बस में न हो अंतः तो बसंत छाता है,
बस रहे जो अन्तःमें बसंत कहाता है।
बस रहे वो अन्तः में तो बसंत भाता है,
बस अन्त हो शीत का बसंत आता है ॥<----राग बसंत
नव बसंत आये.....
सखी री ! नव बसंत आये ॥
जन जन में ,
जन जन जन मन में ,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ॥
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुष्प बाण ले ,
आये ऋतुपति काम बाण ले ,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये |
सखी री नव बसंत आये ॥
तन मन में बिजुरी की थिरकन ,
बाजे ताल मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
यौवन उठे तरंग ।
गलियां पग पग झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने ,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री नव बसंत आये ॥
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सुन्दर प्रस्तुति, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये.
बहुत सुंदर गीत...
बसंत पंचमी पर बधाई...
अति सुन्दर कलाम! आपके लेखन को प्रणाम!
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कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर प्रस्तुति, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये.
धन्यवाद वन्दना जी व हरीश जी----बसन्तोत्सव की शुभकामनायें....
धन्यवाद---वीना जी व कविता जी----वसन्त पन्चमी की बधाई...
गमलों में बैठा मिला, सिकुडा हुआ बसंत---वाह डंडा जी ---सुन्दर..