi jankari di.
hme es gambhir muddo per manan chintan krne ki jrurt hai.
बहुत अच्छी पोस्ट .