Saturday, January 02, 2010 | By सलीम ख़ान
लोककथाओं में ही नहीं अनेक किवदंतियों में भी आसमान से ईश्वर का क़हर बरसने के किस्से प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। हालाँकि इन कथाओं को हमेशा शक की निगाह से देखा जाता रहा है, लेकिन आज के घोर वैज्ञानिक युग में भी कुछ ऐसे हालात बन रहे हैं, कि लोक कथाओं के वह किस्से हमें सच होने जैसे लग रहे हैं। बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण के कारण हमारे वायुमण्डल में 'अम्ल वर्षा' की संभावनाएं प्रबल होती जा रही हैं। यह अम्ल वर्षा किन्हीं मामलों में ईश्वरीय कहर से कम नहीं। यह क्या है और इसके पीछे क्या कारण हैं?
'अम्ल वर्षा' को अंग्रेज़ी में 'acid rain' कहते हैं. जैसा कि नाम से ही लग रहा है कि यह किसी प्रकार की वर्षा है जो अम्लीय होगी. गाड़ी, औद्योगिक उत्पादन आदि के प्रक्रिया के उपरान्त निकली ज़हरीली गैसें (सल्फर-डाई- ओक्साईड और नाइत्रोज़न ओक्साईड) जो कि ऊपर बारिश के पानी से मिल कर अम्लीय अवस्था में आ जाती हैं. वह वर्षा जिसके पानी में यह गैस मिल जाती है अम्ल वर्षा कहलाती है.
ज़हरीली गैसों के अम्लीय अवस्था तक का ख़तरनाक सफ़र
(ज़हरीली गैस + जल = अम्ल)
इसका वैज्ञानिक सूत्र इस प्रकार है:-
SO2 + H2O = H2SO4 (Sulfuric Acid)
(ज़हरीली गैस + जल = अम्ल)
इसका वैज्ञानिक सूत्र इस प्रकार है:-
SO2 + H2O = H2SO4 (Sulfuric Acid)
NOx + H2O = HNOx (Nitric Acid)
अम्ल वर्षा हमारे लिए पर्यावरण सम्बन्धी मौजूदा समस्याओं में से एक सबसे बड़ी समस्या है. यह अदृश्य गैसों से निर्मित होती है जो कि आम तौर पर ऑटोमोबाइल या कोयला या जल विद्धुत संयंत्रों के कारण वातावरण में बनतीं है. यह अत्यंत विनाशकारी होती है.
वैज्ञानिकों ने इसके बारे में सबसे पहले सन 1852 में जाना. एक अँगरेज़ वैज्ञानिक रॉबर्ट एग्नस(Robert Agnus) ने अम्ल वर्षा के बारे सबसे पहले इसे परिभाषित किया और इसके कारण और विशेषताओं की व्याख्या की. तब से अब तक, अम्ल वर्षा के वैज्ञानिकों और वैश्विक नीति-निर्माताओं के बीच तीव्र बहस का एक मुद्दा रहा है.
वैज्ञानिकों ने इसके बारे में सबसे पहले सन 1852 में जाना. एक अँगरेज़ वैज्ञानिक रॉबर्ट एग्नस(Robert Agnus) ने अम्ल वर्षा के बारे सबसे पहले इसे परिभाषित किया और इसके कारण और विशेषताओं की व्याख्या की. तब से अब तक, अम्ल वर्षा के वैज्ञानिकों और वैश्विक नीति-निर्माताओं के बीच तीव्र बहस का एक मुद्दा रहा है.
अम्ल वर्षा अति-प्रदूषित इलाक़े में बड़ी दूर तक बड़ी आसानी से फैलती है. यही वजह है कि यह एक वैश्विक प्रदूषण समस्या है. जिसके लिए विभिन्न देश एक दुसरे पर तोहमत लगाते हैं. जबकि कोई भी इसके प्रति उतना गंभीर नहीं है जितनी तेज़ी से यह समस्या बढ़ रही है. पिछले कुछ सालों में विज्ञान ने अम्ल वर्षा के मूलभूत कारणों को जानने की कोशिश कि तो कुछ वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि मानवीय उत्पादन मुख्य रूप से जिम्मेदार है तो वही कुछ वैज्ञानिकों ने इस समस्या का ज़िम्मेदार प्राकृतिक कारणों को माना. वस्तुतः सभी देशों को अम्ल वर्षा के कारणों और उसके दुष्प्रभावों के प्रति सजग रहना होगा.
ई त लगता हैं कि कौनो अख़बार का लेख छाप दिए हैं आप.
lekh chahe kahin se liya ho kintu mahtvapoorn bat kahi hai aapne.dhyan dena hoga...
सही तारकेश्वर जी---बहुत पुरानी कहानी है,दुनिया भर को पता है....२०० साल से...और वेदों में ४०००० साल से....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बिल्कुल सही कह रहें हैं आप मैं आपकी बात से सहमत हूँ पर जिस गति से दुनियां आगे बढ रही और जिस कदर इन्सान की जरूरतों मै इज़ाफा हो रहा है तो इससे तो लगता है इसपर अंकुश लगाना थोडा मुश्किल ही काम है , पर हाँ अगर मिलकर प्रयास किया जाये तो कुछ हद तक इसे सफल बनाया जा सकता है !
विचारणीय प्रस्तुति !
No, its my own article Tarkeshwar bhai ! Thanks for comments.
nice post.
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! क्यों नाहक़ डींग हाँक रहे हैं ?
कौन सा नया विद्वान निकल आया जो वेदों को 40 हज़ार साल पुराना मानता है ?
श्री पवन कुमार मिश्रा जी पीएचडी भी हैं और प्रोफ़ेसर भी । वे तो वेदों को साढ़े तीन हज़ार साल पुराना मानते हैं ।
आप दोनों में झूठा कौन है ?
कितने दिन बाद बताएंगे ?