अगस्त क्रांति का हमारे स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान था. यह आंदोलन इस अर्थ में महत्वपूर्ण था कि इसे देश भर की जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिला.
1942 मे मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद काँग्रेस के अध्यक्ष थे।बंबई मे काँग्रेस अधिवेशन चल रहा था। 8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने काँग्रेस मंच से 'अंग्रेज़ो भारत छोड़ो' तथा ' करो या मरो ' का नारा देकर सारे देश मे ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिगुल बजा दी थी।
ब्रिटिश शासन ने अपना दमन चक्र चलाया और 8 अगस्त की रात्रि तक काँग्रेस के सारे प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए , जिसमे महात्मा गांधी,जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष मौलाना आज़ाद भी थे।कॉंग्रेस कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त को काँग्रेस अध्यक्ष मौलाना आज़ाद को बंबई के 'गवालिया टेंक मैदान' मे काँग्रेस का झण्डा फहराना था। काँग्रेस के नेताओ मे जय प्रकाश नारायण,डॉ राममनोहर लोहिया,अरुणा आसफ अली ऐसी काँग्रेस नेता ब्रिटिश पकड़ के बाहर थे.
'अरुणाआसफ अली' बम्बई मे थी।उन्होनेे 'विक्टोरिया टर्मिनल स्टेशन 'मे मौलाना आज़ाद को एक विशेष रेल गाड़ी मे खिड़की के पास बैठे देखा। उन्हे 8 अगस्त की रात्रि मे गिरफ्तार कर ब्रिटिश प्रशासन रेल द्वारा अन्यत्र भेज रहा था। अरुणाजी ने जब मौलाना आज़ाद को पुलिस पहरे मे देखा तो उनकी समझ मे पूरी बात आ गई और वे चिंतित हो गई कि 'गवालिया टेंक मैदान' मे काँग्रेस झण्डा किस प्रकार फहराया जाएगा।स्टेशन मे उनके साथ काँग्रेस के बड़े नेता भूलाभाई देसाई के पुत्र धीरु भाई भी थे।उन्होने धीरु भाई को अबिलंब उन्हे अपनी कार से ग्वालिया टेंक मैदान पहुंचाने को कहा।
जब वे वहाँ पहुंची तब उन्होने देखा कि वहाँ होनेवाली काँग्रेस जन सभा को धारा 144 के तहत अवैध घोषित कर दिया गया है ।एक गोरा सार्जेंट ने भीड़ को मैदान से हट जाने के लिए दो मिनट का समय देने की घोषणा कर रहा था और साथ यह भी कह रहा था कि अगर भीड़ निर्धारित समय मे नहीं हटी तो बल प्रयोग कि९या जाएगा। अरुणा आसफ अली जी ने न आव देखा और न ताव , वे फुर्ती से मंच पर चढ़ी और तिरंगे को फहरा दिया।यह काम इतनी जल्दी से हुआ कि एकत्र पुलिस को कुछ समझ मे नहीं आया कि क्या हो गया।
अरुणा जी जिस फुर्ती से मंच पर चढ़ी,उसी फुर्ती से झण्डा की डोर खींच मंच से उतर भीड़ मे गायब हो गई।इधर पुलिस ने भीड़ को तितर वितर करने के लिए आँसू गैस छोड़ने शुरू किया, तब तक अरुणा जी पुलिस की निगाह से बहुत दूर जा चुकी थी।
नेताओं की गिरफ्तारी की सारे देश में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई.देश के कई शहरों में लोग सडकों पर उतर आये. 9अगस्तको कई जगह पर गोलियॉ चलीं जिसमें कई लोग शहीद हुये. जयप्रकाश जी,अरुणा आसफ अली व लोहिया के नेतृत्व में आंदोलन चलता रहा. दमन चक्र तेजी से चला. पर अंग्रेजों को यह महसूस हो गया कि अब वे अधिक समय तक भारत को गुलाम नहीं रख पायेंगे.
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