अजहुं विरज है ब्रज मनभावन ।
अजहुं विरज़ हैं ब्रज की बतियां,चंचल चित्त चुरावन।
अजहुं विरज हैं ब्रज के बासी सूधे सरल सुहावन |
भईं विरज़ सब कुञ्ज गलीं,शुचि सुन्दर सुख सरसावन |
विरज़ भये तरु पात पुष्प वन उपवन पवन बहावन |
अजहूँ वंशी धुनि सुनि पैहैं , रवि-तनया के कछारन |
जिधों कान्ह खेलत-डोलत, करि लीला पर दुःख हारन |
तरु कदम्ब की छाँह जो साखी,श्यामा-श्याम मिलापन |
अजहुं विरज़ है ब्रज की या रज, परसी लीला-भावन |
परसत ही नसि जैहें जग के कलुष औ करम अपावन |
विरज़ होय तन मन निरखे ब्रज, बरसानौ ,वृन्दावन |
कन कन अजहूँ श्याम सुमिरिहै, मोहन मोह नसावन ||
achhi abhibykti
sundar rachna