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लेखक -- सलीम ख़ान |
भईया ! ये लखनऊ शहर है !!................. क्या कहा ? तहज़ीब का शहर ?? अमाँ मियाँ काहे की तहज़ीब और काहे का शहर !
लखनऊ तो कुत्तों और सांडों का शहर है अब. लखनऊ में यत्र-तत्र-सर्वत्र कुत्तों का ही राज है. अभी पिछले महीने ख़ूब ज़ोर-शोर से कुत्तों के बारे में मीडिया ने अच्छा ख़ासा कवरेज दिया था तो प्रशासन के कान में जूँ रेंगी लेकिन फ़िर मीडिया ने बाबरी मस्जिद प्रकरण के चलते कुत्तों को प्रमुखता देना ख़त्म कर दिया इसी वजह से प्रशासन के कान पर जूँ दोबारा आ कर बैठ गयी. दर-असल हमारा सरकारी तंत्र ही इतना भ्रष्ट हो चुका है कि उन्हें सिवाय रिश्वत के, सिवाय नम्बर दो की आमदनी के कुछ दुसरी बात समझ ही नहीं आती और ना ही वो अपने फ़र्ज़ को फ़र्ज़ समझते हैं ! उसकी एक ठोस वजह है, वे जानते है कि वे भी रिश्वत देकर छुट जायेंगे !!
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मेरे ऑफिस के सामने कुत्तों का काफिला |
लखनऊ में नगर-निगम के द्वारा आवारा पशुओं को नियंत्रित किया जाता हैं लेकिन पशु नियंत्रण में लगे कर्मचारी लोगों से नगर-निगम में दुसरे काम लिए जाते हैं.
लखनऊ के गोमती नगर में एक स्कूल में बच्ची को स्कूल परिसर में ही कुत्ते द्वारा काट लिए जाने पर वे लोग कुछ हरक़त में आये लेकिन फ़िर वही नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहा. अब आज-कल कुत्तों का
पिंक महीना शुरू होने की वजह से वे अपने आपे में नहीं रहते हैं और आये दिन किसी न किसी को अपना शिकार बना बैठते हैं. मेरे दोस्त की बेटी को भी उन्होंने अपना शिकार पिछले महीने से बना लिया था, अब आये दिन इस तरह के वाक़ियात होते रहने की वहज से कुत्तों का आतंक हर वक़्त ज़ेहन में पसरा रहता है.
इसी तरह से लखनऊ का शायेद ही कोई ऐसा चौराहा, शायेद ही ऐसी कोई बाज़ार, शायेद ही कोई ऐसा मोहल्ला होगा जहाँ आपको सांड ना मिले. सांड लखनऊ के हज़रतगंज जैसे सबसे महत्वपूर्ण चौराहे पर भी ऐसे बैठे रहते है जैसे वो ही ट्रैफिक पुलिस का क़िरदार निभा रहे हों. लखनऊ के ही
एक ट्रैफिक पुलिस को सांड ने टक्कर मार-मार कर मार डाला. लेकिन हमारा नपुंसक सरकारी तंत्र फ़िर भी बाज़ नहीं आ सका और सांड पर भी कोई नियंत्रण ना कर सका. सांड लोगों को सड़क पर परेशान करते ही हैं, आपस में भी जब उनकी किसी दुसरे सांड से भिडंत होती है तो भी खामियाज़ा राहगीरों, बाईक-सवार, गाड़ी वालों को भुगतना पड़ता है.
मैं आप सभी से अनुरोध करना चाहता हूँ कि जो कोई भी यह क्षमता रखता हो जो इस ख़बर को शासन, प्रशासन से इस बात की शिकायत कर सके तो प्लीज़ ज़रूर करे.
-सलीम ख़ान
:-)
आजकल तहजीब तो कुत्तों और सांडो में ही मिलती है इसलिए उन्होंने तहजीब के शहर पर कब्ज़ा कर रखा है !
अब आदमी तो तहजीब सीखने से रहा सो कुत्ते और सांड ही सर्कार को सिखा रहे है :)
प्रासंगिक और समसामयिक आलेख, अच्छी लगा लखनऊ की एक और तस्वीर देखकर !
अमाँ भैया यह लखनऊ नहीं सारे हिन्दुस्तान का यही हाल है. लखनऊ के कुत्ते तो फिर भी इंसानों से डॉ जाते हैं, मुंबई के तो डरते भी नहीं हैं.