
श्याम दोहावली---दोहा एकादश.....डा श्याम गुप्त....
जो स्थित स्व: में रहे, रहे सदा ही स्वस्थ ।
तन बलशाली, मन भ्रमित, तन-मन हो अस्वस्थ।
पीकर प्याला खुश भये,खूब बजाएं गाल।
बारी बारी आचरण , शूकर, श्वान, शृगाल।
करें सभी कर्तव्य निज,सबको करने देंय ।
जनतांत्रिक अधिकार का,सुख तभी तो लेंय।
लोकतंत्र के बाग़ में , उगें कागजी फूल।
भिन्न भिन्न रंग-रूप पर,गंध हीन सब फूल ।
क्यों कोसे संतान को, चलें निराली चाल।
पद चिन्हों का अनुसरण , करते बाल गुपाल।
मिलन मिलन बहु अंतरा, मिलन मिलन बहु भाव।
चोर मिलें, चोरी करें, नदिया तीर्थ प्रभाव।
दुष्ट, दुष्टता ही करे, चाहे हो विद्वान।
फणि मणि सम ही आचरें, जाने सकल जहान।
नाग मोर सिंह मृग मिले,पद-कुर्सी की नीति।
लोकसभा भई तपोवन, बनी दुश्मनी प्रीति।
बने धनार्जन सेतु सब, ध्यान, ज्ञान, विज्ञान।
अमरीका जाकर बसें , भारत के विद्वान्।
ह्त्या लूट डकैती, बने सभी व्यापार।
पकड़ फिरौती का हुआ, ऊंचा कारोबार॥
सच्चे मूरख होगये, झूठे ज्ञानी मान ।
छल छंदों में होगया , अपना देश महान॥
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तन बलशाली, मन भ्रमित, तन-मन हो अस्वस्थ।
पीकर प्याला खुश भये,खूब बजाएं गाल।
बारी बारी आचरण , शूकर, श्वान, शृगाल।
करें सभी कर्तव्य निज,सबको करने देंय ।
जनतांत्रिक अधिकार का,सुख तभी तो लेंय।
लोकतंत्र के बाग़ में , उगें कागजी फूल।
भिन्न भिन्न रंग-रूप पर,गंध हीन सब फूल ।
क्यों कोसे संतान को, चलें निराली चाल।
पद चिन्हों का अनुसरण , करते बाल गुपाल।
मिलन मिलन बहु अंतरा, मिलन मिलन बहु भाव।
चोर मिलें, चोरी करें, नदिया तीर्थ प्रभाव।
दुष्ट, दुष्टता ही करे, चाहे हो विद्वान।
फणि मणि सम ही आचरें, जाने सकल जहान।
नाग मोर सिंह मृग मिले,पद-कुर्सी की नीति।
लोकसभा भई तपोवन, बनी दुश्मनी प्रीति।
बने धनार्जन सेतु सब, ध्यान, ज्ञान, विज्ञान।
अमरीका जाकर बसें , भारत के विद्वान्।
ह्त्या लूट डकैती, बने सभी व्यापार।
पकड़ फिरौती का हुआ, ऊंचा कारोबार॥
सच्चे मूरख होगये, झूठे ज्ञानी मान ।
छल छंदों में होगया , अपना देश महान॥