
डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल....
श्याम इस दिल में कोई अब रहे कैसे रहे ।
भूले दिल की दास्ताँ कोई कहे कैसे कहे।
आशनां जिस दिल पै दिल था आशनाई कब रही,
आशनाई ऐसे दिल से क्या करे कैसे करे।
ऐ मेरे दिल बात दिल की दिल से हम कैसे कहें ,
दिल तो उनके पास है कोई कहे कैसे कहे।
अब कहाँ वो हसरतें वो तमन्ना वो आरज़ू,
दिल ही पहलू में नहीं अब क्या कहें कैसे कहें।
श्याम, शिकवे-गिले उनसे करे कोई क्या करे,
खाली बोतल अब नशा कैसे करे कैसे कहे॥
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भूले दिल की दास्ताँ कोई कहे कैसे कहे।
आशनां जिस दिल पै दिल था आशनाई कब रही,
आशनाई ऐसे दिल से क्या करे कैसे करे।
ऐ मेरे दिल बात दिल की दिल से हम कैसे कहें ,
दिल तो उनके पास है कोई कहे कैसे कहे।
अब कहाँ वो हसरतें वो तमन्ना वो आरज़ू,
दिल ही पहलू में नहीं अब क्या कहें कैसे कहें।
श्याम, शिकवे-गिले उनसे करे कोई क्या करे,
खाली बोतल अब नशा कैसे करे कैसे कहे॥