
डा श्याम गुप्त की गज़ल...तो ये जाना ज़ानां....
खुशबू छाई जो बहारों में तो जाना, ज़ानां ।
आपने हम से मुलाकात को सोचा होगा।
महकी महकी वो हवा बहकी चमन में ज़ानां,
लेके अन्गडाई यूंही ज़ुल्फ़ को झटका होगा ।
जाने क्यूं आज दिले नादां में कुछ कुछ होता,
आपने दिल को सितम ढाने से टोका होगा ॥
जाने क्यों याद आती हैं वो वादाये वफ़ा,
आपने वादा निभाने को सराहा होगा ॥
बिजली तडपी जो घटाओं में तो समझा,ज़ानां,
ज़ाने -दिल आपका दिल जोर से धडका होगा।
शोख कलियां जो लगीं झूमके सरगम कहने,
तेरे होठों की छुअन का ही नुमांया होगा ।
अब तो ये दिल भी लगा पहलू से अपने जाने,
आपने ही तो सदा देके पुकारा होगा ।
रूह में अब तो समा जाओ चले आओ ,श्याम’
हम ही जब होंगे नहीं आना क्या आना होगा ॥
आपने हम से मुलाकात को सोचा होगा।
महकी महकी वो हवा बहकी चमन में ज़ानां,
लेके अन्गडाई यूंही ज़ुल्फ़ को झटका होगा ।
जाने क्यूं आज दिले नादां में कुछ कुछ होता,
आपने दिल को सितम ढाने से टोका होगा ॥
जाने क्यों याद आती हैं वो वादाये वफ़ा,
आपने वादा निभाने को सराहा होगा ॥
बिजली तडपी जो घटाओं में तो समझा,ज़ानां,
ज़ाने -दिल आपका दिल जोर से धडका होगा।
शोख कलियां जो लगीं झूमके सरगम कहने,
तेरे होठों की छुअन का ही नुमांया होगा ।
अब तो ये दिल भी लगा पहलू से अपने जाने,
आपने ही तो सदा देके पुकारा होगा ।
रूह में अब तो समा जाओ चले आओ ,श्याम’
हम ही जब होंगे नहीं आना क्या आना होगा ॥