दो चतुष्पदियाँ
चंचल कान्हा, चपल राधिका, नाद-ताल सम, नाच नचे
रस-लय-छंद जमुन-जल-लहरें, संगम अद्भुत द्वैत तजे ।।
ब्रम्ह-जीव सम, हाँ-ना, ना-हाँ, देखें सुर-नर वेणु बजे।
नूपुर पग, पग-नूपुर, छुम-छन, वर अद्वैत न तनिक लजे ।।
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नाद-ताल में, ताल नाद में, रास लास में, लास रास में।
भाव-भूमि पर, भूमि भाव पर, हास पीर में, पीर हास में।।
बिंदु सिंधु मिल रेखा वर्तुल, प्रीत-रीत मिल, मीत! गीत बन-
खिल महकेंगे, महक खिलेंगे, नव उजास ले, नव प्रभात में।।
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श्री वीरेंद्र सिद्धराज के नृत्य पर
३-१-१०१७
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