आज सारा देश आतंक के साये में है .कश्मीर नासूर बनता जा रहा है .आये दिन हमारे जवान शहीद हो रहे हैं .देश के अन्दरूनी हिस्सों में अशांति फैलाने की कोशिशें चरम पर हैं नक्सलवाद पर लगाम नहीं लग पा रही है
नक्सलवाद व आतंकवाद के समाधान पर विचार करने से पहले हमें कुछ पीछे जा कर कुछ तथ्यों पर खुले मस्तिष्क से विचार करना पडेगा .
1974 में बंगाल के मुख्यमंत्री श्री सिद्धार्थ शंकर रे ने नक्सलवाद का दमन किया था। उसमें गेंहू तो जम कर पिसे, पर थोड़े घुन भी पीस गए।परिणामस्वरूप कांग्रेस बंगाल में अलोकप्रिय हो गयी और आज तक वहां सत्ता में वापस नहीं आई।
इसी प्रकार जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था।तब तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने अपने सलाहकारों से उसका समाधान पूछा।किसी ने कहा, " सर, समाधान आसान है, पर आपको पंजाब में सरकार को sacrifice करना होगा।
राजीव गांधी तैयार हो गए। के .पी .एस .गिल को पूरा समर्थन दिया सरकार ने, और कुछ ही समय में आतंकवाद समाप्त हो गया।पंजाब में कांग्रेस की सरकार भी समाप्त हो गयी।
लोकतंत्र में कठोर कदम सरकारों को अलोकप्रिय बनाते हैं, जिसके डर से सरकारें कठोर कदम उठाने से डरती है.सरकार सर्जिकल स्ट्राइक इसलिए कर पाई क्योंकि पाकिस्तानियों से वोट नहीं लेना था।
BJP खुद कितने उतार चढ़ाव के बाद सत्ता में आई है, स्वाभाविक है कि जाना नहीं चाहती।BJP कश्मीर और छत्तीसगढ़ में सत्ता का मोह त्यागे।सत्ता का लालच इतिहास में मुँह दिखाने लायक नहीँ छोड़ता।कंधार हाइजैक आज तक BJP को शर्मिंदा करता है।
इतिहास मानसिंह को नहीँ जनता, ज़िसने सत्ता के लालच में मुगलों के तलवे चाटे, इतिहास राणा प्रताप को जानता है, जिसने सत्ता को लात मारी और स्वाभिमान के लिए, सभी कुर्बानियां दीं।इतिहास में राणा प्रताप ही अमर हुए।
प्रधान मंत्री मोदी जी के पास मौका है।देखते हैं वो क्या चुनते हैं? सत्ता या देश का हित ? सरकार को सेना और अर्धसैनिक बलों को पूर्ण अधिकार देकर इस बीमारी को समूल नष्ट करने का निर्णय लेना चाहिये .
देश में मानवाधिकार संगठन के नाम पर चल रही दुकानों पर ताला लगाना भी जरूरी है। यहाँ पल रहे बौद्धिक आतंकवादियों की पहचान हो और न्याय की प्रक्रिया से गुज़ार कर वहीँ पहुचाया जाए, जहाँ प्रोफेसर साईबाबा जैसे लोग हैं।दशकों से यहाँ जो राज्य के खिलाफ बंदूक को उठाने और चलाने का वैचारिक प्रशिक्षण दे रहे हैं, उन्हें भी उनके अंजाम तक पहुँचाया जाए।
असली लड़ाई कश्मीर या छत्तीसगढ़ में नहीँ सरकार को दिल्ली में लड़नी है।ये बेहद शातिराना ढंग से कश्मीरी अलगाववादियों, नक्सलवादियों आदि का समर्थन करते हैं तथा सेना और अर्धसैनिक बलों को हाथ बांध कर मरने के लिए बाध्य करते हैं।
हाल में ही एक पत्थरबाज़ को जीप में बांधने की घटना पर इनका छाती पीटना आपको याद होगा।
ये प्रोफेसनल रुदाली हैं।इन्हें रोने के पैसे मिलते हैं, पाकिस्तान, अरब और चीन जैसे देशों से . आपने देखा होगा, CRPF के जवान की पिटाई की अभी चर्चा होती, इससे पहले ही इन्होंने जीप में बंधे पत्थरबाज की घटना को इतना उछाला कि सरकार बैकफुट पर आ गयी।ये इनकी रणनीति है।सरकार इन्हें पहचाने, एक्सपोज़ करे। इनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए। संविधान देश को तोडने के लिये अभिव्यक्ति की आजादी की अनुमति नहीं देता है.
राष्ट्रभक्ति को प्रत्येक स्तर पर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाइये।जय हिंद केवल पुलिस और सेना ही क्यों बोले, हम क्यों नहीँ?इस संस्कृति को प्रोत्साहन दीजिये।
ये असाधारण स्थिति है और इसमें सरकार असाधारण निर्णय लेना चाहिये ,यही जनता की सरकार से अपेक्षा है।कार्यवाई ऐसी कठोर होनी चाहिये कि मांग कितनी भी जायज हो पर हथियार नहीँ उठाने की हिम्मत न पडे ।ये "भटके हुए लोग" नहीं शातिर देशद्रोही हैं, जिन्हें देश के शत्रुओं से हर तरह का समर्थन मिलता है।इनसे निबटने के लिये इस्राइल, रूस, श्रीलंका से सीख लेनी चाहिये .
आखिर देश की सुरक्षा व हित सभी चीजों से ऊपर है इसे स्वीकार करने में किसी सच्चे देशवासी को दिक्कत नहीं होनी चाहिये .
मुझे इस समय अपने अग्रज स्व .आदर्श ' प्रहरी ' जी की कुछ पंक्तियां याद आ रहीं हैं -
" समझौते तो हों ,पर इतना य़ाद हो ,
राष्ट्र प्रथम हो ,जो हो इसके बाद हो ,
रखें सभी के प्रति हम सदभावना ,
ऐसा न हो ,बाद में पश्चाताप हो ."
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