आज कल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा गान्धीजी को चतुर बनिया कहने को लेकर विरोध व समर्थन का दौर जारी है.
जहां तक अमित शाह की महात्मा गांधी जी पर टिप्पणी की बात है ,वे एक शक्तिशाली सत्तारूढ दल के अध्यक्ष व प्रधान मंत्री के बेहद भरोसे के आदमी हैं .वे किसी को कुछ भी कह सकते हैं .तुलसीदास कह ही गये हैं -
समरथ को नहिं दोष गोसाई .
गांधीजी मात्र बनिये नहीं थे .बनिया तो अपना लाभ देखता है .वे सच्चे अर्थों में महात्मा थे .उन्होने राजनीति में नैतिकता के मानदण्ड स्थापित किये .वे समझ चुके थे कि अंग्रेज सरकार की पाशविक शक्ति का मुकाबला हिंसा से नहीं किया जा सकता .इसलिये उन्होने अहिंसात्मक प्रतिरोध की नीति अपनाई .भारत की जनता के शांतिपूर्ण मनोविग्यान की उन्हें समझ थी. वे सफल भी हुए जबकि क्रांतिकारी आंदोलन अनेक क्रांतिकारियों की कुर्बानी देकर भी जनता में अधिक समर्थन न पा सका और असफल हो गया .
सुभाष चन्द्र बोस जैसे सेनानी ने गांधी जी को 'महात्मा 'कहा था .ऐसे महान व्यक्तित्व को 'चतुर बनिया' कहना उसकी महानता कम करना है .ठीक उसी तरह जैसे अपनी जननी को 'माँ ' कहना सम्मानजनक होता है 'बाप की लुगाई 'कहना अपमानजनक .जबकि दोनों का आशय एक ही है .
वर्तमान में अंध समर्थन या अंध विरोध का एक दौर वैचारिक स्तर पर चल पड़ा है .सोशल मीडिया भी इससे अछूता नहीं है .मैं सिर्फ यह कहना चाहूँगा -
"मैं दिये की भांति अंधेरे से लड़ना चाहता हूँ ,
हवा तो बेवजह मेरे खिलाफ हो जाती है ."
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