करवाचौथ की प्रासंगिकता
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आज करवाचौथ का व्रत सारे देश की महिलाएं मना रही है .प्रबुद्ध पुरुष इस मीमांसा में लगे है कि इस परंपरा को महिलाओं की गुलामी का प्रतीक माना जाये या समर्पण का .बदलते परिवेश में यह पर्व फैशन , सजने सवरने एवं पति से गिफ्ट पाने के इंतजार में चाँद निकलने की प्रतीक्षा करती महिलाओ के उत्साह का प्रतीक बन गया है विशेषकर शहरी वर्ग में .
हमारी संस्कृति के विविध रंगों में एक रंग का प्रतीक है यह पर्व .भारतीय परिवेश में पति पत्नी के सम्बन्ध मात्र शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक समर्पण को भी परिलक्षित करते है ,ये संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते रहते हैं . आज पढ़ा लिखा पति पत्नी से आग्रह करता है कि दिन भर भूखा रहने की जरूरत नहीं है पर पत्नी परंपरा का वास्ता देकर उसकी सुनती ही नहीं भले ही वह बीमार हो जाये . समर्पण कि भावना प्रशंसनीय है ,पर विवेक का प्रयोग भी करना चाहिए ....
मेरे घर में एक बीस वर्ष की पहाड़ी महिला काम करती है . उसके दो बच्चे है . पति शराबी है और उसे इस हद तक प्रताड़ित करता है कि उसे पैसे के लिए दूसरे पुरुषो के पास भेजना चाहता है. इस वजह से वह ससुराल से चली आयी और काम काज कर अपना पेट पाल रही है.
उसने भी आज करवाचौथ का व्रत रखा . मैंने उससे पूछा कि ऐसे पति के लिए तुम क्यों व्रत रखे हो ,जिसे तुम्हारी भावनाओं की कोई कद्र नहीं है , उसने उत्तर दिया कि अब जब तक तलाक नहीं हो जाता तब तक तो वह मेरा पति है ही, इसलिए मेरा मन व्रत छोड़ने का नहीं करता ....
मैं चिंतन करता रहा कि इस जज्बे को क्या नाम दिया जाये ? इसे बेवकूफी कहा जाये या संस्कारो के प्रति समर्पण .मै किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया .फिर सोचा कि इस वाकये को ब्लॉग पर लिख दूं .ताकि महिलाओं की समस्याओ पर कान्तिकारी विचार देने वाले हमाँरे प्रबुद्ध जन मेरा कुछ मार्ग दर्शन कर सके ...
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आज करवाचौथ का व्रत सारे देश की महिलाएं मना रही है .प्रबुद्ध पुरुष इस मीमांसा में लगे है कि इस परंपरा को महिलाओं की गुलामी का प्रतीक माना जाये या समर्पण का .बदलते परिवेश में यह पर्व फैशन , सजने सवरने एवं पति से गिफ्ट पाने के इंतजार में चाँद निकलने की प्रतीक्षा करती महिलाओ के उत्साह का प्रतीक बन गया है विशेषकर शहरी वर्ग में .
हमारी संस्कृति के विविध रंगों में एक रंग का प्रतीक है यह पर्व .भारतीय परिवेश में पति पत्नी के सम्बन्ध मात्र शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक समर्पण को भी परिलक्षित करते है ,ये संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते रहते हैं . आज पढ़ा लिखा पति पत्नी से आग्रह करता है कि दिन भर भूखा रहने की जरूरत नहीं है पर पत्नी परंपरा का वास्ता देकर उसकी सुनती ही नहीं भले ही वह बीमार हो जाये . समर्पण कि भावना प्रशंसनीय है ,पर विवेक का प्रयोग भी करना चाहिए ....
मेरे घर में एक बीस वर्ष की पहाड़ी महिला काम करती है . उसके दो बच्चे है . पति शराबी है और उसे इस हद तक प्रताड़ित करता है कि उसे पैसे के लिए दूसरे पुरुषो के पास भेजना चाहता है. इस वजह से वह ससुराल से चली आयी और काम काज कर अपना पेट पाल रही है.
उसने भी आज करवाचौथ का व्रत रखा . मैंने उससे पूछा कि ऐसे पति के लिए तुम क्यों व्रत रखे हो ,जिसे तुम्हारी भावनाओं की कोई कद्र नहीं है , उसने उत्तर दिया कि अब जब तक तलाक नहीं हो जाता तब तक तो वह मेरा पति है ही, इसलिए मेरा मन व्रत छोड़ने का नहीं करता ....
मैं चिंतन करता रहा कि इस जज्बे को क्या नाम दिया जाये ? इसे बेवकूफी कहा जाये या संस्कारो के प्रति समर्पण .मै किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया .फिर सोचा कि इस वाकये को ब्लॉग पर लिख दूं .ताकि महिलाओं की समस्याओ पर कान्तिकारी विचार देने वाले हमाँरे प्रबुद्ध जन मेरा कुछ मार्ग दर्शन कर सके ...
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