जो निज मन को जीत ले, उसे नमन कर मौन
मन से मन में पूछिए, छिपा आपमें कौन?
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नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान
ना री! वह वरदान ले, भले न हो वर-दान
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नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान
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दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
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निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
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खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
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कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
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निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
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इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
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५-२-२०१७
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बैसाखी तज छू रही, बैसाखी आकाश।
चल गिर उठ बढ़ते नहीं, जो वे रहें हताश।।
चल गिर उठ बढ़ते नहीं, जो वे रहें हताश।।
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चंद्र कांता कूदती, भू से नभ पर रोज।
हिम्मत लाती कहाँ से, कांता कर कुछ खोज।।
हिम्मत लाती कहाँ से, कांता कर कुछ खोज।।
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दोहा में वचन दोष-
उदाहरण:
नेता बोले भीड़ से, तुम हो मेरे साथ।
हम यह वादा कर रहे, रखें हाथ में हाथ।।
५-२-२०१८
टीप- नेता एकवचन, बोले बहुवचन, भीड़ बहुवचन, तुम एकवचन, हम बहुवचन।
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