वर्णिक छंद (१२-१६)
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
बारह वर्णिक जगती जातीय छंद
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विद्याधरी
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विद्याधरी
विधान - म म म म।
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आजा मैया, दे दे छैंया, कैंया ले ले।
राधा-कान्हा, गोपी ग्वाले, तूने पाले।।
क्यों है रूठी?, झूठा-झूठी, लोरी भूली-
माटी प्यारी, सच्ची न्यारी, बच्चे खेले।।
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चन्द्रवर्त्म
विधान - र न भ स।
देश को नमन, लोग मिल करें।
द्वेष का शमन, आप-हम करें।।
साथ हो चरण, साथ कर रहे-
देश में अमन, मीत सब करें।।
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सारंग
विधान - त त त त।
बागी सुता आसमां तात नाराज।
भागा उषा को लिए सूर्य खो लाज।।
माता धरा ने लिया मान दामाद-
गाते पखेरू विदा गीत ले साज।।
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इन्द्रवंशा
विधान - त त ज र।
बाती जली श्रेय कभी नहीं मिला।
पूजा गया दीप करे नहीं गिला।।
ऊँचा रखें शीश इमारतें सदा-
ढोती रही भार कहे नहीं शिला।।
तामरस
विधान - न ज ज य।
दिलवर है दिलदार पुकारा।
मधुवन में रच रास निहारा।
नटखट वेणु बजाकर छेड़े-
जब-सखि रूठ गई मनुहारा।।
कुसुमविचित्रा
विधान - न य न य।
लख कलियों को मधुकर झूमे।
निलज न माने; जब मन चूमे।।
उपवन जाने यह हरजाई-
तन-मन काला; मति भरमाई।।
मालती / यमुना
विधान - न ज ज र।
कृषक धरे धरना न मानते।
सच कहते डरना न जानते।।
जनमत को सरकार मान ले-
अड़कर रार न व्यर्थ ठानते।।
तरलनयन
विधान - न न न न।
कलरव कर खग प्रमुदित।
नभ पर रवि विहँस उदित।।
सलिल सुमन सु-मन सहित-
सुखद पवन प्रवह हँसित।।
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तेरह अक्षरी जगती जातीय छंद
माया
विधान - म त य स ग। यति - ४-९।
पौधा रोपा; जो तरु होगा फल देगा।
पानी सींचो; आज न दे तो कल देगा।।
बागों में जो; फूल खिलें तो तितली भी-
नाचें भौरों संग विधाता हँस देगा।।
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विलासी
विधान - म त म म ग। यति - ५-३-५।
तोड़ेंगे तारे; न हारें; मोड़ेंगे राहें।
पूरी होंगी ही; हमारी; जी चाही चाहें।।
बाधाएँ आएँ, न हारें, जीतेंगे बाजी-
जीतें या हारें; न भागें; जूझेगी बाहें।।
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कंदुक
विधान - य य य य ग।
कहो बात सच्ची इरादे न भूलो रे।
करो कोशिशें भी; मुरादें न भूलो रे।।
सदा साथ दे जो उसीको पुकारो रे -
नहीं भाग्य को रो; उठो आ सँवारो रे।।
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राधा
विधान - र त म य ग। यति - ८-५।
वायवी वादे तुम्हारे; झूठ हैं प्यारे।
ख्वाब की खेती समूची; लूट है प्यारे।।
'एकता' नारा लगाया; स्वार्थ साधा है-
साध्य सत्ता हेतु डाली; फूट है प्यारे।।
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रुचिरा / प्रभावती
विधान - ज भ स ज ग। यति - ४-९।
रुको नहीं; पग पथ पे धरे चलो।
झुको नहीं; गिर-उठ के बढ़े चलो।।
कहे धरा; सुख-दुःख को सही चलो-
बनो नदी; कलकल गा बहे चलो।।
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कंजअवलि
विधान - भ न ज ज ल।
हों कृषक भटकते पथ पे जब।
हों श्रमिक अटकते मग पे जब।।
तो रचकर कविता कह दे सच-
क्यों डर कवि चुप है?; लड़ जा अब।।
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पुष्पमाला
विधान - न न र र ग। यति - ९-४।
नवल सुमन ले बना; पुष्पमाला।
प्रभु-पग पर दे चढ़ा, पुष्पमाला।।
स्तुति कर तू भुला; छोड़ निंदा -
कवि रच कविता बना; पुष्पमाला।।
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१४ मात्रिक शर्करी जातीय छंद
वासंती
विधान - म त न म ग ग। यति - ६-८।
होता भ्रष्टाचार; कर रहे दागी नेता।
पाने सत्ता रोज; बन रहे बागी नेता।।
झूठी बातें बोल; ठग रहे हैं लोगों को -
डाकू जैसा चाल-चलन है ढोंगी नेता ।।
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असंबाधा
विधान - म त न स ग ग। यति - ५-९।
राधा को देखा; झट किशन चला आया ।
कालिंदी तीरे; झटपट न दिखा आया।।
पेड़ों के पीछे; छिप नटखट गुर्राया-
चीखी थी राधा; डर- नटवर मुस्काया।।
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मंजरी
विधान - स ज स य ल ग। यति - ५-९।
लिखना नहीं; वह जिसे नहीं जानते।
करना नहीं; वह जिसे नहीं मानते।।
कहना नहीं; मन जिसे नहीं चाहता-
मिलता नहीं, तुम जिसे नहीं ठानते।।
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मंगली
विधान - स स ज र ल ग। यति - ३-६-५।
चल आ; हम साथ-साथ; बाग़ में चलें।
सपने; नव साथ-साथ; आँख में पलें।।
नपने; सब जान-मान; छंद मंगली-
रच दें; पढ़ सीख-सीख; आप भी लिखें।।
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अनंद
विधान - ज र ज र ल ग।
जहाँ नहीं विचार हों समान; दूर हों।
करें नहीं विवाद आप; व्यर्थ सूर हों।।
रुचे न बात तो उसे भुला हुजूर दें-
न लें सखा उधार; लें चुका जरूर दें ।।
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इन्दुवदना
विधान - भ ज स न ग ग।
इन्दुवदना विहँस मीत-मन मोहे।
चैन हर ले; सलज प्रीत कर सोहे।।
झाँक नयना नयन में हिचकिचाते-
प्रीत गगरी उलटती; रस बहाते।।
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अपराजिता
विधान - न न र स ल ग। यति - ७-७।
निरख-परख बात को कहिए सदा।
दरस-परस मौन हो करिए सदा।।
जनगण-मन वृत्ति हो अपराजिता-
अमन-चमन में रखे रहिए सदा।।
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१५ वर्णिक अतिशर्करी जातीय छंद
सारंगी
विधान - ५ म। यति - ८-७।
माया जीवों को मोहेगी; प्राणों से ज्यादा प्यारी।
ज्यों ही पाई खोई त्यों ही; छाया कर्मों की क्यारी।।
जैसा बोया वैसा काटा; जो लाया वो ले जाए -
काया को काया ही भाती; माटी को माटी न्यारी।।
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चित्रा
विधान - म म म य य। यति - ८-७।
क्या तेरा क्या मेरा साधो; बोल दे साँच भाई।
खाली हाथों आना-जाना; जोड़ता व्यर्थ भाई।।
झूठे सारे रिश्ते नाते; वायदे झूठ सारे-
क्या कोई भी साथी होता आखिरी वक़्त भाई।।
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सीता
विधान - र त म य र। यति - ८-७।
झूठ बोलो यार तो भी; सत्य बोला बोलना।
सार बोला या न बोलै; किंतु बोलै तोलना।।
प्यार होता या न होता; किंतु दे-पाया कहो-
राह है संसार का जो; राज तू ना खोलना।।
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नलिनी / भ्रमरावली / मनहरण
विधान - ५ स।
सब में रब है; सब से सच ही कहना।
तन में मन मंदिर है; रब तू रहना।।
जब जो घटता; तब वो सब है घटना-
सलिला सम जीवन में लहरा-बहना।।
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कुञ्ज
विधान - त ज र स र। यति - ८-७।
होता रस-रास नित्य ; मौन सखा देख ले।
देती नव शक्ति भक्ति ; भाव भरी लेख ले।।
राधा-बस श्याम श्याम; के बस राधा हुई-
साक्षी यह कुञ्ज-तीर आकर तू देख ले।।
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दीपक
विधान - भ त न त य। यति - १०-५।
हाय किसानों तुम पर है आपद आई।
शासन बातें सुन न रहा; शामत आई।।
साध्य न खेती श्रमिक नहीं; है अब प्यारा-
सेठ-परस्ती हर दल को, है अब भाई।।
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मालिनी / मञ्जुमालिनी
विधान - न न म य य। यति - ८-७।
कदम-कदम शूलों; से घिरे फूल प्यारे।
पग-पग पर घाटों; से घिरे कूल न्यारे।।
कलकल जलधारों; को करें लोग गंदा-
अमल सलिल होने; दो निर्मल हों धारे ।।
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उपमालिनी
विधान - न न त भ र। यति - ८-७।
कृषक-श्रमिक भूखे; रहें जिस राज में।
जनगण-मन आशा; तजे उस राज में।।
जन प्रतिनिधि भोगें; मजे जिस राज में-
नजमत अनदेखा; रहे उस राज में।।
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१६ वर्णिक अथाष्टि जातीय छंद
मदनललिता
विधान - म भ न म न ग। यति - ४-६-६।
खेतों में जो; श्रम कर रहे; वे ही लड़ रहे।
बोते हैं जो; फसल अब तो; वे ही डर रहे।।
सारे वादे; बिसर मुकरे; नेता कह रहे-
जो बोले थे; महज जुमले; मैया! छल रहे।।
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नील
विधान - ५ भ + ग।
मैं तुम; हों हम; तो फिर क्या गम; खूब मिले।
मीत बनें हम; प्रीत करें हम; भूल गिले।।
हार वरें जब; जीत मिले तब; हार गले-
दीप जले जब; द्वार सजे तब; प्यार खिले।।
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मणिकल्पलता
विधान - न ज र म भ ग। यति - १०-६।
मिल-जल दीप दीपमाला; हो भू पे पुजते ।
मिल-जुल साथ-साथ सारे; अंधेरा हरते।।
जब तक तेल और बाती; हैं साथी उनके-
तब तक वे प्रकाश देते; मुस्काते मिलते ।।
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अचलधृति
विधान - ५ न + ल।
अमल विमल सलिल लहर प्रवहित।
अगिन सुमन जलज कमल मुकुलित।।
रसिक भ्रमर सरसिज पर मर-मिट-
निरख-निरख शतदल-दल प्रमुदित।।
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प्रवरललिता
विधान - य म न स र ग। यति - ६-१०।
तिरंगा ऊँचा है; हरदम रखें खूब ऊँचा।
न होने देना है; मिलकर इसे यार नीचा।।
यही काशी-काबा; ब्रज-रज यही है अयोध्या -
इन्हें सींचें खूं से; हम सब न सूखे बगीचा।।
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चंचला
विधान -र ज र ज र ल।
है शिकार आज भी किसान जुल्म का हुजूर।
है मजूर भूख का शिकार आज भी हुजूर।।
दूरदर्शनी हुआ सियासती प्रचार आज-
दे रहा फिजूल में चुनौतियाँ इन्हें हुजूर।।
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रतिलेखा
विधान -स न न न स ग। यति ११-५।
अब तो जग कर विजय; हँस वनिताएँ।
जय मंज़िल कर रुक न; बढ़ यश पाएँ।।
नर से बढ़कर सफल; अब यह होंगी-
गिरि-पर्वत कर फतह; ध्वज फहराएँ।।
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