विगत कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि हमारे सदस्यगण ईश निंदा में ज्यादा मशगूल हैं, यह सत्य है कि अपना धर्म अपना मजहब और उस मजहब के निति-नियम सबको प्यारे लगते हैं, किन्तु विवाद की स्थिति तब आती है जब हम अन्य धर्मों की निंदा में ज्यादा वक़्त देने लगते हैं -
आज हम भूल गए हैं गुरु नानक के उस अमर उपदेश को, कि-" अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे, एक नूर तो सब जग उपज्या कौन भले कौन भंदे "
भूल गए हैं हम अलामा इकवाल के उस सन्देश को, कि " मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा "
भूल गए हैं हम गांधी की अमर वाणी को, कि " प्रभु भक्त कहलाने का अधिकारी वही है जो दूसरों के कष्ट को समझे "
भूल गए हैं हम तुलसीदास के धर्म की परिभाषा को, कि " पर हित सरिस धर्म नहीं भाई "
इसप्रकार-
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा तो शक्ति का साधन स्थल है ! परस्पर प्रेम, सौहार्य, एकता एवं धार्मिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता का पूज्य स्थल है । सर्व धर्म समन्वय ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का मूल प्राण है । अनेकता में एकता ही हमारी आन- बान और शान है ।
मित्रों !
निष्काम कर्म ही मनुष्य का धर्म है / मानवता का मूल मंत्र है ।
याद करो राष्ट्रीय कवि मैथली शरण गुप्त की वह पंक्तियाँ, कि "यह पशु प्रवृति है कि आप ही आप चारे, मनुष्य वही जो मनुष्य के लिए मरे "
याद करो रहीम के सत्य के प्रतिपादन को/सच्ची मानवता के दर्शन को -" यो रहीम सुख होत है उपकारी के संग , बाटन वारे के लगे ज्यों मेंहदी के रंग "
याद करो कि सलीब पर चढाते हुए / अपने हत्यारों के लिए दुआ माँगते हुए इसाईयों के प्रवर्तक ईशा ने क्या कहा था ? यही न कि " प्रभु इन्हें सुबुद्धि दे, सुख-शान्ति दे, ये नहीं जानते कि क्या करने जा रहे हैं "
याद करो- कर्बला के मैदान में / प्राणों की बलि देने वाले /अंतिम सांस तक मानव कल्याण हेतु दुआएं माँगने वाले (मोहम्मद साहब के नवासे) इमाम हुसैन (ए.स) ने क्या कहा था .......?
कर्बला मैं क्या हुआ था यहाँ पढ़ सकते हैं आप.
कर्बला मैं क्या हुआ था यहाँ पढ़ सकते हैं आप.
आर्य समाज के प्रबर्तक महर्षि दयानंद ने अभय दान दे दिया क्यों अपने हत्यारों को ? महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म के प्रचार में अन्य धर्मों के विरूद्ध द्वेष का प्रदर्शन क्यों नहीं किया ? स्वामी विवेकानंद , राम तीर्थ, रामकृष्ण परमहंस ने किसी धर्म के लिए अपशब्द क्यों नहीं कहे ?
सूफी संत आमिर खुसरो, हजरत निजामुद्दीन, संत कबीर, नामदेव क्यों सर्वस्व त्याग दिया मजहबी एकता के लिए अर्थात सर्व धर्म समन्वय के लिए ?
इस सबका एक ही उत्तर है कि हमारा धर्म बाद में है पहले हम भारतीय हैं ...!
आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि अपने-अपने धर्म को महसूस करेंगे, पर न तो दूसरे धर्म की निंदा करेंगे और न हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच आने देंगे !
जय हिंद !
गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
शुभेच्छु-
रवीन्द्र प्रभात
अध्यक्ष, एल बी ए
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नोट : यदि इस अपील के बावजूद हमारे सदस्यगण अपनी चिर-परिचित प्रवृतियों का परित्याग नहीं करेंगे तो एल बी ए की कार्यकारणी की आपात वैठक बुलाकर उक्त सदस्य की सदस्यता से वंचित करने हेतु अनुमोदन किया जा सकता है, हलांकि मुझे पूरा यकीं है कि हमारे सदस्यगण हमारी भावनाओं को अवश्य महसूस करेंगे और इसप्रकार के विवाद से एल बी ए की गिरती हुई शाख को अवश्य बचायेंगे !
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sahi kaha aapne !
I marked below members who are involve in controversies.
Dr. Syam Gupta
Mr. ANWAR JAMAL
I want to suggest both to stop all the matters and unite for LBA's AIM only. If this will going in future WE have to call an emergency meeting and will take decision.
So, please stop all the matters immediately.
Saleem KHAN
Founder, LBA
बहुत सही बात कही आपने. इस मंच को धार्मिक विवाद का जरिया नहीं बनाना चाहिए. सभी के धर्म प्रिय है. विवादित बातों से बचना चाहिए. फिर भी कोई ऐसा लेख लिखता है तो उस पोस्ट को निकाल कर चेतावनी दे. यदि फिर भी न माने तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दे. बहुत सही निर्णय.
-----There exist no such matter either in my posts or in comments....it upto LBA to decide if they wish the posts with knowledge & learning or not ...without being prejudiced....
"आईये हम मिलकर शपथ लेते हैं कि अपने-अपने धर्म को महसूस करेंगे, पर न तो दूसरे धर्म की निंदा करेंगे और न हम अमन और भाईचारे पर किसी भी प्रकार की आंच न आने देंगे "
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जी सबसे पहले तो एक बेहतरीन पैग़ाम के लिए धन्यवाद और इस्पे अमल सभी ब्लोगर को केवल LBA पे नहीं हर जगह करना चाहिए.
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---एक दम सत्य है ..धर्म-निन्दा व.... धर्म के स्वरूप को परिभाषित करना...उसमें स्थित बुराइयों को इन्गित करना व धर्म व धार्मिक-एतिहासिक चरित्रों/पात्रों/ तथ्यों का वर्णन प्रथक-प्रथक बातें हैं.......यह हमें समझना होगा....
रवीन्द्र प्रभात @ एक ग़लती लेख़ कि सही कर लें." कर्बला मैं हज़रत मुहम्मद (स.ए.व) ने अपनी जान कि कुबानी नहीं दी थी बल्कि उनके नवासे इमाम हुसैन (ए.स) ने क़ुरबानी दी थी.
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कर्बला मैं क्या हुआ था यहाँ पढ़ सकते हैं आप.
मासूम साहब,
आपके सुझाव को इस आलेख से जोड़ दिया गया है, आपका शुक्रिया !
कोई भी धर्म दूसरे धर्म की आलोचना की इजाजत नहीं देता, हम वेबजह ऐसे कार्यों में अपनी ऊर्जा का क्षय करते हैं ....मैं तो यही कहूंगा प्रभात जी, की यदि आपकी इस खुबसूरत अपील पर इन सदस्यों के द्वारा अमल नहीं किया जाता है तो उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाए , सामूहिक ब्लॉग की अपनी एक मर्यादा होती है, वैसे सलीम जी ने दो सदस्यों के नाम का अनुमोदन तक कर दिया है ! इससे यह प्रतीत हो रहा है की एल बी ए एक मजबूत संगठन है जहां धर्म और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं, सलीम जी को मेरा सलाम !
किसी साझे ब्लॉग पर इस तरह की सावधानी जरूरी है, इन्यथा मंच का बैंड बजते देर नहीं लगती। ऐसे लोगों को पहले तो चेतावनी दी जानी चाहिए, लेकिन यदि वे उससे भी न मानें, तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए।
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क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
रवींद्र जी,
ये बात पहले भी एक बार उठ चुकी है और फिर दुबारा ? अपने धर्म के विषय में ज्ञान रखने वाले उसके बाँटें लेकिन सकारात्मक ढंग से न कि उसको नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करके किसी कि आस्था पर आघात करें. आलोचना करने के लिए बहुत सारे मुद्दे सभी के पास हैं लेकिन हमें यहाँ जंग का मैदान बनाने की मर्जी कतई नहीं है. सबके लिए अपना धर्म और विश्वास बहुत अहमियत रखता है इसलिए उसके बारे में निंदा भी स्वीकार्य नहीं. न किसी से इस्लाम की और न ही हिन्दू धर्म की. अपने ज्ञान को विश्व के हितार्थ प्रयोग करिए, अपनी ऊर्जा को मानवता के हित के लिए प्रयोग करिए. इस ब्लॉग पर ऐसी पोस्ट आने पर पाबन्दी लगा दी जाएगी या फिर उसको देखने पर डिलीट भी करने का प्राविधान रखा जा सकता है.
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@ जनाब अध्यक्ष जी ! अब मैं सीधे पोस्ट लिखने से बचते हुए आपकी तवज्जो दिलाना चाहूँगा की डाक्टर श्याम जी गीत लिखते लिखते अचानक फिर से ब्रह्मा जी के द्वारा सृष्टि बनाये जाने की झूठी कहानी सुनकर इस सार्वजनिक मंच से भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं.
मैं उनकी थ्योरी से सहमत नहीं हूँ.
या तो आप उन्हें रोकें या फिर मुझे उनसे शास्त्रार्थ करने की अनुमति दें .
धन्यवाद.
यह कोई धार्मिक ब्लाग नहीं है.
यहाँ धर्म का प्रचार न किया जाये.