
डा श्याम गुप्त का गीत-----यदि तुम.....
यदि तुम आजाते जीवन में
यदि तुम आजाते जीवन में,
निश्वासों में बस कर मन में।
कितने सौरभ कण से हे प्रिय!,
बिखरा जाते इस जीवन में ।
गाते रहते मधुरिम पल छिन,
तेरे ही गीतों का विहान ।
जाने कितने वे इन्द्रधनुष,
खिल उठते नभ में बन वितान ।
खिल उठती कलियां उपवन में,
यदि तुम आजाते जीवन में ।।
महका महका आता सावन,
लहरा लहरा गाता सावन ।
तन मन पींगें भरता नभ में,
नयनों मद भर लाता सावन ।
जाने कितने वर्षा-वसंत,
आते जाते पुष्पित होकर ।
पुलकित होजाता जीवन का,
कौना कौना सुरभित होकर ।
उल्लास समाता कण कण में,
यदि तुम आजाते जीवन में ।।
संसृति भर के संदर्भ सभी ,
प्राणों की भाषा बन जाते ।
जाने कितने नव समीकरण,
जीवन की परिभाषा गाते ।
पथ में जाने कितने दीपक,
जल उठते बन कर दीप राग ।
चलते हम-तुम मनमीत बने,
बज उठते नव संगीत साज ।
जलता राधा का प्रणय दीप,
तेरे मन के वृन्दावन में ।
यदि तुम आजाते जीवन में॥
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यदि तुम आजाते जीवन में,
निश्वासों में बस कर मन में।
कितने सौरभ कण से हे प्रिय!,
बिखरा जाते इस जीवन में ।
गाते रहते मधुरिम पल छिन,
तेरे ही गीतों का विहान ।
जाने कितने वे इन्द्रधनुष,
खिल उठते नभ में बन वितान ।
खिल उठती कलियां उपवन में,
यदि तुम आजाते जीवन में ।।
महका महका आता सावन,
लहरा लहरा गाता सावन ।
तन मन पींगें भरता नभ में,
नयनों मद भर लाता सावन ।
जाने कितने वर्षा-वसंत,
आते जाते पुष्पित होकर ।
पुलकित होजाता जीवन का,
कौना कौना सुरभित होकर ।
उल्लास समाता कण कण में,
यदि तुम आजाते जीवन में ।।
संसृति भर के संदर्भ सभी ,
प्राणों की भाषा बन जाते ।
जाने कितने नव समीकरण,
जीवन की परिभाषा गाते ।
पथ में जाने कितने दीपक,
जल उठते बन कर दीप राग ।
चलते हम-तुम मनमीत बने,
बज उठते नव संगीत साज ।
जलता राधा का प्रणय दीप,
तेरे मन के वृन्दावन में ।
यदि तुम आजाते जीवन में॥