
डा श्याम गुप्त का गीत.....जब- जब सांझ ढले....
जब जब सांझ ढले |
आजाती है याद तुम्हारी,
मन इक स्वप्न पले |
जब जब सांझ ढले ॥
खगकुल लौट के अपने अपने ,
नीड़ को आते हैं |
तरु-शिखरों से इक दूजे को,
गीत सुनाते हैं |
तुलसी चौरे पर जब जब ,
वह संध्या दीप जले |----आजाती है...... ॥
मंदिर के घंटों की स्वर-ध्वनि,
अनहद नाद सुनाएं |
गौधूली वेला में घर को ,
लौटी गाय रम्भाएं ।
चन्दा उगे क्षितिज के ऊपर,
सूरज उधर ढले। ..............जब जब सांझ----॥
गाँव में चौपालों पर , और-
नगरों में चौराहों पर ।
चख-चख चर्चाएँ चलतीं हैं ,
छत, पनघट ,राहों पर ।
चाँद-चकोरी नैन डोर की-
चुप-चुप रीति चले ।
आजाती है याद तुम्हारी
मन इक स्वप्न पले।
जब जब सांझ ढले ॥
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आजाती है याद तुम्हारी,
मन इक स्वप्न पले |
जब जब सांझ ढले ॥
खगकुल लौट के अपने अपने ,
नीड़ को आते हैं |
तरु-शिखरों से इक दूजे को,
गीत सुनाते हैं |
तुलसी चौरे पर जब जब ,
वह संध्या दीप जले |----आजाती है...... ॥
मंदिर के घंटों की स्वर-ध्वनि,
अनहद नाद सुनाएं |
गौधूली वेला में घर को ,
लौटी गाय रम्भाएं ।
चन्दा उगे क्षितिज के ऊपर,
सूरज उधर ढले। ..............जब जब सांझ----॥
गाँव में चौपालों पर , और-
नगरों में चौराहों पर ।
चख-चख चर्चाएँ चलतीं हैं ,
छत, पनघट ,राहों पर ।
चाँद-चकोरी नैन डोर की-
चुप-चुप रीति चले ।
आजाती है याद तुम्हारी
मन इक स्वप्न पले।
जब जब सांझ ढले ॥