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गीत भला क्या होते हैं ,
गीत भला क्या होते हैं ,
बस एक कहानी है।
मन के सुख-दुख अनुबंधों की,
कथा सुहानी है।
सच्चे मन से,भीगे मन की,
कथा सुनानी है।-----गीत भला क्या......।
कहना चाहे,कह न सके मन,
सुख दुख के पल न्यारे।
बीते पल जब देते दस्तक,
आकर मन के द्वारे।
खुशियों की मुस्कान ओ गम के-
आंसू की गाथाके,
कागज़ पर मन की स्याही से,
बनी निशानी है। -------गीत भला क्या....।
कुछ बोलें या चुप ही रहें,
मन यह द्वन्द्व समाया ।
अन्तर्द्वन्द्वों की अंतस में,
बसी हुई जो छाया ।
कागज़-कलम जुगलबंदी की,
भाषा होते हैं।
अंतर की , हां-ना, हां-ना, की-
व्यथा सुहानी है।------गीत भला क्या.......।
चित में जो गुमनाम खत लिखे,
भेज नहीं पाये ।
पाती भरी गागरी मन की,
छलक-छलक जाये।
उमडे भावों के निर्झर को,
रोक नहीं पाये।
भव बने शब्दों की माला,
रची कहानी है ।
गीत भला क्या होते है,
बस एक कहानी है ॥
-- दो --
जान लेते पीर मन की...
जान लेते पीर मन की तुम अगर,
तो न भ्र निश्वांस झर झर अश्रु झरते।
देख लेते जो दृगों के अश्रु कण तुम ,
तो नहीं विश्वास के साए बहकते।
जान जाते तुम, कि तुमसे प्यार कितना,
है हमें और तुम पै है एतवार कितना।
देखलेते तुम अगर इकबार मुड़कर,
खिलखिला उठतीं कली, गुंचे महकते।
महक उठती पवन खिलते कमल सर में ,
फूल उठते सुमन करते भ्रमर गुन गुन ।
गीत अनहद का गगन गुंजार देता,
गूँज उठती प्रकृति में वीणा की गुंजन।
प्यार की कोई भी परिभाषा नहीं है,
मन के भावों की कोई भाषा नहीं है।
प्रीति की भाषा नयन पहचान लेते,
नयन नयनों से मिले सब जान लेते।
झाँक लेते तुम जो इन भीगे दृगों में ,
जान जाते पीर मन की प्यार मन का
तो अमित विश्वास के साए महकते,
प्यार की निश्वांस के पंछी चहकते॥
------रचयिता-डा श्याम गुप्त
सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ-२२६०१२.
बेहद भावपूर्ण रचना श्याम जी। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
पीलेरंग में जो लिखे गए हैं - कम से कम मुझे असुविधा हुई पढ़ने में।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
waah dono hi geet lajawaab pehla wala to jabardast hai..
सभी को धन्यवाद , सुमन जी असुविधा के लिये खेद है , वस्तुतः मैं सब्से ऊपर तिरन्गे का केसरिया रन्ग लाना चाह्ता था ।
दोनों ही रचनायें बहुत पसंद आई..श्याम जी को बधाई.