'नुक्कड़' ब्लाग की एक पोस्ट पर आज मेरी नज़र पड़ी तो लगा कि इस पोस्ट का शीर्षक ही दोषपूर्ण है । उसका शीर्षक है 'हिंदी ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर आ गई'। बड़ी ख़बर को बताने के लिए महाख़बर शब्द पर्याप्त है । महाख़बर से पहले बड़ी शब्द लगाना बिल्कुल फ़िज़ूल है ।
मुझे लगा कि समूह ब्लाग्स में लगातार 3 महिलाओं की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को सबसे बड़ी महाख़बर माना गया होगा और शायद अब उसी तर्ज़ पर 'नुक्कड़' में भी किसी महिला को ही प्रमुख चुना गया होगा लेकिन जब मैंने पोस्ट पढ़ी तो मेरी दर्जन भर आशाओं पर तुषारापात टाइप सा कुछ हो गया और अहंकार तो मेरे अंदर भाई हरीश बताते ही हैं लेकिन वह क्रोध के बिना कभी रहता नहीं सो वह भी अपनी रज़ाई उतारकर अंगड़ाईयाँ लेने लगा और समझ गया कि अनवर जमाल ने आज फिर कोई मोटी सी गर्दन फंसा ली है । वह उठकर अंगड़ाईयाँ लेने लगा और फिर स्टोर रूम से अपनी गदा लेने चला गया । जब तक वह वापस लौटे और कपाल क्रिया शुरू करे तब तक जल्दी से पहले इस पोस्ट पर मैं अपनी प्रतिक्रिया तो दे दूं।
(खंखारकर गला साफ़ करने के बाद)
हाँ तो , इससे केवल यह पता चलता है कि हिंदी ब्लाग जगत में बड़े कहलाने वाले ब्लागर्स को अपने गुट के किसी पसंदीदा आदमी की खबर ही सबसे बड़ी महाख़बर दिखाई देती है। यह दुखद भी है और शोचनीय भी और इससे भी ज़्यादा शोचनीय बात यह है कि लोग अपनी समीक्षा में कुछ सुनना तक पसंद नहीं करते । अभी एक ब्लागर ने अविनाश जी को कुछ Point out कर दिया तो जनाब अविनाश जी ने उन्हें तुरंत अपने समूह के तमाम ब्लाग्स से ही Out कर दिया जबकि अनवर जमाल तो ऐसे लोगों को तलाश करता है जो कि उसके लेखों की समीक्षा करते हों । ऐसे समीक्षकों को मैंने खुद अपने समूह ब्लाग 'हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल HBFI' में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया और शामिल भी किया ।
लोगों को मुझसे प्रेरणा लेकर अपने ग़लत और मनमाने आचरण से तौबा करनी चाहिए और मालिक से क्षमा भी माँगनी चाहिए।
लेकिन फिर भी
भाई अजित वडनेरकर जी को बधाई !
वे सन्मार्ग पर चलकर परलोक में भी मालिक के सच्चे ईनाम के हक़दार बनें , ऐसी मैं कामना करता हूं
और साथ ही इस पोस्ट के शीर्षक पर ऐतराज़ करता हूं।
अजित जी को पुरस्कार मिलने की घोषणा को ब्लाग जगत की सबसे बड़ी घटना कैसे कहा जा सकता है ?
ब्लागवाणी आदि एग्रीगेटर्स के आने और चले जाने को और उनकी जगह हमारी वाणी के स्थापित हो जाने को 'ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर' क्यों नहीं माना गया ?
3 सामूहिक बलाग्स में एक के बाद एक तीन महिलाओं को रेखा श्रीवास्तव जी को LBA का, रश्मि प्रभा जी को HBFI का और वंदना गुप्ता जी को AIBA का अध्यक्ष बनाया गया जो कि ब्लाग जगत में संरचनात्मक बदलाव लाएगा । यह वाकई ब्लाग जगत की सबसे बड़ी खबरों में से एक है । इन दोनों ही घटनाओं का असर पूरे ब्लाग जगत पर पड़ा है और पड़ता रहेगा।
सचमुच की इन महाख़बरों की मौजूदगी में किसी को पुरस्कार मिल जाने की आए दिन घटित होने वाली सामान्य सी घटना को ब्लाग जगत की सबसे बड़ी ख़बर कैसे कहा जा सकता है ?
क्या यह पुरस्कार अजित जी को कोई ब्लाग लिखने पर दिया जा रहा है ?
ख़ैर , वह अपनी गदा लेकर आ रहा है । अब मैं चुप हो रहा हूं और ...
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sahi hai aaj ke parivartan pradhan samay me yah kahna vastav me mushkil hai ki yahi sabse vishesh hai.vicharniy post..
प्रिय डा. साहब जरा एसोसिएशन , ब्लॉगर्स संगठन आदि की आंधी से बाहर झांके तो ही न शायद आपको पता चले कि ये वाकई बडी खबर हैं । हर चीज़ को गुटबाजी से जोड कर रख देना कमाल की बात लगती है । अजित वडनेकर जी की नई किताब शब्दों का सफ़र को हिंदी साहित्य के प्रतिष्टित सम्मान विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार के लिए चुना गया है । और ये उनके ब्लॉग पर लिखी गई तमाम पोस्टों का ही संकलन है । अब बताइए , कि क्या ये हिंदी ब्लॉगिंग और ब्लॉगर्स के लिए बडी बात नहीं है ?
फ़िर भी आपको लगता है कि ये कोई बडी खबर नहीं है और एसोसिएशन का गठन और उनपर अधिकारियों का चयन ही मात्र आज ब्लॉगिंग की बडी खबर है तो क्षमा चाहता हूं ।
अजय झा जी मै आपसे सहमत हूँ ,जित वडनेकर जी को यह पुरस्कार मिलना वास्तव में हिंदी ब्लॉग जगत के लिए गर्व की बात है.
पुरस्कार आवंटन के पीछे होता है अपने उत्पाद के प्रचार की मंशा
@ आदरणीय मैथिली ब्राह्मण महापत्रकार जनाब अजय कुमार झा जी ! जो जानकारी आपने दी है वह जानकारी नुक्कड़ की उपरोक्त पोस्ट में तो है नहीं जो कि पोस्ट का एक भयंकर दोष है । आपने इस दोष को उजागर करके वास्तव में ही एक सराहनीय काम किया है । हिंदी ब्लाग जगत में पिछले 6 वर्षों के दौरान लाखों लेख लिखे गए जिन्हें देश विदेश की तमाम संस्थाओं द्वारा नज़रअंदाज किया गया जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है । अब जाकर उन लाखों पोस्ट्स में से मात्र चंद पोस्ट के एक संकलन को ईनाम से नवाजा जा रहा है तो भाई अजित वडनेरकर जी का इसमें क्या दोष ?
वे तो यही समझ रहे होंगे कि प्रकाशक उन्हें सम्मान दे रहा है जबकि ये मुनाफ़ाख़ोर धंधेबाज़ प्रकाशन संस्थाएँ गुटबाजी में हिंदी ब्लागर्स की भी चाची होती हैं । पुरस्कार आवंटन के पीछे होने वाले 'आदर्श घोटाले' और उनके पीछे होने वाली राजनीति को आज हरेक आला पत्रकार जानता है , आप भी जरूर जानते होंगे ।
इस सबके बावजूद यह एक ख़ुशख़बरी है । ऐसा हम कह चुके हैं और बधाई भी दे चुके हैं ।
आपका लेख भी इस पुस्तक में हो तब भी यह कहना ग़लत है कि 'हिंदी ब्लाग जगत की सबसे बड़ी महाख़बर आ गई'
...@ अजय जी ! अब आप यह बताएँ कि इस संकलन में आपका लेख है कि नहीं ?
अगर है तो आपको भी बधाई !
बड़ी खबर और छोटी खबर का तो पाता नहीं लेकिन अच्छी खबर है
talwar ki dhar ko fail karti shabdo ki dhar ke liye badhai......
@ हरीश जी ! आपने सत्य का समर्थन किया और सच का साथ देना आज सचमुच सबसे बड़ी खबर कहलाने की हकदार है और इसे घटित करने के लिए आपको एक करोड़ रुपए के पुरस्कार मिलने पर प्राप्त होने से भी बड़ी बधाई आज मैं आपको यहीं देता हूँ ।
देखो ! आपने इतना बड़ा काम किया और आपको इतना बड़ा पुरस्कार और बधाई भी मिली लेकिन अब इस खबर को कोई भी हिंदी ब्लाग जगत की सबसे बड़ी खबर नहीं कहेगा ।
इससे पता चलता है कि इनकी नज़र में दौलत की इज़्ज़त है सच की नहीं और न ही उस पर मिलने वाली बधाई की ।
देश और हिंदी के पतन के जिम्मेदार वास्तव में यही लोग हैं ।
देश और हिंदी के पतन के जिम्मेदार वास्तव में यही लोग हैं ।
हा हा हा हा हा ..कौन लोग ्ब्लॉगर्स न ..क्या जमाल भाई आप भी न ..। नहीं महाराज मेरा कोई लेख नहीं है उसमें ., पोस्ट पर टिप्पणियां हैं ..। चलिए बहुत छोटी सी ...बस ज़रा सी बित्ते भर की खबर तो होगी ही ..खुशी की भी है ..आखिर किन्हीं ब्लॉगर मित्र का सम्मान ही किया जा रहा है .....आपकी वाली खबर को बडी खबर मानते हुए हम सभी पदाधिकारियों को बधाई देते हैं और ..उम्मीद करते हैं कि कि हिंदी के उत्थान में उनका अमिट योगदान रहे । शुक्रिया ज़नाब ..अब बार बार तो आकर टीप नहीं सकूंगा आभार स्वीकारें
-----वाह!!!!!!!!!!! अनवर भाई, आप भी कभी-कभी वाकई कमाल की बात कह देते हैं.... ...वास्तव में शब्दों के सफ़र से समाज का, व्यक्ति का, किसी का क्या भला हुआ व किताब से क्या होने वाला है, या शब्द-कोश से नकल करके लिखे गये ब्लोग या पुस्तक का क्या लाभ है सार्थकता है यह मुझे भी कभी समझ नहीं आयी.....अभी कुछ दिन पहले मेरी अजित जी से काफ़ी लम्बी बात-चीत चली थी उनके ब्लोग -कमेन्ट पर ( बाद में वे ईमेल पर आगये ?)....
--सत्य तो वही है यह सब प्रकाशकों के धन्धे वाली बात है....
----पर एक ब्लोगर को पुरस्कार मिले यह खुशी की ही बात है...समाज-साहित्य, लाभ-हानि बाद में देखा जायगा...कौन देखता है...
@ आदरणीय डा. श्याम गुप्ता जी !
वाह वाह जी वाह वाह !!!
आप भी कभी कभी हमारी बात की तस्दीक़ करके हमारी उम्मीद के दिए की लौ को बढ़ा देते हैं लेकिन कृप्या आप LBA के हित में हमारा विरोध जारी रखें क्योंकि लोगों को आम तौर पर न तो सत्य की खोज है और न ही किसी अमूल्य गूढ़ ज्ञान की। वे तो केवल मनोरंजन चाहते हैं और उनका मनोरंजन होता है इस जैसी पोस्ट पर या फिर तब जब आप या हरीश जी मेरा विरोध करते हैं । अब हरीश जी तो मेरा विरोध करते नहीं ।
कृप्या आप आगे से मेरा समर्थन न किया करें।
आज मिथिलेश जी की टिप्पणी LBA के हित में होने के कारण सराहनीय कही जा सकती है ।
@ आदरणीय महापत्रकार अजय कुमार झा जी ! देश और हिंदी की दुर्दशा के ज़िम्मेदार वे लोग हैं जो गुटबाज हैं अब चाहे वे ब्लाग जगत में हों या उससे बाहर ।
इस संकलन में आपकी टिप्पणी शामिल है । यह वाक़ई एक ख़ुशी की बात है। भाई अजित वडनेरकर जी को पुरस्कार मिलने पर भी हम ख़ुश हैं और हमें तब और भी ज्यादा खुशी होगी जबकि अजित जी पुरस्कार में मिलने वाली एक लाख रुपये की राशि बराबर बराबर उन सभी लेखकों में बाँटेंगे जिनके उत्तम लेखों के कारण उन्हें यह पुरस्कार मिल रहा है अन्यथा वे भी एक ऐसे मौक़ापरस्त आदमी माने जाएँगे जो कि दूसरों की मेहनत को खुद कैश करता है और ऐश करता है। हिंदी लेखकों का शोषण करने वाले ऐसे लोग भी देश और हिंदी की दुर्दशा के लिए बढ़िया तरीके से जिम्मेदार हैं ।
डॉ. साहब आपने मुझे सच कहने का हौसला दिया, आभार प्रकट करते हुए कहना चाहूंगा कि हम सबकी नज़र पुरस्कार की राशि पर क्यों लगी हुई है, हमें धन से ऊपर उठकर सोचना होगा, यह आपकी क्लास के लिए भी अच्छा विषय हो सकता है। वैसे मैं बतला दूं कि पुस्तक लेखों का संग्रहण नहीं है, उसमें सारी सामग्री अजित भाई की मौलिक रचनात्मकता, शोध और समय का अद्भुत संगम है, जो वाकई सभी शब्दों के सिपाहियों, कीबोर्ड के खटरागियों, ब्लॉगकार साथियों के काम आएगा। आप जल्द ही शब्दों के सफर की नई पोस्ट में इस टिप्पणी के शब्द ब्लॉगकार पर भी अवश्य चर्चा पायेंगे। आप शब्दों का सफर पर सफर करके भी क्लास के लिए काफी बेहतरीन सामग्री पर पाठ तैयार कर सकते हैं।
आपसे मिलने की उत्कट इच्छा है। जब भी आप कोई आयोजन करें तो सूचित कीजिएगा, पहुंचकर शामिल होकर प्रसन्नता होगी। चाहे एक गठबंधन न सही, पर विचारबंधन तो बन ही सकेगा। मेरा दर तो सभी साथियों के लिए खुला ही हुआ है। मन के सब दरवाजे खोलकर मैं आपकी प्रतीक्षा कर रहा हूं।
ऊँट के फ़ोटो ने किताब को बनाया ईनाम का हक़दार
@ जनाब अविनाश वाचस्पति जी ! आपके दिल के दरवाज़े हमारे लिए खुले हुए हैं , यह एक खुशी की बात है लेकिन हमने अपने सामूहिक ब्लाग HBFI का निमंत्रण आपको भेजा , आपने उसे स्वीकार क्यों न किया ?
और क्यों आपने हमें अपने समूह ब्लाग्स में से दो चार में शामिल होने हेतु आमंत्रित न किया ?
जनाब दिल के दरवाज़े अगर खुले हैं तो अंदर भी तो आने दीजिए न ?
:) :)
हक़ीक़त यह है कि 'शब्दों का सफ़र' तो हमें पसंद आएगी ही क्योंकि उसके टाइटिल पर छपे ऊँट और रेगिस्तान देखकर ही हमारी तबियत हरी हो गई थी।
अजित वडनेरकर जी वाक़ई क़ाबिले मुबारकबाद हैं ।
इस किताब के बारे में जो जानकारी टिप्पणियों में क़िस्तवार आई है , अगर वह आपकी पोस्ट में होती तो लोगों को किताब का सही परिचय मिलता और यूं क्लास न लेनी पड़ती।
हमारी यूनिवर्सिटी के एक गेस्ट प्रोफ़ेसर तो आप ख़ुद हैं । इस किताब से नए ब्लागर्स के लिए कारआमद जानकारी एकत्र करके आप उसे एक लेक्चर की शक्ल दे दीजिए ,
इंशा अल्लाह, हम उसे आपकी तरफ़ से पेश कर देंगे ।
आपने घर बुलाया है तो हम ज़रूर आएंगे और आते ही आपको कलिमा पढ़वाएंगे क्योंकि इसके अलावा कुछ और हमारा न तो काम है और न मक़सद ।
:) :)
आमने सामने तो मुलाकात चाहे बाद में हो लेकिन दूरभाष पर तो हम चैटिंग तुरंत कर सकते हैं । आप अपनी खास email id दीजिए हम आपको अपना नंबर भेज देंगे ।
इस सब में अजित जी की किताब को ब्लाग जगत में फ़ुल प्रचार मिला है । आपकी पोस्ट को कल हमारी वाणी के ज़रिए केवल 25 लोगों ने पढ़ा जबकि हमारी तीनों पोस्ट्स को 160 से ज्यादा लोगों ने देखा । इसके बावजूद अजित जी ने आपको तो धन्यवाद कहा लेकिन हमें धन्यवाद न दिया । लोग ब्लागिंग ज़रूर कर रहे हैं लेकिन इन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि कौन सी बात इन्हें किस तरह लाभ पहुँचा रही है ?
मुझे विरोध से हमेशा लाभ पहुँचा है और अब ऐसे ही दूसरों को मैं खुद पहुँचा रहा हूँ ।
आप समझ सकते हैं।
:) :)