
ग़ज़ल की ग़ज़ल....डा श्याम गुप्त.....
शेर मतले का रहे तो ग़ज़ल होती है।
शेर मक्ते का रहे तो ग़ज़ल होती है।
रदीफ़ औ काफिया रहे तो ग़ज़ल होती है,
बहर हो सुर-ताल रहे तो ग़ज़ल होती है।
करीब पांच हों शेर तो ग़ज़ल होती है,
बात खासो-आम की हो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की क्या बात यारो वो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की जिसमें बात रहे वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल कहने का इक अंदाज़े ख़ास होता है,
अंदाज़े-सुखन जुदा रहे तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल तो बस इक अंदाज़े-बयाँ है 'श्याम,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है॥
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शेर मक्ते का रहे तो ग़ज़ल होती है।
रदीफ़ औ काफिया रहे तो ग़ज़ल होती है,
बहर हो सुर-ताल रहे तो ग़ज़ल होती है।
करीब पांच हों शेर तो ग़ज़ल होती है,
बात खासो-आम की हो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की क्या बात यारो वो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की जिसमें बात रहे वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल कहने का इक अंदाज़े ख़ास होता है,
अंदाज़े-सुखन जुदा रहे तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल तो बस इक अंदाज़े-बयाँ है 'श्याम,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है॥