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शुक्रवार, जनवरी 28, 2011

शुक्रवार, जनवरी 28, 2011 19
 वंदना गुप्ता जी के ब्लाग पर एक दिन जाना हुआ तो उनकी एक सुंदर रचना पर नज़र पड़ी, जिसमें वे पूछ रही थीं कि अब खेत में सरसों कहाँ उगती है ?
हमने कहा कि ‘हमारे खेत में सरसों आज भी उगती है . मैं आप को जल्दी ही सरसों का फोटो भेंट करूँगा .'
तब से जब भी सरसों के खूबसूरत फूलों पर, उसकी लहलहाती फ़सल पर नज़र पड़ती थी तो दिल चाहता था कि उन्हें यह हरा-पीला मंज़र दिखा दें लेकिन उस मंज़र को क़ैद कैमरे में कौन करे ?
आज इत्तेफ़ाक़ से हम भी थे, सरसों के फूल भी थे और मंज़र क़ैद करने वाला भी आ पहुंचा। मैंने उनसे चंद फ़ोटो लेने की इल्तेजा की और वे राज़ी हो गए। उनकी मदद से सरसों के ये फूल अव्वलन वंदना जी को भेंट करता हूं और सानियन अपने सभी पाठकों को।
वंदना जी ! सरसों में एक रंग पीला नज़र आ रहा है और एक रंग हरा। पीला रंग क्षमा का प्रतीक है और हरा रंग समृद्धि का। यह फ़ोटो मैं आपको भेंट करते हुए अपने मालिक से दुआ करता हूं कि वह आपकी तमाम ख़ताओं को क्षमा करे, आपको हिदायत दे और आपके दिल को भी क्षमा से भर दे जैसे कि उसने इस धरती को सरसों के पीले फूलों से भर दिया है। वह मालिक आपके जीवन को हर तरह से समृद्धिशाली बनाए जैसे कि उसने इस ज़मीन को हरियाली से ढक दिया है। आपके लिए भी ऐसा ही हो और उनके लिए भी जो मेरा ब्लाग पढ़ते हैं और उनके लिए भी जो मेरा ब्लाग नहीं पढ़ते।
इस नज़ारे से लुत्फ़अंदोज़ होने के बाद इस लज़्ज़त को इसकी तकमील तक पहुंचाने के लिए हम आपको पढ़वाते हैं वंदना जी की सुंदर रचना, उनके शुक्रिया के साथ।

 अब खेत में सरसों कहाँ उगती है ?
यादों के लकवे पहले ही उजाड़ देते हैं

अब भंवर नदिया में कहाँ पड़ते हैं ?
अब तो पक्के घड़े भी डूबा देते हैं

हम वंदना जी से दरख्वास्त करेंगे कि वे हमारे प्यारे ब्लाग ‘प्यारी मां‘ में एक लेखिका के तौर पर जुडें और मां के बारे में कुछ सुंदर रचनाएं हिंदी पाठकों को दें। हम उनकी रचनाओं को ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे।

19 पाठकों ने अपनी राय दी है, कृपया आप भी दें!

  1. भाई अनवर साहब सर्वप्रथम आपको धन्यवाद की मुझे वंदना जी के ब्लॉग पर पहुँचाया. उनकी रचनाये पढ़ी, उनकी सोच,परिकल्पना, सुविचार पढ़कर अच्छा लगा. किन्तु जिस तरह आपने अपनी पोस्ट लिखी है मुझे लगा उन्होंने कुछ गलत लिख दिया है, जिसके कारण आप उनकी खता माफ़ करवा रहे है. एक बात का तो पता चल गया आप भाव पर नहीं बल्कि शब्दों पर ध्यान देते है. अरे भाई सरसों के फूल सभी देखते हैं उन्होंने भी देखा होगा. और आप उन्हें फूल ही दिखाने लगे. वंदना जी के कविता का भाव हमरी समझ में यही था की जो प्रेम, भाईचारा पहले था. वह ख़त्म होता जा रहा है. हमें लगता है की यदि कोई प्यासा आपके पास आये और कहे की मैं बहुत प्यासा हू एक घूँट पानी पिला दो तो एक घूट पिलाने के बाद कहेंगे अब भाग जाओ एक घूँट कहे थे इससे अधिक नहीं पिलाऊंगा. भैया भाव पर ध्यान दो शब्दों पर नहीं.

    एक बात और कोई आपकी पोस्ट पर टिप्पणी करे या न करे किन्तु मैं बहुत बड़ा चिपकू हू. एक बार चिपक गया तो फेविकोल की तरह छोड़ता नहीं. और बंधू आप को तो बड़ा भाई कहा है कैसे छोड़ दू. आपकी पोस्ट पर आकर उत्पात करता रहूँगा. यह कहावत सुने है न............. क्षमा बणन को चाहिए छोटन को उत्पात. बस वही समझ लो भैया.

  2. @ हरीश जी ! हमने उनकी रचना पढ़ी और वह अच्छी लगी और हमने उसकी तारीफ़ भी की.इसके बाद हमने उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाती के लिए दुआ की है और हम सबको जिस दर्जे में मानवीय गुणों से सुशोभित होना चाहिए था , हम आज नहीं हैं , वन्दना जी भी शायद ऐसा ही कहें लेकिन आप उनके नाम की जगह अपना और एलबीए परिवार का नाम पढ़ें तो आपको दुआ का भाव ग्रहण करने में कोई भी दिक्क़त न होगी . चिपकाने लिए ही हम यहाँ पर हैं भाई .
    इंशा अल्लाह जल्दी आपको 'शिर्क' के बारे में जानकारी देंगे ताकि ...
    http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-sense-of-worship-anwer-jamal.html

  3. 'शिर्क'का शाब्दिक अर्थ हमें जरा बताईयेगा . शायद मुझे समझने में भूल हुयी. यदि आपने दुआ सबके लिए मांगी है तो बहुत अच्छी बात है. यदि लोग दूसरों के लिए ही समर्पण का भाव रखे तो सारे विवाद ही ख़त्म हो जाय. हार्दिक शुभकामना.

  4. 'शिर्क' का मतलब है एक पैदा करने वाले के अस्तित्व और विशेष गुणों में किसी सृष्टि को शरीक कर लेना .
    तफसील पोस्ट में बताऊंगा , इंशा अल्लाह .

  5. धन्यवाद, अनवर जी---आमीन---मालिक से आपकी दुआ -- सबके लिये विस्त्रत करके कुबूल ....
    --हरीश जी ने सही कहा...कविता में शब्द-अन्यार्थ(लक्षणा व व्यन्जना)-में लिखे गये हैं...
    ---शिर्क से ही शिरकत शब्द निक्ला होगा= भाग लेना, पार्ट लेना=सहयोगी बनना...

  6. अनवर साहब

    आपकी पहले तो तहे दिल से आभारी हूँ कि आपने इतनी गहनता से सोचा और उस पर एक पोस्ट लिख दी………जहाँ तक उस शेर की बात है तो उसका अर्थ हरीश जी ने सही दिया है और आपकी सोच भी अपनी जगह सही है………ऐसा है न एक ही बात के अनेक भाव निकलते हैं सबका अपना अपना नज़रिया होता है ………कोई फ़ूल का सौंदर्य ही देखता है तो कोई फ़ूल के साथ जो काँटे होते हैं उनके दंश भी देखता है……………कोई उसकी खूश्बू ही महसूस कर पाता है और कोई उसके शरीर पर लगे घावों का दर्द भी महसूस करता है …………इसलिये हम सबकी सोच के अनुसार ही हमारे भाव जन्म लेते हैं मगर उनमे कहीं कोई बुराई नही होती और सबसे अच्छा यही होता है कि एक बात के कितने भाव है वो सब तक पहुँचे और वो कार्य आपने कर दिखाया…………

    आपने अपने ‘प्यारी मां' ब्लोग से जुडने को कहा है तो आप बता दीजियेगा कैसे जुडा जायेगा…………कोशिश करूँगी जो महसूस करती हूँ वो सब तक पहुँचाने की।

  7. सरसों के फूल और वंदना जी की कविता.. एक जैसा रोमांच है दोनों में... कविता पहले ही पढ़ ली थी आज आपके सरसों के खेत देखा मन में वसंत खिल उठा..

  8. कविता बहुत ही सुन्दर थी...और यह तस्वीर भी बहुत ही ख़ूबसूरत ...
    वंदना और आप दोनों का शुक्रिया..

  9. कविता से प्रेरित हो कर अच्छा सन्देश देती पोस्ट ...आच्छा लगा पढ़ना ..

  10. @ डाक्टर श्याम जी ! ऊपर भाई हरीश मुझे समझा रहे थे कि मुझे वंदना जी के भाव पर ध्यान देना चाहिए था न कि उनके शब्दों पर और अब आप फिर वही बात मुझे समझाने चले आए जिसका जवाब मैं हरीश भाई को दे चुका हूँ । मैं इतना बर्दाश्त नहीं किया करता ।
    क्या आपको अभी तक पता नहीं चला कि मैं आपसे ज़्यादा समझदार हूं ?
    क्या आपको नहीं पता कि मैंने अपने पाठ्यक्रम में वही किताब पढ़ी है जो कि आपने पढ़ी है ?
    और फिर अलग से एक सब्जेक्ट के रूप में संस्कृत लेकर फिर से इंटरमीडिएट किया और पं. रूपचंद शास्त्री जी से ट्यूशन पढ़ा और इन सबने मझे वही बताया जो कि मुझे पहली दूसरी कक्षा में ही बता दिया गया था कि कविता में अलंकारों और प्रतीकों के माध्यम से कवि अपना भाव व्यक्त करता है और यही काव्य का सौंदर्य होता है लेकिन आपको लगता है कि अनवर जमाल को काव्य की समझ ही नहीं है जबकि वह ख़ुद एक कवि है । उसके काव्य की समझ को देखना चाहते हो तो देखो उसका ब्लाग 'मन की दुनिया' ।
    आप लोग क्यों इतना Overself confidence का शिकार हैं कि अनवर जमाल जैसी हस्ती को भी Underestimate करने से नहीं चूकते । इसका नतीजा यह होगा कि अनवर जमाल आपका Overself confidence भी तोड़ डालेगा और आपका Confidence भी जब्त कर लेगा । आपको यकीन आ जाना चाहिए और न यकीन हो तो बनिए मेरे ब्लाग 'चर्चाशाली मंच' के सदस्य।

    महाशय जी ! आपको कविता का तो पता है लेकिन क्या आपको फ़ोटोग्राफ़ी के बारे में नहीं पता कि जैसे एक कवि अपने शब्दों के जरिए कुछ संदेश देता है ऐसे ही एक फ़ोटोग्राफ़र भी फोटो के माध्यम से कुछ कहने की कोशिश करता है जिसे आप और हरीश जी दोनों ही नहीं समझ पाए ।
    वंदना जी ने जो सवाल अपनी कविता में उठाया है इस नये दौर में वह पुराना प्रेम और भाईचारा कहां है जो कभी हमारी पहचान हुआ करता था तो हमने उनके सवाल का जवाब अपने फोटो के जरिए दिया है कि हमारे दिल की जमीन में आज भी उसी पुराने प्रेम और भाईचारे के फूल भरपूर तरीके से खिले हुए हैं । इसलिए मैं आपको अज्ञानी और अल्पबुद्धि कहता हूं । मूढ़ और शठ सौजन्यतावश कह नहीं पाता , ऐसा कहना अच्छा नहीं लगता । अंधे को अंधा कहने की परंपरा हमारे देश में है भी नहीं ।
    हरेक आदमी आज अच्छी तरह जान ले कि अनवर जमाल कभी पहल नहीं करता लेकिन जवाब जरूर देता है और जब देता है तो फिर भरपूर देता है ।

    इसके अलावा पोस्ट सप्तार्थिक मंतव्यधारी है कि अगर अनवर जमाल आपको न बताए तो आप कभी उन्हें जान ही नहीं सकते और वे सभी पूरे भी हो गए हैं , अल्-हम्दुलिल्लाह !

    अगर आप बुद्धि रखते हैं तो बताईये कि वे सप्तार्थ क्या हैं ?
    मुझसे पूछना चाहो तो पहले ख़ुद को शिष्य घोषित करना , तब पूछना ।
    आशा है कि आप बुरा मानने की कोशिश के अलावा कुछ और न कर पाएंगे ।

  11. @ रश्मि रविजा और अरूण चंद्र रॉय जी ! आपको कविता और फ़ोटो दोनों पसंद आए ।
    शुक्रिया ।
    कृप्या आप मेरी इस पोस्ट को
    mankiduniya.blogspot.com
    पर भी देखें ।

  12. @ वंदना जी ! आप अपनी email ID मुझे eshvani@gmail.com
    पर भेज दीजिए । तब मैं आपको इन्विटेशन भेजूंगा जिसे स्वीकारते ही आप एक लेखिका के रूप में 'pyari maan' से जुड़ जाएँगी ।
    धन्यवाद !

  13. @ संगीता जी ! कृप्या आप भी एक लेखिका के तौर पर pyari maan से जुड़कर माँ की अज़्मत को समाज में कायम करने की कृपा करें ।

  14. अनवर जमाल----हमको मालूम है ज़न्नत की हकीकत.....बस थोडा लिखा बहुत समझ लीजिये ..
    ---उस किताब का नाम क्या है जो हम दोनों ने पढी है.....और यह तथ्य आपको मालूम है...

  15. श्याम भाई काम से काम आप गुस्से में मत आईये, गुस्सा करने का अधिकार सिर्फ उन्हें दे दीजिये, जाने दीजिये मैं अनवर भाई का शिष्य बन चुका हूँ. मुझे सीखने दीजिये आप, मेरे हक पर डाका मत डालिए प्लीज, अनवर भाई आप सबका गुस्सा मुझ पर उतरा कीजिये, मैं अपने ईश्वर और आपके खुदा दोनों को अपना मानता हू. इसीलिए कहता हू. सारी कायनात का मालिक एक ही है. पहले यही जानता था, जब आपने बताया की मेरे भगवान और आपके खुदा अलग- अलग हैं तभी मुझे ज्ञान हुआ, इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद, मै आपसे सीखने को ख्वाहिश मंद हू. पहले आपने मुझे अज्ञानी और अल्पबुद्धि कहा और अब श्याम भाई को कह रहे हैं. अब देखिये आप मेरा अधिकार आप श्याम जी को दे रहे है. देखिये भाई मुझ को ही आप मूढ़ और शठ भी कह लीजिये किन्तु मेरा हक़ श्याम जी को मत दीजिये मुझे जलन हो रही है. अभी मुझे ही अपना शिष्य बनाईये फिर जब मैं पूरी तरह ज्ञानार्जन कर लू तब यह मौका उन्हें दीजियेगा.......

    एक बात और..........अब मत कहियेगा की मैं किसी का पक्ष ले रहा हू. हिन्दू मुसलमान की बात कतई मत करियेगा. आप दोनों लोग मुझे बराबर प्रिय है. दोनों लोग हमारे बड़े भाई है. लिहाजा शब्दों में कड़वाहट न घोले, बार-बार किसी चैलेंज देना अनुचित है. एक तो आप खुद को बुद्धिमान कहते हैं और ललकारते भी है. दूसरों को. गलत बात है अनवर भाई. किसी बात पर बहस सार्थक बहस उचित है किन्तु कडवाहट भरे शब्दों में नहीं. और श्याम भाई आपको भी ज्ञानी व समझदार मानता हू और आप हैं भी फिर भी "जन्नत की हकीकत" जैसे शब्दों का प्रयोग फिर कभी न करें. यह हमारा आदेश नहीं विनम्र निवेदन है, और अंतिम बात............

    ऐसे विवादों की बात लेकर पोस्ट कदापि न प्रकाशित करें, सभ्य शब्दों में कमेन्ट बॉक्स में चाहे जितना लिखे, बहस करना भी चाहिए, किन्तु सभी की भावनाओ का आदर करते हुए, पहले की तरह कोई कटुता फिर पैदा नहीं होगी . ऐसा मेरा विश्वास है.

  16. सही है हरीश जी....धन्यवाद

  17. हरीश जी ! किसी आदमी के सच्चे या झूठे होने का फैसला इस आधार पर नहीं किया जा सकता किलोग उसके बारे में क्या कहते हैं बल्कि उसका आधार यह है कि उसकी बात कितनी सच है ?
    @ भाई हरीश जी ! आप मेरी बात को देखिये और बताइए कि सलीम भाई को जो उपदेश मैंने दिया है , वह सच्चा है या नहीं ?
    अगर वह झूठा होगा तो मैं उसे अभी छोड़ दूंगा .
    अब आप अपने कहे के मुताबिक़ मेरे शिष्य बन चुके हैं और मैंने आपको ज्ञान देना भी शुरू कर दिया है .
    अब आप मुझ पर आरोप लगाना छोड़ कर मुझ से कुछ सीखना शुरू करें वरना आपकी मर्ज़ी .
    खुद सलीम खान साहब से आप पूछियेगा कि मेरी सलाह उन्हें सलाह ठीक लगी या ग़लत ?
    आपमें संभावनाएं हैं , उन्हें काम में लायें .
    मेरा एक मिशन है . मेरा प्यार , गुस्सा , झिड़की और धिक्कार , मेरा सोना-जागना , गर्ज़ यह कि एक एक गतिविधि सब कुछ डिज़ाइण्ड है.
    आप चाहे तो उसे सीख सकते हैं , मैंने आज तक किसी को उसे सिखाया नहीं है . मैंने आपसे कहा था कि जो कुछ अक्सर नज़र आता है , हकीक़त उसके खिलाफ़ भी हुआ करती है , यह सच है .
    ख़ैर जैसा आप चाहें .
    बहस करनी है तो बहस करें .
    सीखना है तो सीखें . हर तरह आपका स्वागत है .
    अपने अहंकार के बारे में भी किसी दिन आपको ज्ञान दूंगा , तब आप जानेंगे कि भारत में ऐसे ज्ञानी भी हैं जो सांप के काटे की दवा सांप के ज़हर से ही बनाते हैं .

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नवगीत गोल क्यों? नवगीत घोंसले में नवगीत छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत जगो सूर्य आता है नवगीत त्रिपदिक नवगीत दर्पण का दिल नवगीत दिवाली नवगीत नव वर्ष नवगीत नागफनी उग आयी नवगीत निर्माणों के गीत नवगीत पहले गुना नवगीत भटक न जाए नवगीत भीड़ में नवगीत मिली दिहाडी नवगीत में नए रुझान नवगीत राम बचाए नवगीत रार ठानते नवगीत लोकतंत्र का पंछी नवगीत वह खासों में खास है नवगीत शिव नवगीत संक्रांति काल है नवगीत संग्रह नवगीत सत्याग्रह के नाम पर नवगीत समय वृक्ष नवगीत समीक्षा नवगीत सड़क पर नवगीत सड़क पर... नवगीत: उगना नित नवगीत: उड़ चल हंसा नवगीत: दीन प्रदर्शन नवगीत: नाम बड़े हैं नवगीत: भाग्य कुंडली नवगीत: लोकतंत्र का पंछी बेबस नवगीत: कुण्डी खटकी नवगीत: छोडो हाहाकार मियाँ! नवगीत: बजा बाँसुरी नवगीत: भारत आ रै नवगीत: रब की मर्ज़ी नवभारत टाईम्स नशा नाक की सर्जरी नाग नाभिक ऊर्जा नारि नारी मुक्ति नारी-भाव नाश प्रकृति का निर्निमेष निर्विकार निष्काम कर्म निष्ठुरता नीति व्यवहार नीति-नियम नीति-व्यवहार नीलकंठ नेकियां नेह नर्मदा तीर पर नेह-नाता नैतिकता नैन-डोर नैना नौ कन्या न्यू-ईयर गिफ्ट नज़र नज़ारा पंचौदन अजः पद चिन्ह पद-चिन्ह पद्मिनी परब्रह्म परम-पिता परमाणु परमानंद परमार्थ परलोक परहित पराग पराया-धन पल- छिन पशु पहलू पाँच पर्व पायल पिचकारी पीयूषवर्ष छंद पीर पुरुषार्थ पुरोवाक : यह बगुला मन पुरोवाक ओस की बूँद पुरोवाक केरल एक झाँकी पुरोवाक बुधिया लेता टोह पुरोवाक् पुलिस पूजा पूर्ण-ब्रह्म पूर्णकाम पृथ्वी पैरोडी पोखर ठोके दावा प्यार प्रकृति प्रकृति दोहन प्रकृति बादल प्रजापति प्रणम्य शहीद प्रणय प्रणय -दीप प्रणय के पल प्रतिकण प्रतियोगिता प्रत्रकार प्रदूषण प्रभाव प्रभु प्रभु ज्ञान प्रश्न मन के प्राण शर्मा प्रातस्मरण स्तोत्र प्रिय प्रवास प्रीति के रंग प्रीति-चलन प्रेम के छःलक्षण प्रेम प्याला प्रेम ममता फरवरी कब क्या? फागुन बंगलोर . कर्णाटक बंगालूरू बंधन व मुक्ति नारी बगीचा बच्चे बजरंग बली बद्दुआ बन्गलूरू बबिता चौबे बयान बरसाना बरसानौ बलि बसंत पंचमी बसंत मुक्तक बसंतोत्सव/मदनोत्सव बहादुरी बहु बहुरंगी संस्कृति बांगला बाढ़ ने बिगाड़ा पशुपालन कारोबार बात बापू बाबा अम्बेडकर साहब बाबा संस्कृति बारह-सोलह वर्णिक छंद बाल कविता बाल कविता : तुहिना-दादी बाल कविता अंशू-मिंशू और भालू बाल कविता कौआ स्नान बाल गीत : ज़िंदगी के मानी बाल गीत पाई शाल बाल नवगीत सूरज बबुआ! बासंती दोहा ग़ज़ल बिग-बेंग बिगबेंग बिरसा मुंडा बुंदेली नवगीत बूढ़ा बरगद कथा-गीत बेटियाँ बेदिल बेनज़ाइटन ब्रह्म ब्रह्मजीत गौतम ब्रह्मा ब्रह्माण्ड ब्रिषभानु ब्लागिंग ब्लॉगरों का सम्मान ब्लोग नगरी ब्लोगोत्सव- २०१० भगवती प्रसाद देवपुरा भगवा रंग भवन निर्माण भविष्य भारत आरती भारत की रमणियाँ भारत जय हिन्द भारत भूमि भारत माता भारत रत्न भारतीय मुद्रा पर गाँधी भाव सप्रेषण भाषा भाषा सेतु भाषाविज्ञान भूख भेदाभेद परे भ्रष्टाचार मंजिल मंदिर मस्जिद मटुकी मतदाता मत्तगयंद सवैया मथानी मथुरा मदरसे मधु कल्पना मधुपुरी मधुर मधुर निनाद मन का निर्मलेी मन विहग मन-मीत मनाना मनुहार मनोरंजन मनोरजंन मन्त्र पल मर्दों में यौन कुंठा मर्यादा मलेशिया मस्ज़िद-मन्दिर महक महात्मा गाँधी पर मार्टिन लूथर किंग महादेवी महान देश महिला सेवा समिति महेश महफ़िल माखन माघ माता मात्रा गणना माधुरी गुप्ता मानव -कृत्य मानव के विस्तार मानव जातीय छंद मानो या न मानो माहिया किसान माहिया गीत माहिया दिवाली माहेश्वरी-प्रजा मिट गये मिथिलेश मिथिलेश दुबे मिथिलेश दुब मिथिलेश दुबे लेख महिंला मिलन मिस्र में विद्रोह मीरा मुकतक मुक्तक कार्यशाला मुक्तक छंद सलिला मुक्तक बसंत मुक्तक भूगोलीय मुक्तक में गणित मुक्तक हाइकु मुक्तिका मन से डरिए मुक्तिका हे माधव ! मुक्तिका किस्सा नहीं हूँ मुक्तिका बसंत मुक्तिका मन मुक्तिका यमक मुक्तिका राजस्थानी मुक्तिका रात मुक्तिका व्यंग्य मुक्तिका: न होता मुजाहिद मुन्ना भाई मुरारीलाल खरे मुलाक़ात मुस्कराहट मुहब्बत ए इलाही मुहब्बतनामा मूल मूलभूत सुविधाएं मूल्यांकन मेघ मेरा देश मेरे भैया मेरे मन मेले मैं -तू मैं करता तब मैथुनी-भाव मॉल संस्कृति मोक्ष मोमिन मोर मुकुट मोहन शशि मौसम मौसम अंगार है यकीं यक्ष प्रश्न यक्ष प्रश्न २ यक्ष प्रश्न ३ - जात और जाति यक्ष-प्रश्न यम-यमी यमकमयी मुक्तिका यश मालवीय यशवंत याद में तेरी जाग-जाग के युवा दिवस युवा प्रतिभा सम्मान युवावर्ग यूपीखबर 'DR. 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आप सभी को हर्ष और बधाई के साथ यह सूचना देना चाहता हूँ कि LBA अपनी सफलता के उस मुक़ाम तक आ चुका है कि इसकी सदस्यता संख्या अपने चरण तक पहुँच चुकी है और जो ब्लॉगर्स बन्धु इससे जुड़ने की इच्छा रख रहे हैं और जिनके मेल मुझे मिल रहे हैं उसको मद्देनज़र रखते हुए नयी सदस्यता के इच्छुक ब्लॉगर्स को एक और भी शक्तिशाली और नया मंच का गठन आज किया जा रहा है जिसका नाम है 'ऑल इंडिया ब्लॉगर्स असोसिएशन' अर्थात AIBA ! इस मंच का हिस्सा सभी भारतीय बन सकते है, फ़िर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में रह रहें हों !!!
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