
डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल ...
सर हमारा आपके कांधे पै था ।
ख्याल सारा आपकी बातों पै था ।
क्या नज़ारा था कि हम थे आपके,
क्या गुमाँ उन प्यार की रातों पै था।
क्या बताएं क्या कहैं कैसे कहें ,
क्या नशा उन दिल के जज्वातों पै था ।
आप जो भूले नहीं था गम कोई,
हमको अरमां आपकी यादों पै था।
कैसे टूटा ,श्याम' टुकड़े होगया,
दिल हमारा आपके हाथों पै था॥
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ख्याल सारा आपकी बातों पै था ।
क्या नज़ारा था कि हम थे आपके,
क्या गुमाँ उन प्यार की रातों पै था।
क्या बताएं क्या कहैं कैसे कहें ,
क्या नशा उन दिल के जज्वातों पै था ।
आप जो भूले नहीं था गम कोई,
हमको अरमां आपकी यादों पै था।
कैसे टूटा ,श्याम' टुकड़े होगया,
दिल हमारा आपके हाथों पै था॥