स्वतन्त्र भारत में सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा के पुरोधा ......लोकनायक जय प्रकाश नारायण
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आज जय प्रकाश बाबू का जन्मदिवस है जिन्हें लोकनायक के नाम से जाना जाता है, जय प्रकाश जी गांधीजी के अहिंसात्मक आन्दोलन की पीढ़ी के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. स्वतान्रता के बाद भी वे राजनीतिक लाभों से दूर समाज सेवा के कार्यो से जुड़े रहे , विनोबा जी के साथ सर्वोदय आन्दोलन को भी उन्होंने दिशा दी.
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति जिस पतन व अवसरवादिता की ओर अग्रसर हुई ,उससे वे बहुत व्यथित रहे और लोक तंत्र में सुधार के लिये वे सदैव सचेष्ट रहे . उन्होंने निर्दलीय प्रजातंत्र ,प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार और राजनीति पर लोकनीति की स्थापना जैसे विचार प्रतिपादित किये. उनके विचारों की आलोचना हुई , उन्हें अव्यवहारिक एवं स्वप्नदर्शी कहा गया . जिसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा ,' एक क्रन्तिकारी को स्वप्नदर्शी होना ही चाहिए .यदि ऐसा नही होगा तो उसे नए समाज का चित्र कैसे प्राप्त होगा."
1970 से 1980 के बीच उन्होंने उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभायी.गुजरात के छात्र आन्दोलन को उन्होंने समर्थन दिया.बिहार में भी परिवर्तन की आँधी वहाली, उन्होंने राजनीति में बढ़ती निरंकुशता की प्रवृत्ति के विरुद्ध और व्यवस्था परिवर्तन के लिए अहिंसक आन्दोलन किया .वे युवाओ के मार्गदर्शक और प्रेरणाश्रोत बन गए .देश में जगह जगह निम्नांकित नारा गूंजने लगा -
सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है.भारत वर्ष हमारा है ,
सिंहासन खाली करो , कि जनता आती है .
उनकी सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा न केवल राजनीति बल्कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक,लोकतान्त्रिक एवं प्रगतिशील परिवर्तन पर आधारित थी .उनके आवाहन पर अनेक छात्रो ने एक वर्ष के लिए पढ़ाई छोड़ दी . वामपंथी दलों को छोड़ कर सभी गैर कांग्रेसी दल उनके आन्दोलन में शामिल हो गए, उनके आन्दोलन से तत्कालीन इंदिरा गाँधी कि कांगेसी सर्कार हिल गयी . जब जय प्रकाश जी ने पुलिश व सेना से भी इस आन्दोलन में शामिल होने की अपील की तो सर्कार बौखला गयी , इसी बीच इलाहबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गाँधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया जिससे उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी. चद्र शेखर के नेतृत्व में काग्रेश में युवा ततुर्क के नाम जाना वाला धड़ा भी जय प्रकाश जी के साथ जुड़ गया .
इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने आतंरिक इमरजेंसी घोषित कर दी ,जेपी आन्दोलन से जुड़े सभ नेता तथा वामपंथी डालो सहित सभी गैर कांगेसी दलो के नेता जेल में डाल दिए गए. इमरजेंसी में देश की जनता ने निराकुश्ता का स्वाद चखा. सजय गाँधी के नेतृत्व में युवा कांग्रेस ने देश में मनमानी शुरू कर दी .साकार की परिवार नियोजन के लिए जबरन नसबंदी की नीति ने देश की जनता में भय व दहशत पैदा कर दी. इस समय जय प्रकाश जी के जिस सन्देश से जनता को भरोसा मिला वह था --- डरो मत , मै अभी जिन्दा हूँ ...
सरकार ने भी महसूस किया कि निरंकुशता अधिक दिनों तक नहीं चल सकती , अन्तरराष्ट्री दबाव के कारन भी सर्कार ने नए चुनाव कराये, इमार्जेब्सी समाप्त कर दी गयी , आंदोलनकारियो की विजय हुई . जय प्रकाश जी देश के संरक्षक के रूप में जनता के द्वारा स्वीकारे गए , उनके प्रयास से अनेक दल व राजनीतिक समूह जनता दल के रूप में संगठित हुए और चुनाव में १९७७ के आम चुनन में स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी . इंदिरा जी राय बरेली से चुनाव हार गयी.
नयी सरकार भी जे पी के बताये रास्ते पर नहीं चली .गाँधी कि तरह जे पी को भी उपेक्षित कर दिया गया .
क्षीण स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के कारन जेपी भी टूट गए थे.और कुछ समय बाद उनका निधन हो गया.
अपने अंतरविरोधो के चलते यह सर्कार तीन वर्ष में ही गिर गयी और इंदिरा जी पुनः सत्ता में आ गयी '
स्वतन्त्र भारत के इतिहास में व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में जय प्रकाश के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ........
आज जहाँ प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया अमिताभ बच्चन के जन्म दिवस को प्रमुखता से स्थान दे रहा है , वहां सर्कार एवं मीडिया दोनों ही जय प्रकाश के अमूल्य योगदान को उचित महत्त्व नहीं दे रहे है , यह चिन्तनीय है
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आज जय प्रकाश बाबू का जन्मदिवस है जिन्हें लोकनायक के नाम से जाना जाता है, जय प्रकाश जी गांधीजी के अहिंसात्मक आन्दोलन की पीढ़ी के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. स्वतान्रता के बाद भी वे राजनीतिक लाभों से दूर समाज सेवा के कार्यो से जुड़े रहे , विनोबा जी के साथ सर्वोदय आन्दोलन को भी उन्होंने दिशा दी.
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति जिस पतन व अवसरवादिता की ओर अग्रसर हुई ,उससे वे बहुत व्यथित रहे और लोक तंत्र में सुधार के लिये वे सदैव सचेष्ट रहे . उन्होंने निर्दलीय प्रजातंत्र ,प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार और राजनीति पर लोकनीति की स्थापना जैसे विचार प्रतिपादित किये. उनके विचारों की आलोचना हुई , उन्हें अव्यवहारिक एवं स्वप्नदर्शी कहा गया . जिसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा ,' एक क्रन्तिकारी को स्वप्नदर्शी होना ही चाहिए .यदि ऐसा नही होगा तो उसे नए समाज का चित्र कैसे प्राप्त होगा."
1970 से 1980 के बीच उन्होंने उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभायी.गुजरात के छात्र आन्दोलन को उन्होंने समर्थन दिया.बिहार में भी परिवर्तन की आँधी वहाली, उन्होंने राजनीति में बढ़ती निरंकुशता की प्रवृत्ति के विरुद्ध और व्यवस्था परिवर्तन के लिए अहिंसक आन्दोलन किया .वे युवाओ के मार्गदर्शक और प्रेरणाश्रोत बन गए .देश में जगह जगह निम्नांकित नारा गूंजने लगा -
सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है.भारत वर्ष हमारा है ,
सिंहासन खाली करो , कि जनता आती है .
उनकी सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा न केवल राजनीति बल्कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक,लोकतान्त्रिक एवं प्रगतिशील परिवर्तन पर आधारित थी .उनके आवाहन पर अनेक छात्रो ने एक वर्ष के लिए पढ़ाई छोड़ दी . वामपंथी दलों को छोड़ कर सभी गैर कांग्रेसी दल उनके आन्दोलन में शामिल हो गए, उनके आन्दोलन से तत्कालीन इंदिरा गाँधी कि कांगेसी सर्कार हिल गयी . जब जय प्रकाश जी ने पुलिश व सेना से भी इस आन्दोलन में शामिल होने की अपील की तो सर्कार बौखला गयी , इसी बीच इलाहबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गाँधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया जिससे उनके इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी. चद्र शेखर के नेतृत्व में काग्रेश में युवा ततुर्क के नाम जाना वाला धड़ा भी जय प्रकाश जी के साथ जुड़ गया .
इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने आतंरिक इमरजेंसी घोषित कर दी ,जेपी आन्दोलन से जुड़े सभ नेता तथा वामपंथी डालो सहित सभी गैर कांगेसी दलो के नेता जेल में डाल दिए गए. इमरजेंसी में देश की जनता ने निराकुश्ता का स्वाद चखा. सजय गाँधी के नेतृत्व में युवा कांग्रेस ने देश में मनमानी शुरू कर दी .साकार की परिवार नियोजन के लिए जबरन नसबंदी की नीति ने देश की जनता में भय व दहशत पैदा कर दी. इस समय जय प्रकाश जी के जिस सन्देश से जनता को भरोसा मिला वह था --- डरो मत , मै अभी जिन्दा हूँ ...
सरकार ने भी महसूस किया कि निरंकुशता अधिक दिनों तक नहीं चल सकती , अन्तरराष्ट्री दबाव के कारन भी सर्कार ने नए चुनाव कराये, इमार्जेब्सी समाप्त कर दी गयी , आंदोलनकारियो की विजय हुई . जय प्रकाश जी देश के संरक्षक के रूप में जनता के द्वारा स्वीकारे गए , उनके प्रयास से अनेक दल व राजनीतिक समूह जनता दल के रूप में संगठित हुए और चुनाव में १९७७ के आम चुनन में स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी . इंदिरा जी राय बरेली से चुनाव हार गयी.
नयी सरकार भी जे पी के बताये रास्ते पर नहीं चली .गाँधी कि तरह जे पी को भी उपेक्षित कर दिया गया .
क्षीण स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के कारन जेपी भी टूट गए थे.और कुछ समय बाद उनका निधन हो गया.
अपने अंतरविरोधो के चलते यह सर्कार तीन वर्ष में ही गिर गयी और इंदिरा जी पुनः सत्ता में आ गयी '
स्वतन्त्र भारत के इतिहास में व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में जय प्रकाश के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ........
आज जहाँ प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया अमिताभ बच्चन के जन्म दिवस को प्रमुखता से स्थान दे रहा है , वहां सर्कार एवं मीडिया दोनों ही जय प्रकाश के अमूल्य योगदान को उचित महत्त्व नहीं दे रहे है , यह चिन्तनीय है
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