१- पद ...
हे घन बरसो बन कर प्यार |
प्राण सुधा बन सरसे तन मन जीवन हो रस सार |
नैन नैन में रस रंग बरसे सप्तम सुर झंकार |
मन मन हरषे जन जन झूमे , झूम उठे संसार |
प्रीति की वंसी बजे, बसे जग राधा-कान्ह का प्यार |
प्रीति बसे मन सब जग अपना, प्रीति के रंग हज़ार |
प्रीति के दीप जलाए चलो नर, सब जग हो उजियार |
प्रीति किये से प्रीति मिले जग , मिले सकल सुख- सार |
श्याम, जो प्रभु की प्रीति बसे मन, मिले ब्रह्म साकार ||
२- छप्पय- --
आयेगी वह सदी जब, जल कारण हों युद्ध |
सदियों पहले भी हुए, जल के कारण युद्ध |
उन्नत मानव हुआ, प्रकृति सह भाव बनाया |
कुए बावडी ताल बने , जन मन हरषाया |
निज सुख हित जो नाश प्रकृति का मनुज करता नहीं |
जल कारण फिर युद्ध ,पतन की बात सुन सकता कहीं ||
bahut sundar.....manbhavan
धनयवाद अनाजी...