उल्लाला
संजीव
*
(छंद विधान १३-१३, १३-१३, चरणान्त में यति, सम चरण सम तुकांत, पदांत एक गुरु या दो लघु)
*
अभियंता निज सृष्टि रच, धारण करें तटस्थता।
भोग करें सब अनवरत, कैसी है भवितव्यता।।
*
मुँह न मोड़ते फ़र्ज़ से, करें कर्म की साधना।
जगत देखता है नहीं अभियंता की भावना।।
*
सूर सदृश शासन मुआ, करता अनदेखी सतत।
अभियंता योगी सदृश, कर्म करें निज अनवरत।।
*
भोगवाद हो गया है, सब जनगण को साध्य जब।
यंत्री कैसे हरिश्चंद्र, हो जी सकता कहें अब??
*
भृत्यों पर छापा पड़े, मिलें करोड़ों रुपये तो।
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
*
नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??
*
समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम दुत्कारते।।
*
हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
*
मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।।
*
संजीव
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(छंद विधान १३-१३, १३-१३, चरणान्त में यति, सम चरण सम तुकांत, पदांत एक गुरु या दो लघु)
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अभियंता निज सृष्टि रच, धारण करें तटस्थता।
भोग करें सब अनवरत, कैसी है भवितव्यता।।
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मुँह न मोड़ते फ़र्ज़ से, करें कर्म की साधना।
जगत देखता है नहीं अभियंता की भावना।।
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सूर सदृश शासन मुआ, करता अनदेखी सतत।
अभियंता योगी सदृश, कर्म करें निज अनवरत।।
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भोगवाद हो गया है, सब जनगण को साध्य जब।
यंत्री कैसे हरिश्चंद्र, हो जी सकता कहें अब??
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भृत्यों पर छापा पड़े, मिलें करोड़ों रुपये तो।
कुछ हजार वेतन मिले, अभियंता को क्यों कहें?
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नेता अफसर प्रेस भी, सदा भयादोहन करें।
गुंडे ठेकेदार तो, अभियंता क्यों ना डरें??
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समझौता जो ना करे, उसे तंग कर मारते।
यह कड़वी सच्चाई है, सरे आम दुत्कारते।।
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हर अभियंता विवश हो, समझौते कर रहा है।
बुरे काम का दाम दे, बिन मारे मर रहा है।।
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मिले निलम्बन-ट्रान्सफर, सख्ती से ले काम तो।
कोई न यंत्री का सगा, दोषारोपण सब करें।।
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२७-१-२०२१
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'
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