किताब के सफ़े पर लिखे
इबारत की तरह
यादों की खिड़की से झांकते पल
वो सुबह का अलसाना
वो माँ का आँचल
फिर सुरमई सुबह मे
धूप के फिसलते कतरों का
करवट लेता तीखापन
सरसों के पीले लहराते फूल
सोंधी सी रसोई का धुआं
लौट आते वो दिन .............................!
खिड़की के पल्ले से ....
घुस आतें हैं वो पल
दिल के दरीचों से
झांकती _ वो भीनी सी
खुश्बुओ से भरी
स्नेहसिक्त आँखें
लौट जाता है मन _ ब़ार -ब़ार
उन खुले वीरानो की अंगडाइयों
को छूने को बेताब
इबारत की तरह
यादों की खिड़की से झांकते पल
वो सुबह का अलसाना
वो माँ का आँचल
फिर सुरमई सुबह मे
धूप के फिसलते कतरों का
करवट लेता तीखापन
सरसों के पीले लहराते फूल
सोंधी सी रसोई का धुआं
लौट आते वो दिन .............................!
खिड़की के पल्ले से ....
घुस आतें हैं वो पल
दिल के दरीचों से
झांकती _ वो भीनी सी
खुश्बुओ से भरी
स्नेहसिक्त आँखें
लौट जाता है मन _ ब़ार -ब़ार
उन खुले वीरानो की अंगडाइयों
को छूने को बेताब
तम्मनाओं का aashiyan
तिनके- तिनके इकट्ठा करता है _
ब़ार ब़ार थिरक कर
कह उठता है _मन !
मिल जाते वो पल _छिन!
तिनके- तिनके इकट्ठा करता है _
ब़ार ब़ार थिरक कर
कह उठता है _मन !
मिल जाते वो पल _छिन!
द्वारा _
रूप @ roop62.blogspot .com
kash laut aate we din. achchhi kavita
बहुत बढ़िया!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com