
डॉ श्याम गुप्त की ग़ज़ल.....
ग़ज़ल---अदावत की अदा
आपकी शोख नज़र जाने क्यूं मुस्काई है।
क्या कहें इश्के-नज़र है कि ये रुसबाई है।
आप जो मुस्कुराए तो ये हमने समझा ,
अपने दामन में बहारों ने ली अंगडाई है।
आपकी चाहत और मेरे नगमों की महक,
लेके गुलशन से महकती ये हवा आई है।
हम जो इतराने लगे आपकी अदाओं पर,
क्यों न समझे कि अदावत की ये शहनाई है।
हमने जो आपको चाहा क्या भला ज़ुल्म किया,
आपको क्यों ये अदावत की अदा भाई है।
इस अदावत की अदा की भी अदा क्या कहिये ,
श्याम, इस पर यूंही मिटने की कसम खाई है॥
----डा श्याम गुप्त
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आपकी शोख नज़र जाने क्यूं मुस्काई है।
क्या कहें इश्के-नज़र है कि ये रुसबाई है।
आप जो मुस्कुराए तो ये हमने समझा ,
अपने दामन में बहारों ने ली अंगडाई है।
आपकी चाहत और मेरे नगमों की महक,
लेके गुलशन से महकती ये हवा आई है।
हम जो इतराने लगे आपकी अदाओं पर,
क्यों न समझे कि अदावत की ये शहनाई है।
हमने जो आपको चाहा क्या भला ज़ुल्म किया,
आपको क्यों ये अदावत की अदा भाई है।
इस अदावत की अदा की भी अदा क्या कहिये ,
श्याम, इस पर यूंही मिटने की कसम खाई है॥
----डा श्याम गुप्त