
मुक्तिका मन से डरिए
मुक्तिका
मन से डरिए
संजीव
*
चिंता दुनिया की मत करिए
केवल अपने मन से डरिए
.
नेह नर्मदा- श्रम-सीकर में
नहा-नहा भवसागर तरिए
.
जो बाँहों में; वही चाह में
रहे; गैर पर कभी न मरिए
.
खाली हाथों आना-जाना
व्यर्थ तिजोरी ही मत भरिए
.
हर अंकुर से सीखें बढ़ना
फूलें फलिए तब हँस झरिए
*
सह लेती भूकंप इमारत
अगर पड़े हों उसमें सरिए
*
देख दूर से आह न भरिए
मंज़िल को बाँहों में भरिए
***
२४-१-२०२१
Read More
मन से डरिए
संजीव
*
चिंता दुनिया की मत करिए
केवल अपने मन से डरिए
.
नेह नर्मदा- श्रम-सीकर में
नहा-नहा भवसागर तरिए
.
जो बाँहों में; वही चाह में
रहे; गैर पर कभी न मरिए
.
खाली हाथों आना-जाना
व्यर्थ तिजोरी ही मत भरिए
.
हर अंकुर से सीखें बढ़ना
फूलें फलिए तब हँस झरिए
*
सह लेती भूकंप इमारत
अगर पड़े हों उसमें सरिए
*
देख दूर से आह न भरिए
मंज़िल को बाँहों में भरिए
***
२४-१-२०२१