(१) हिन्दी
हिन्दी सुन्दर सरल सुभाषा |
सोलह आना सच है, नहिं कम, रत्ती तोला माशा |
क्यों भटको भ्रमजाल में लोगो मन में लिए हताशा|
कैसी हैशुचि सरल स्वाभाविक,सुन्दर भाव भरा सा|
जो लिखें, वही पढ़ें ,सुनें औ समझें भाव व भाषा |
हर अक्षर के ऊपर रेखा,सिर पर मौर बंधा सा|
श्याम' हो जग की भाषा इकदिन,सारे जग की आशा |
हिन्दी सुन्दर सरल सुभाषा ||
(२)-जगत दीठि बरसै...
कन्हैया उझकि उझकि निरखै |
स्वर्णखचित पलना चित-चितवत,केहि बिधि प्रिय दरसै |
जहं पौढी वृषभानु- लली , प्रभु दर्शन को तरसै |
पलक- पांवड़े, मुंदे सखी के , नैन -कमल थरकें|
कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर ज्यों फ़र फ़र फ़र फरकै|
तीन लोक दरशन कों तरसें , सो दरशन तरसै |
ये तौ नैना बंद किये क्यों , कान्हा बैननि परखै |
अचरज एक भयो ताही छिन, बरसानौ सरसै |
खोलि दिए दृग भानु लली, मिलि नैन नैन हरसें |
दृष्टि- हीन माया, लखि दृष्टा , दृष्टि खोलि निरखै |
बिनु दृष्टा के दर्श ' श्याम ' कब जगत दीठि बरसै ||
(३)काहे न धीर धरो ...
राधे काहे न धीर धरो |
मैं परब्रह्म जगत कारन हित , माया भरम परो |
तुम तौ स्वयं प्रकृति- माया, मम अंतर बास करो |
एक तत्व गुन , भाषे जग दुई, जग मग रूप धरो |
राधा-श्याम एक ही रूपक , विलगि न भाव भरो |
रोम रोम, हर साँस सांस में , राधे तुम बिचरो |
श्याम, श्याम-श्यामा लीला लखि जग जीवन सुधरो||
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