
डा श्याम गुप्त का गीत...माखन ..
माखन...
कौन से पल बन जाँय ऋचाएं ,
कौन से पल शुचि मन्त्र बनें ।
हर पल को जीले रे मन! तू,
क्या जाने कब द्वंद्व मिलें ॥ ..... कौन से पल.....
हर पल प्रेम प्रीति रत रहकर,
सफल करे नर, जीवन को।
प्रीति मथानी से तू मथ ले,
रे मन! अंतस के दधि को।
जाने किस मधुरिम पल-छिन में,
माखन तुझको मिलजाए॥ .......कौन से पल॥
जीवन उदधि है इक रत्नाकर,
सत रूपी गागर कहिये।
धर्म की डोरी, कर्म मथानी,
भक्ति भाव मथते रहिये।
स्वार्थ-द्वंद्व की मथनी तेरी,
घोंघे -सीपी मिल जायेंगे।
शुचि कर्मों की बने मथानी,
रत्न तभी तो मिल पायेंगे।
क्या जाने किस मधुरिम कृति से ,
जीवन का घृत मिल जाए॥ .... कौन से पल....
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कौन से पल बन जाँय ऋचाएं ,
कौन से पल शुचि मन्त्र बनें ।
हर पल को जीले रे मन! तू,
क्या जाने कब द्वंद्व मिलें ॥ ..... कौन से पल.....
हर पल प्रेम प्रीति रत रहकर,
सफल करे नर, जीवन को।
प्रीति मथानी से तू मथ ले,
रे मन! अंतस के दधि को।
जाने किस मधुरिम पल-छिन में,
माखन तुझको मिलजाए॥ .......कौन से पल॥
जीवन उदधि है इक रत्नाकर,
सत रूपी गागर कहिये।
धर्म की डोरी, कर्म मथानी,
भक्ति भाव मथते रहिये।
स्वार्थ-द्वंद्व की मथनी तेरी,
घोंघे -सीपी मिल जायेंगे।
शुचि कर्मों की बने मथानी,
रत्न तभी तो मिल पायेंगे।
क्या जाने किस मधुरिम कृति से ,
जीवन का घृत मिल जाए॥ .... कौन से पल....