विमर्श- श्रवण कुमार
कहते हैं इतिहास खुद को दुहराता है. अशोक, शाहजहाँ, जहांगीर, औरंज़ेब, राजाओं और बादशाहों की औलादें राजगद्दी और तख्त के लिए उन्हें कैद करने या करने से नहीं चुकीं. नेहरू-टण्डन, मोदी-आडवाणी प्रसंगों की तरह अखिलेश-मुलायम नौटँकी ने भी यही सिद्ध किया कि 'दल' से 'कुर्सी' अधिक शक्तिशाली होती है।
विडंबना यह कि 'जिस सीढ़ी से चढ़ो उसे तोड़ दो' का पाठ जानने के बाद भी हर नेता यह सोचता है कि उसका पूत या चेला कन्धे पर चढ़कर सत्ता पाने के बाद 'श्रवण कुमार' बना रहेगा।
'घर को घर लग गयी घर के चिराग से', बाप-बेटे के दो पाटों के बीच पिस गए चचा शिवपाल,' न खुदा ही मिला न विसाले सनम'
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