आखि़र कोई बाप ऐसा लापरवाह कैसे हो सकता है ?
रचना जी का ऐतराज़ वाजिब है . देखिये लिंक -
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/08/blog-post_9052.html
ऐसे लोग हमारे चारों तरफ़ हैं जो कि दूसरे लोगों को बताते रहते हैं ग़लत क्या है ?
और ख़ुद उसी ग़लत पर चलते रहते हैं .
दूसरों की बेपर्दा लड़कियों को तकते हैं और उनके बदन के एक एक अंग का नाप ऐसे लेडीज़ टेलर की तरह निगाहों से ही ले लेते हैं।
...लेकिन अपनी बहन-बेटियों को अपने ही जैसी गंदी निगाहों से बचाने के लिए हिजाब ज़रूरी नहीं मानते।
दरअसल इन लोगों के पास कोई साफ़ गाइडेंस ही नहीं है कि औरत अपने शरीर का कितना भाग ढके और क्यों ढके ?
इसीलिए वे मन की मर्ज़ी कुछ भी पहन रहे हैं .
...लेकिन दुख की बात तो यह है कि आज मुसलमान भी इसी रास्ते पर है.
मुसलमान के पास तो साफ़ हिदायत मौजूद है ,
फिर वह गुमराही के रास्ते पर क्यों गामज़न है ?
हमें अपनी फ़िक्र करनी चाहिए .
...क्योंकि आखि़रत में अल्लाह हमसे दूसरों के नहीं बल्कि हमारे आमाल के बारे में सवाल करेगा और नाफ़रमानी का अंजाम आग का गड्ढा होगा .
देख लीजिये - सूरए यूनुस – चौथा रूकू
तुम फ़रमाओ कि अल्लाह हक़ की राह दिखाता है, तो क्या जो हक़ की राह दिखाए उसके हुक्म पर चलना चाहिये या उसके जो ख़ुद ही राह न पाए जब तक राह न दिखाया जाए (13)तो तुम्हें क्या हुआ कैसा हुक्म लगाते हो {35} और(14)
उनमें अक्सर तो नहीं चलते मगर गुमान पर (15)
बेशक गुमान हक़ का कुछ काम नहीं देता, बेशक अल्लाह उनके कामों को जानता है {36}

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यह सही है कि किसी को एक उंगली दिखाओ तो तीन उंगली उसी वक्त अपनी ओर इशारा करती हैं मगर एक बालिग लड़की किसी पिता की खरीदी हुई गुड़िया नहीं कि वह जो चाहे वही पहनेगी। पिता सिर्फ समझा ही सकता है।क्ा्या पहनना है यह उसका नीजी विचार हो सकता है। इसके लिए किसी पिता को जलील करना उचित नहीं। किसी को भी किसी पर उंगली उठाने से पहले खूब सोच लेना चाहिए।