सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत भारत के अन्य राज्यों की भॉंति उत्तर प्रदेश में भी परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अंशकालिक अनुदेशकों (Part Time Instructor) की नियुक्ति की गयी है ज्ञात हो कि उक्त पदों की स्वीकृति मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में मई, 2011 को की गयी थी जिसके अनुसार प्रत्येक परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालय जिसमें 100 या उससे अधिक छात्र हों, में अंशकालिक अनुदेशकों (कला शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शरीर शिक्षा तथा कार्य शिक्षा) के स्वीकृत पदों के सापेक्ष धनराशि स्वीकृत की गई थी। जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में अंशकालिक अनुदेशकों का मासिक मानदेय रु0 7000/- निर्धारित किया गया था। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में लगभग 35,000 से भी अधिक अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की गयी थी।
यहॉं पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि अंशकालिक अनुदेशकों की भर्ती एवं नियुक्ति के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किये गये शासनादेश संख्या 3371/79-5-2013-5/2010 दिनांक 31 जनवरी, 2013 में उल्लिखित है कि,
’’प्रत्येक अनुदेशक को सप्ताह में न्यूनतम 24 कालांश में अध्यापन कार्य करना अनिवार्य होगा। प्रधानाध्यापक द्वारा आवश्यकतानुसार अंशकालिक अनुदेशकों से विद्यालय समय में अन्य विषयों का अध्यापन कार्य भी लिया जा सकेगा।‘’
इतना ही नहीं, नियुक्ति के समय अंशकालिक अनुदेशकों से रु 100/- के स्टाम्प पेपर पर भरायी गयी सेवा संविदा में अन्य कई शर्तों के साथ यह भी लिखाया जाता है कि-
“That the employee will not directly or indirectly engage in any other whole time or part time profession or business or enter into the service of any other employer.”
इस प्रकार कहने को तो ये अनुदेशक अंशकालिक हैं, किन्तु वास्तव में इनसे पूर्णकालिक अध्यापन कार्य कराया जाता है, जिसमें अंशकालिक अनुदेशक के अपने विषय के साथ अन्य विषय भी सम्मिलित हैं। यह बेरोजगार युवक-युवतियों का सीधा-सीधा शोषण है, और कुछ नहीं।
खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2011 से अंशकालिक अनुदेशकों को मासिक मानदेय रु0 7000/- ही मिलता आ रहा है जिसमें आज तक कोई वृद्धि नहीं की गयी है और न ही मानदेय के साथ कोई महंगाई भत्ता दिया जाता है। अत: इन चार वर्षों में महंगाई और मुद्रास्फीति के कारण इस रु0 7000/- की धनराशि का वास्तविक मूल्य आधा रह गया है। अधिकांश अंशकालिक अनुदेशक अपने निवास से 30-40 किलोमीटर की दूरी पर विद्यालयों में कार्यरत हैं, जिससे विद्यालय आने-जाने पर भी धन व्यय होता है। यहां यह ध्यातव्य है कि उपर्युक्त योजना भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्त-पोषित है तथा भारत संघ के सभी राज्यों में कार्यान्वित की जा रही है। उदाहरण के लिए, इसी योजना के अन्तर्गत गोआ राज्य में अंशकालिक अनुदेशकों को रु0 15000/- प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है। फिर उत्तर प्रदेश में अंशकालिक अनुदेशकों को इतना निम्न और अपमानजनक स्तर का मानदेय क्यों दिया जा रहा है?
उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश में महिला अंशकालिक अनुदेशकों हेतु मातृत्व अवकाश का भी प्रावधान नहीं किया गया है। इस प्रकार महिला अनुदेशकों के साथ नैसर्गिक न्याय नहीं किया गया है।
यदि अंशकालिक अनुदेशकों की भर्ती से होने वाले परिणामों पर गौर करें, तो अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की योजना लागू किये जाने के बाद से अधिकांश विद्यालयों में छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है तथा शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।
मैं स्वयं भी पूर्व में शिक्षण एवं अध्यापन कार्य से जुड़ा रहा हूँ। इसलिए उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की इस दुर्गति को देखकर बहुत दु:ख होता है। यहॉं शिक्षकों को सफाईकर्मी और चपरासी से भी कम वेतनमान दिया जा रहा है, उसमें भी वार्षिक वृद्धि अथवा महंगाई भत्ते का कोई प्रावधान नहीं है।
उपरोक्त को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को इस पर विचार करना चाहिए तथा अंशकालिक अनुदेशकों को सम्मानजनक मानदेय देने का प्रावधान करना चाहिए एवं महिला अनुदेशकों को मातृत्व अवकाश की सुविधा देने पर विचार करना चाहिए ताकि ये अनुदेशक अपने आपको ठगा हुआ और अपमानिक महसूस न करें और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के साथ ही एक शिक्षक के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें।
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