भारत के दसवें प्रधान मंत्री एवं भारत में आर्थिक सुधारों के जनक श्री पी.वी. नरसिंह राव की तक 99वीं जयंती है. उनका जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था. हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की. वे एक उदभट् विद्वान एवं कई भाषाओं के ज्ञाता थे. भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएँ सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी।
श्री नरसिंहराव का राजनीति का सफर बड़ा ही महत्वपूर्ण रहा. वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे तथा 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
1977 से 84 तक वे लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। उन्होंने देश के विदेश मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री एवं मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में कुशलतापूर्वक कार्य किया.
विदेश मंत्री के अपने कार्यकाल में श्री राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता ,मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की. फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका अत्यंत प्रशंसनीय थी।
वर्ष 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवाँ सम्मेलन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की। इसकी सफलता के मूल में श्री राव के अथक प्रयास थे. वे 'विशेष गुट निरपेक्ष मिशन' के भी नेता रहे जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति आन्दोलन को सुलझाने के लिए नवंबर 1983 में पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने यू.एस .ए., यू.एस.एस.आर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम, तंजानिया एवं गुयाना जैसे देशों के साथ हुए विभिन्न संयुक्त आयोगों की भारत की ओर से अध्यक्षता की
जून, 1991 की बात है. कांग्रेस ने श्री राव के कांग्रेस अध्यक्ष रहते आम चुनाव में सबसे ज्यादा 244 सीटें जीती थीं. श्री नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल के नेता चुना और उन्होंने कुशलता पूर्वक अगले पाँच वर्ष तक अल्पमतीय सरकार का नेतृत्व किया. उन्होंने दौ.मनमोहन सिंह वित्तमंत्री बनाया जिनकी आर्थिक नीति से भारत में आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण का दौर शुरू हुआ.
वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने एक ट्वीट में नरसिम्हा राव को एक असाधारण विद्वान बताया और लिखा कि उन्होंने इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर देश को अपना नेतृत्व दिया." पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी पुस्तक "1991- The year that changed India' में लिखा है, " श्री राव का भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अमूल्य योगदान रहा है और वे भारत रत्न के हकदार हैं."
पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी से श्री राव के गहरे संबंध रहे. कई अवसरों पर विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने दल के संसद की कार्यवाही से बहिष्कार कर श्री राव की अल्पमतीय सरकार को बचाया था. श्री राव ने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर देश के कई प्रतिनिधिमंडलों को श्री बाजपेयी के नेतृत्व में भेजा था. जब श्री बाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते परमाणु विस्फोट किया गया तो उसमें श्री राव के योगदान को भी अटल जी ने स्वीकार किया था.
आज भी श्री राव को सम्मान के साथ याद किया जा रहा है. यहाँ तक कि उनकी पार्टी काग्रेस, जिसने एक समय ( निधन पर भी) उनकी घोर उपेक्षा की थी, आज उनके योगदान की चर्चा कर रही है. अक्टूबर, 2014 में उस समय एन. डी. ए. की सरकार में शामिल दल तेलुगू देशम पार्टी (TDP) ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की थी कि नई दिल्ली में पीवी नरसिम्हा राव का समाधि स्थल बनाया जाए. इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में श्री राव के नाम पर भी एक स्मृतिस्थल बन गया है.
श्री राव के जन्म स्थल वारंगल (तेलंगाना) और आंध्र प्रदेश में राव के प्रति काफी सम्मान और सहानुभूति है. तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने तो स्कूली पाठ्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री की जीवनी भी शामिल की थी और उन्हें भारत रत्न देने की मांग भी कर चुकी है.
तेलंगाना की वर्तमान टी.आर. एस. ने श्री राव के जन्मशती वर्ष पर अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की है.
ऐसे बहुमुखी प्रतिभासंपन्न राजनेता को जन्मतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि.
🙏🙏🙏
0 पाठकों ने अपनी राय दी है, कृपया आप भी दें!