
डा श्याम गुप्त के पद....
१-
सखी री नैना मिलाय गयो श्याम।
मोहिनि मूरत हिये समाय गयी सांवरिया घनश्याम।
अब न परत कल जिय तरसत सखि निरखूँ आठों याम।
कुञ्ज गलिन में, राहन रोकी, पूछन लाग्यो नाम।
दधि माखन लै कितकूं जावो किधों तिहारो गाम।
काहे गोरस मथुरा भेजौ, भूखौ गोकुल धाम।
फोडी गागरि वंसी बजैया जसुमति सुत अभिराम।
श्याम, श्याम सुख लीला लखि छकि श्याम ह्वै गयो श्याम॥
२-
सखी री नैना रोय थके।
श्याम सिधारे बृज तजि जियरा कैसे धीर धरे।
सखा सखी वन बाग़ तलैया कोऊ न रोकि सके।
को अब फोड़े मटुकी दधि की माखन कौन चखे।
गाय रम्भाएं री सखि, गोसुत इत उत कान्ह लखे।
नैनन नीर बहावें नित प्रति, रोके नाहिं रुके।
अब लौटें अब लौटें कन्हैया पलकें नाहिं झपे।
कान्ह न लौटें सखी राधिका कब तक राह तके।
श्याम , विरज़ भये बृज के वासी कान्हा रंग रंगे॥
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सखी री नैना मिलाय गयो श्याम।
मोहिनि मूरत हिये समाय गयी सांवरिया घनश्याम।
अब न परत कल जिय तरसत सखि निरखूँ आठों याम।
कुञ्ज गलिन में, राहन रोकी, पूछन लाग्यो नाम।
दधि माखन लै कितकूं जावो किधों तिहारो गाम।
काहे गोरस मथुरा भेजौ, भूखौ गोकुल धाम।
फोडी गागरि वंसी बजैया जसुमति सुत अभिराम।
श्याम, श्याम सुख लीला लखि छकि श्याम ह्वै गयो श्याम॥
२-
सखी री नैना रोय थके।
श्याम सिधारे बृज तजि जियरा कैसे धीर धरे।
सखा सखी वन बाग़ तलैया कोऊ न रोकि सके।
को अब फोड़े मटुकी दधि की माखन कौन चखे।
गाय रम्भाएं री सखि, गोसुत इत उत कान्ह लखे।
नैनन नीर बहावें नित प्रति, रोके नाहिं रुके।
अब लौटें अब लौटें कन्हैया पलकें नाहिं झपे।
कान्ह न लौटें सखी राधिका कब तक राह तके।
श्याम , विरज़ भये बृज के वासी कान्हा रंग रंगे॥