हिन्दी के लोकप्रिय कवि, सुमधुर गीतों के राजकुमार, फिल्म जगत में अपने गीतों से विशिष्ठ स्थान बनाने व धूम मचाने वाले ,कालजयी रचनाओं के सृजनकर्ता , कवि सम्मेलन के मंचो के अप्रतिम नायक श्री गोपाल दास 'नीरज' आज द्वितीय पुण्यतिथि है.
प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कालजयी रचनाओं के कुछ अंश जो जीवन के विविध रंगो का चित्रण करते हैं और एक दिशा देते हैं.
"कफ़न बढ़ा तो किसलिये,
नजर तू डबडबा गयी,
सिंगार क्यों सहम गया,
बहार क्यों लजा गयी,
न जन्म कुछ,न मृत्यु कुछ,
बस बात सिर्फ इतनी है,
किसी की आँख खुल गयी,
किसी को नींद आ गयी."
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"फूल पर हँसकर अटक, तो शूल को रोकर झटक मत,
ओ पथिक तुझ पर यहाँ, अधिकार सब का है बराबर.''
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''आदमी को आदमी बनाने के लिए,
जिन्दगी में प्यार की कहानी चाहिए,
और कहने के लिए कहानी प्यार की,
स्याही नहीं आँखों का पानी चाहिए।''
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"जब हृदय का एक आँसू,
नयन सीपी में उतर कर,
वेदना का अश्रु बनता,
एक क्षण पाषाण भी
भगवान बनता है,
तब मधुरतम गान बनता है। "
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''जीवन जहाँ खत्म हो जाता !
उठते-गिरते,
जीवन-पथ पर
चलते-चलते,
पथिक पहुँच कर,
इस जीवन के चौराहे पर,
क्षणभर रुक कर,
सूनी दृष्टि डाल सम्मुख
जब पीछे अपने नयन घुमाता !
जीवन वहाँ ख़त्म हो जाता! "
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''कोई नहीं पराया,
मेरा तो आराध्य आदमी,
देवालय हर द्वार है.
मेरा दर्द नहीं है मेरा,
सबका हाहाकार है,
कोई नहीं पराया,
मेरा घर सारा संसार है।''
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" चल रहा हूं मैं, इसी से चल रहीं निर्जीव राहें,
राह पर चलती हमारे साथ ही मंजिल हमारी."
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"स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे.
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे."
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" शोखियों में घोला जाये फूलों का शबाब,
उसमें फिर मिलाई जाये थोड़ी सी शराब,
होगा जो नशा तैयार, वह प्यार है."
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" एक दिन मैंने कहा यूँ दीपv से,
तू धरा पर सूर्य का अवतार है,
किसलिए फिर स्नेह बिन मेरे बता,
तू न कुछ, बस धूल-कण निस्सार है?
लौ रही चुप, दीप ही बोला मगर
बात करना तक तुझे आता नहीं,
सत्य है सिर पर चढ़ा जब दर्प हो
आँख का परदा उधर पाता नहीं.
मूढ़ ! खिलता फूल यदि निज गंध से
मालियों का नाम फिर चलता कहाँ?
मैं स्वयं ही आग से जलता अगर
ज्योति का गौरव तुझे मिलता कहाँ ?"
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''सृजन शान्ति के वास्ते है ज़रूरी,
कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये,
तभी मुक्ति का vयज्ञ यह पूर्ण होगा,
कि जब प्यार तलवार से जीत जाये।''
और अंत में एक कालजयी गीत की लाइनें
"अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाये,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये."
ऐसे महान साहित्यसेवी को शत् शत् नमन.
🙏🙏🙏
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