हमने कहा कि ‘हमारे खेत में सरसों आज भी उगती है . मैं आप को जल्दी ही सरसों का फोटो भेंट करूँगा .'
तब से जब भी सरसों के खूबसूरत फूलों पर, उसकी लहलहाती फ़सल पर नज़र पड़ती थी तो दिल चाहता था कि उन्हें यह हरा-पीला मंज़र दिखा दें लेकिन उस मंज़र को क़ैद कैमरे में कौन करे ?
आज इत्तेफ़ाक़ से हम भी थे, सरसों के फूल भी थे और मंज़र क़ैद करने वाला भी आ पहुंचा। मैंने उनसे चंद फ़ोटो लेने की इल्तेजा की और वे राज़ी हो गए। उनकी मदद से सरसों के ये फूल अव्वलन वंदना जी को भेंट करता हूं और सानियन अपने सभी पाठकों को।
वंदना जी ! सरसों में एक रंग पीला नज़र आ रहा है और एक रंग हरा। पीला रंग क्षमा का प्रतीक है और हरा रंग समृद्धि का। यह फ़ोटो मैं आपको भेंट करते हुए अपने मालिक से दुआ करता हूं कि वह आपकी तमाम ख़ताओं को क्षमा करे, आपको हिदायत दे और आपके दिल को भी क्षमा से भर दे जैसे कि उसने इस धरती को सरसों के पीले फूलों से भर दिया है। वह मालिक आपके जीवन को हर तरह से समृद्धिशाली बनाए जैसे कि उसने इस ज़मीन को हरियाली से ढक दिया है। आपके लिए भी ऐसा ही हो और उनके लिए भी जो मेरा ब्लाग पढ़ते हैं और उनके लिए भी जो मेरा ब्लाग नहीं पढ़ते।
इस नज़ारे से लुत्फ़अंदोज़ होने के बाद इस लज़्ज़त को इसकी तकमील तक पहुंचाने के लिए हम आपको पढ़वाते हैं वंदना जी की सुंदर रचना, उनके शुक्रिया के साथ।
अब खेत में सरसों कहाँ उगती है ?
यादों के लकवे पहले ही उजाड़ देते हैं
अब भंवर नदिया में कहाँ पड़ते हैं ?
अब तो पक्के घड़े भी डूबा देते हैं
यादों के लकवे पहले ही उजाड़ देते हैं
अब भंवर नदिया में कहाँ पड़ते हैं ?
अब तो पक्के घड़े भी डूबा देते हैं
हम वंदना जी से दरख्वास्त करेंगे कि वे हमारे प्यारे ब्लाग ‘प्यारी मां‘ में एक लेखिका के तौर पर जुडें और मां के बारे में कुछ सुंदर रचनाएं हिंदी पाठकों को दें। हम उनकी रचनाओं को ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे।
भाई अनवर साहब सर्वप्रथम आपको धन्यवाद की मुझे वंदना जी के ब्लॉग पर पहुँचाया. उनकी रचनाये पढ़ी, उनकी सोच,परिकल्पना, सुविचार पढ़कर अच्छा लगा. किन्तु जिस तरह आपने अपनी पोस्ट लिखी है मुझे लगा उन्होंने कुछ गलत लिख दिया है, जिसके कारण आप उनकी खता माफ़ करवा रहे है. एक बात का तो पता चल गया आप भाव पर नहीं बल्कि शब्दों पर ध्यान देते है. अरे भाई सरसों के फूल सभी देखते हैं उन्होंने भी देखा होगा. और आप उन्हें फूल ही दिखाने लगे. वंदना जी के कविता का भाव हमरी समझ में यही था की जो प्रेम, भाईचारा पहले था. वह ख़त्म होता जा रहा है. हमें लगता है की यदि कोई प्यासा आपके पास आये और कहे की मैं बहुत प्यासा हू एक घूँट पानी पिला दो तो एक घूट पिलाने के बाद कहेंगे अब भाग जाओ एक घूँट कहे थे इससे अधिक नहीं पिलाऊंगा. भैया भाव पर ध्यान दो शब्दों पर नहीं.
एक बात और कोई आपकी पोस्ट पर टिप्पणी करे या न करे किन्तु मैं बहुत बड़ा चिपकू हू. एक बार चिपक गया तो फेविकोल की तरह छोड़ता नहीं. और बंधू आप को तो बड़ा भाई कहा है कैसे छोड़ दू. आपकी पोस्ट पर आकर उत्पात करता रहूँगा. यह कहावत सुने है न............. क्षमा बणन को चाहिए छोटन को उत्पात. बस वही समझ लो भैया.
@ हरीश जी ! हमने उनकी रचना पढ़ी और वह अच्छी लगी और हमने उसकी तारीफ़ भी की.इसके बाद हमने उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानव जाती के लिए दुआ की है और हम सबको जिस दर्जे में मानवीय गुणों से सुशोभित होना चाहिए था , हम आज नहीं हैं , वन्दना जी भी शायद ऐसा ही कहें लेकिन आप उनके नाम की जगह अपना और एलबीए परिवार का नाम पढ़ें तो आपको दुआ का भाव ग्रहण करने में कोई भी दिक्क़त न होगी . चिपकाने लिए ही हम यहाँ पर हैं भाई .
इंशा अल्लाह जल्दी आपको 'शिर्क' के बारे में जानकारी देंगे ताकि ...
http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-sense-of-worship-anwer-jamal.html
'शिर्क'का शाब्दिक अर्थ हमें जरा बताईयेगा . शायद मुझे समझने में भूल हुयी. यदि आपने दुआ सबके लिए मांगी है तो बहुत अच्छी बात है. यदि लोग दूसरों के लिए ही समर्पण का भाव रखे तो सारे विवाद ही ख़त्म हो जाय. हार्दिक शुभकामना.
'शिर्क' का मतलब है एक पैदा करने वाले के अस्तित्व और विशेष गुणों में किसी सृष्टि को शरीक कर लेना .
तफसील पोस्ट में बताऊंगा , इंशा अल्लाह .
thanks bade bhai.
well
धन्यवाद, अनवर जी---आमीन---मालिक से आपकी दुआ -- सबके लिये विस्त्रत करके कुबूल ....
--हरीश जी ने सही कहा...कविता में शब्द-अन्यार्थ(लक्षणा व व्यन्जना)-में लिखे गये हैं...
---शिर्क से ही शिरकत शब्द निक्ला होगा= भाग लेना, पार्ट लेना=सहयोगी बनना...
अनवर साहब
आपकी पहले तो तहे दिल से आभारी हूँ कि आपने इतनी गहनता से सोचा और उस पर एक पोस्ट लिख दी………जहाँ तक उस शेर की बात है तो उसका अर्थ हरीश जी ने सही दिया है और आपकी सोच भी अपनी जगह सही है………ऐसा है न एक ही बात के अनेक भाव निकलते हैं सबका अपना अपना नज़रिया होता है ………कोई फ़ूल का सौंदर्य ही देखता है तो कोई फ़ूल के साथ जो काँटे होते हैं उनके दंश भी देखता है……………कोई उसकी खूश्बू ही महसूस कर पाता है और कोई उसके शरीर पर लगे घावों का दर्द भी महसूस करता है …………इसलिये हम सबकी सोच के अनुसार ही हमारे भाव जन्म लेते हैं मगर उनमे कहीं कोई बुराई नही होती और सबसे अच्छा यही होता है कि एक बात के कितने भाव है वो सब तक पहुँचे और वो कार्य आपने कर दिखाया…………
आपने अपने ‘प्यारी मां' ब्लोग से जुडने को कहा है तो आप बता दीजियेगा कैसे जुडा जायेगा…………कोशिश करूँगी जो महसूस करती हूँ वो सब तक पहुँचाने की।
सरसों के फूल और वंदना जी की कविता.. एक जैसा रोमांच है दोनों में... कविता पहले ही पढ़ ली थी आज आपके सरसों के खेत देखा मन में वसंत खिल उठा..
कविता बहुत ही सुन्दर थी...और यह तस्वीर भी बहुत ही ख़ूबसूरत ...
वंदना और आप दोनों का शुक्रिया..
कविता से प्रेरित हो कर अच्छा सन्देश देती पोस्ट ...आच्छा लगा पढ़ना ..
@ डाक्टर श्याम जी ! ऊपर भाई हरीश मुझे समझा रहे थे कि मुझे वंदना जी के भाव पर ध्यान देना चाहिए था न कि उनके शब्दों पर और अब आप फिर वही बात मुझे समझाने चले आए जिसका जवाब मैं हरीश भाई को दे चुका हूँ । मैं इतना बर्दाश्त नहीं किया करता ।
क्या आपको अभी तक पता नहीं चला कि मैं आपसे ज़्यादा समझदार हूं ?
क्या आपको नहीं पता कि मैंने अपने पाठ्यक्रम में वही किताब पढ़ी है जो कि आपने पढ़ी है ?
और फिर अलग से एक सब्जेक्ट के रूप में संस्कृत लेकर फिर से इंटरमीडिएट किया और पं. रूपचंद शास्त्री जी से ट्यूशन पढ़ा और इन सबने मझे वही बताया जो कि मुझे पहली दूसरी कक्षा में ही बता दिया गया था कि कविता में अलंकारों और प्रतीकों के माध्यम से कवि अपना भाव व्यक्त करता है और यही काव्य का सौंदर्य होता है लेकिन आपको लगता है कि अनवर जमाल को काव्य की समझ ही नहीं है जबकि वह ख़ुद एक कवि है । उसके काव्य की समझ को देखना चाहते हो तो देखो उसका ब्लाग 'मन की दुनिया' ।
आप लोग क्यों इतना Overself confidence का शिकार हैं कि अनवर जमाल जैसी हस्ती को भी Underestimate करने से नहीं चूकते । इसका नतीजा यह होगा कि अनवर जमाल आपका Overself confidence भी तोड़ डालेगा और आपका Confidence भी जब्त कर लेगा । आपको यकीन आ जाना चाहिए और न यकीन हो तो बनिए मेरे ब्लाग 'चर्चाशाली मंच' के सदस्य।
महाशय जी ! आपको कविता का तो पता है लेकिन क्या आपको फ़ोटोग्राफ़ी के बारे में नहीं पता कि जैसे एक कवि अपने शब्दों के जरिए कुछ संदेश देता है ऐसे ही एक फ़ोटोग्राफ़र भी फोटो के माध्यम से कुछ कहने की कोशिश करता है जिसे आप और हरीश जी दोनों ही नहीं समझ पाए ।
वंदना जी ने जो सवाल अपनी कविता में उठाया है इस नये दौर में वह पुराना प्रेम और भाईचारा कहां है जो कभी हमारी पहचान हुआ करता था तो हमने उनके सवाल का जवाब अपने फोटो के जरिए दिया है कि हमारे दिल की जमीन में आज भी उसी पुराने प्रेम और भाईचारे के फूल भरपूर तरीके से खिले हुए हैं । इसलिए मैं आपको अज्ञानी और अल्पबुद्धि कहता हूं । मूढ़ और शठ सौजन्यतावश कह नहीं पाता , ऐसा कहना अच्छा नहीं लगता । अंधे को अंधा कहने की परंपरा हमारे देश में है भी नहीं ।
हरेक आदमी आज अच्छी तरह जान ले कि अनवर जमाल कभी पहल नहीं करता लेकिन जवाब जरूर देता है और जब देता है तो फिर भरपूर देता है ।
इसके अलावा पोस्ट सप्तार्थिक मंतव्यधारी है कि अगर अनवर जमाल आपको न बताए तो आप कभी उन्हें जान ही नहीं सकते और वे सभी पूरे भी हो गए हैं , अल्-हम्दुलिल्लाह !
अगर आप बुद्धि रखते हैं तो बताईये कि वे सप्तार्थ क्या हैं ?
मुझसे पूछना चाहो तो पहले ख़ुद को शिष्य घोषित करना , तब पूछना ।
आशा है कि आप बुरा मानने की कोशिश के अलावा कुछ और न कर पाएंगे ।
@ रश्मि रविजा और अरूण चंद्र रॉय जी ! आपको कविता और फ़ोटो दोनों पसंद आए ।
शुक्रिया ।
कृप्या आप मेरी इस पोस्ट को
mankiduniya.blogspot.com
पर भी देखें ।
@ वंदना जी ! आप अपनी email ID मुझे eshvani@gmail.com
पर भेज दीजिए । तब मैं आपको इन्विटेशन भेजूंगा जिसे स्वीकारते ही आप एक लेखिका के रूप में 'pyari maan' से जुड़ जाएँगी ।
धन्यवाद !
@ संगीता जी ! कृप्या आप भी एक लेखिका के तौर पर pyari maan से जुड़कर माँ की अज़्मत को समाज में कायम करने की कृपा करें ।
अनवर जमाल----हमको मालूम है ज़न्नत की हकीकत.....बस थोडा लिखा बहुत समझ लीजिये ..
---उस किताब का नाम क्या है जो हम दोनों ने पढी है.....और यह तथ्य आपको मालूम है...
श्याम भाई काम से काम आप गुस्से में मत आईये, गुस्सा करने का अधिकार सिर्फ उन्हें दे दीजिये, जाने दीजिये मैं अनवर भाई का शिष्य बन चुका हूँ. मुझे सीखने दीजिये आप, मेरे हक पर डाका मत डालिए प्लीज, अनवर भाई आप सबका गुस्सा मुझ पर उतरा कीजिये, मैं अपने ईश्वर और आपके खुदा दोनों को अपना मानता हू. इसीलिए कहता हू. सारी कायनात का मालिक एक ही है. पहले यही जानता था, जब आपने बताया की मेरे भगवान और आपके खुदा अलग- अलग हैं तभी मुझे ज्ञान हुआ, इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद, मै आपसे सीखने को ख्वाहिश मंद हू. पहले आपने मुझे अज्ञानी और अल्पबुद्धि कहा और अब श्याम भाई को कह रहे हैं. अब देखिये आप मेरा अधिकार आप श्याम जी को दे रहे है. देखिये भाई मुझ को ही आप मूढ़ और शठ भी कह लीजिये किन्तु मेरा हक़ श्याम जी को मत दीजिये मुझे जलन हो रही है. अभी मुझे ही अपना शिष्य बनाईये फिर जब मैं पूरी तरह ज्ञानार्जन कर लू तब यह मौका उन्हें दीजियेगा.......
एक बात और..........अब मत कहियेगा की मैं किसी का पक्ष ले रहा हू. हिन्दू मुसलमान की बात कतई मत करियेगा. आप दोनों लोग मुझे बराबर प्रिय है. दोनों लोग हमारे बड़े भाई है. लिहाजा शब्दों में कड़वाहट न घोले, बार-बार किसी चैलेंज देना अनुचित है. एक तो आप खुद को बुद्धिमान कहते हैं और ललकारते भी है. दूसरों को. गलत बात है अनवर भाई. किसी बात पर बहस सार्थक बहस उचित है किन्तु कडवाहट भरे शब्दों में नहीं. और श्याम भाई आपको भी ज्ञानी व समझदार मानता हू और आप हैं भी फिर भी "जन्नत की हकीकत" जैसे शब्दों का प्रयोग फिर कभी न करें. यह हमारा आदेश नहीं विनम्र निवेदन है, और अंतिम बात............
ऐसे विवादों की बात लेकर पोस्ट कदापि न प्रकाशित करें, सभ्य शब्दों में कमेन्ट बॉक्स में चाहे जितना लिखे, बहस करना भी चाहिए, किन्तु सभी की भावनाओ का आदर करते हुए, पहले की तरह कोई कटुता फिर पैदा नहीं होगी . ऐसा मेरा विश्वास है.
सही है हरीश जी....धन्यवाद
हरीश जी ! किसी आदमी के सच्चे या झूठे होने का फैसला इस आधार पर नहीं किया जा सकता किलोग उसके बारे में क्या कहते हैं बल्कि उसका आधार यह है कि उसकी बात कितनी सच है ?
@ भाई हरीश जी ! आप मेरी बात को देखिये और बताइए कि सलीम भाई को जो उपदेश मैंने दिया है , वह सच्चा है या नहीं ?
अगर वह झूठा होगा तो मैं उसे अभी छोड़ दूंगा .
अब आप अपने कहे के मुताबिक़ मेरे शिष्य बन चुके हैं और मैंने आपको ज्ञान देना भी शुरू कर दिया है .
अब आप मुझ पर आरोप लगाना छोड़ कर मुझ से कुछ सीखना शुरू करें वरना आपकी मर्ज़ी .
खुद सलीम खान साहब से आप पूछियेगा कि मेरी सलाह उन्हें सलाह ठीक लगी या ग़लत ?
आपमें संभावनाएं हैं , उन्हें काम में लायें .
मेरा एक मिशन है . मेरा प्यार , गुस्सा , झिड़की और धिक्कार , मेरा सोना-जागना , गर्ज़ यह कि एक एक गतिविधि सब कुछ डिज़ाइण्ड है.
आप चाहे तो उसे सीख सकते हैं , मैंने आज तक किसी को उसे सिखाया नहीं है . मैंने आपसे कहा था कि जो कुछ अक्सर नज़र आता है , हकीक़त उसके खिलाफ़ भी हुआ करती है , यह सच है .
ख़ैर जैसा आप चाहें .
बहस करनी है तो बहस करें .
सीखना है तो सीखें . हर तरह आपका स्वागत है .
अपने अहंकार के बारे में भी किसी दिन आपको ज्ञान दूंगा , तब आप जानेंगे कि भारत में ऐसे ज्ञानी भी हैं जो सांप के काटे की दवा सांप के ज़हर से ही बनाते हैं .